बिहार सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए लाखों एकड़ जमीन का खाता-खेसरा लॉक कर दिया है ताकि जमीन की खरीद-बिक्री रोक जाए। बिहार सरकार का भूमि सर्वेक्षण और खाता-खेसरा लॉक करने का फैसला विशेष रूप से उन लोगों के लिए कष्टकारी साबित हो सकता है जिनके पास जमीन के कागजात में कुछ गलतियां हो सकती हैं। वहीं सरकार का दावा है कि ये जमीनें पहले सरकारी थीं, जिन्हें बाद में धोखाधड़ी से बेचा गया या अतिक्रमित किया गया।राजस्व और भूमि सुधार विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह ने स्पष्ट किया है कि जमीन के दस्तावेजों को लॉक करने का सर्वेक्षण से कोई सीधा संबंध नहीं है। उन्होंने कहा कि सिर्फ उन जमीनों को लॉक किया गया है जिनके बारे में पहले से ही संदेह है कि उन्हें गलत तरीके से हासिल किया गया है।
तो सरकार के इस फैसले का विरोध करते हुए आरजेडी ने कहा है कि इस कदम से हजारों लोग कोर्ट जाने के लिए बाध्य होंगे। तो सरकार का कहना है कि इस कदम से जमीन से जुड़े भ्रष्टाचार को रोकने में मदद मिलेगी। सरकार का कहना है कि इससे प्रभावित लोगों को आपत्ति दर्ज करने का पर्याप्त समय दिया गया है।
इस कदम से लाखों लोगों का जीवन प्रभावित हो सकता है, खासकर उनका जिनके पास जमीन का पुख्ता दस्तावेज नहीं है। वहीं इससे न्यायपालिका पर मुकदमों का बोझ बढ़ सकता है।तो जमीन का खाता-खेसरा लॉक करने से सर्वेक्षण का उद्देश्य ही अधूरा रह सकता है।
पटना हाईकोर्ट के वकील योगेश चंद्र वर्मा के कहना है कि सरकार को सबसे पहले जमीन के रिकॉर्ड ठीक करने चाहिए थे। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को जमीन का टाइटल तय करने का अधिकार नहीं है।सरकार को जमीन के रिकॉर्ड को अपडेट करने पर ध्यान देना चाहिए।प्रभावित लोगों को न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से अपनी बात रखने का मौका मिलना चाहिए।पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखना जरूरी है।
बहरहाल बिहार में चल रहा जमीन सर्वेक्षण और खाता-खेसरा लॉक करने का फैसला धीरे धीरे राजनीतिक रुप लेने लगा है। विपक्ष इसको राजनीतिक हथियार बनाने में जुटा है तो कानून के विशेषज्ञ भी सरकार के निर्णय पर सवाल उठाने लगे हैं।