Bihar Education News: बिहार के विश्वविद्यालयों की लापरवाही कोई नई बात नहीं है। राज्यपाल से लेकर शिक्षा विभाग तक इसे पटरी पर लाने की कोशिस तो करते हैं लेकिन मजाल है कि कुलपतियों के कान पर जू तक रेंगे. राजभवन ने तमाम तरह के दिशानिर्देश जारी किए बावजूद इसके परिणाम ढ़ाक के तीन पात हीं रहा। ताजा मामला बीआरए बिहार विश्वविद्यालय का है। बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के नैक मूल्यांकन में लापरवाही का गंभीर परिणाम सामने आया है। नैक ग्रेडिंग न होने के कारण प्रधानमंत्री उच्चतर शिक्षा अभियान (पीएम-उषा) का 100 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट विश्वविद्यालय के हाथ से निकल गया। नैक मूल्यांकन के दूसरे चक्र के लिए कोई कदम न उठाने के कारण बीआरएबीयू राष्ट्रीय स्तर पर पिछड़ गया है। जबकि, पीएम-उषा के तहत किसी भी योजना का लाभ उठाने के लिए नैक से मूल्यांकन अनिवार्य किया गया है। वास्तव में, मल्टी डिसीप्लिनरी एजुकेशन एंड रिसर्च यूनिवर्सिटी (मेरू) के लिए बीआरएबीयू सहित राज्य के तीन विश्वविद्यालयों ने आवेदन किया था, जिसमें पटना विश्वविद्यालय और ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय का आवेदन स्वीकृत हो चुका है।
दोनों विश्वविद्यालयों को इंफ्रास्ट्रक्चर विकास और अन्य कार्यों के लिए 100-100 करोड़ रुपये प्रदान किए जाएंगे। वहीं, बीआरएबीयू का आवेदन स्वीकृत नहीं हुआ है। इस संबंध में विश्वविद्यालय को पीएम-उषा की ओर से अब तक कोई आधिकारिक सूचना प्राप्त नहीं हुई है। कुलसचिव डॉ. अपराजिता कृष्णा ने बताया कि उच्च शिक्षा निदेशालय ने बीआरएबीयू के प्रोजेक्ट की सराहना करते हुए इसे सबसे उत्कृष्ट बताया था। हमने सीमित समय में काफी अच्छा कार्य किया था। हालांकि, विभाग की ओर से पहले ही यह कहा गया था कि नैक की ग्रेडिंग प्रोजेक्ट में बाधा उत्पन्न कर सकती है। उल्लेखनीय है कि विश्वविद्यालय ने 100 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट तैयार कर भेजा था, जिसमें 60 करोड़ रुपये इंफ्रास्ट्रक्चर पर और 40 करोड़ रुपये शैक्षणिक गतिविधियों पर खर्च करने का प्रस्ताव था। विश्वविद्यालय का मूल्यांकन 2015 में हुआ था, और इसकी मान्यता 2020 में समाप्त हो गई है।
बीआरए बिहार विश्वविद्यालय का नैक मूल्यांकन का पहला चरण नववर्ष 2015 में संपन्न हुआ, जिसमें विश्वविद्यालय को बी ग्रेड प्राप्त हुआ। इसके साथ ही, रूसा (जिसे अब पीएम-उषा कहा जाता है) से अवसंरचना विकास के लिए 20 करोड़ रुपये की राशि भी प्राप्त हुई थी। विश्वविद्यालय की नैक मान्यता 2020 में समाप्त हो गई, जबकि पूरी राशि का उपयोग नहीं किया जा सका। यूजीसी ने पहले ही स्पष्ट किया था कि नैक ग्रेडिंग के बाद ही किसी योजना का लाभ विश्वविद्यालय या कॉलेज को मिलेगा। 2020 में मान्यता समाप्त होने के बाद, कोरोना महामारी को ध्यान में रखते हुए यूजीसी ने सभी संस्थानों को 6 महीने की छूट प्रदान की थी। हालांकि, स्थिति सामान्य होने के बाद भी विश्वविद्यालय ने सेकेंड साइकिल के मूल्यांकन के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
सेकेंड साइकिल के मूल्यांकन की प्रक्रिया पिछले 9 महीनों से चल रही है, जबकि फाइनल रिपोर्ट अभी भी लंबित है। विश्वविद्यालय के नैक मूल्यांकन के संदर्भ में यूजीसी ने निर्देश दिया था कि मार्च तक रजिस्ट्रेशन करने वाले संस्थानों का मूल्यांकन पुरानी प्रक्रिया के अनुसार किया जाएगा। इसके बाद नया सिस्टम लागू होगा। इस निर्देश के अनुसार, विश्वविद्यालय ने मार्च में रजिस्ट्रेशन करवा लिया, लेकिन अब तक एसएसआर यानी फाइनल रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की जा सकी है। हालांकि, मार्च के बाद से नैक मूल्यांकन के मद्देनजर विश्वविद्यालय में कई महत्वपूर्ण कार्य किए गए हैं। पीजी विभागों में शिक्षकों की कमी को दूर करने के साथ-साथ विभिन्न कमेटियों का गठन किया गया और डिजिटल सेवाओं की शुरुआत की गई। इसके अतिरिक्त, देशभर के दो दर्जन से अधिक उच्च शिक्षण संस्थानों के साथ एमओयू किए गए और कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किए गए।
रितिक कुमार की रिपोर्ट