PATNA - एक तरफ बिहार में नीतीश सरकार मंदिर मठ की जमीन को बचाने के लिए नए नियम बना रही है। वहीं दूसरी तरफ जिन लोगों को इन जमीन को बचाने की जिम्मेदारी दी गई, उन्होंने अपने रिश्तेदारों के नाम जमीन लिखवा ली। हैरानी की बात यह है यह सिलसिला दस साल से भी ज्यादा समय से चल रहा था। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। वर्तमान डीएम के पास भी यह मामला पहुंचा, उन्होंने जांच के आदेश दिए, लेकिन उनका आदेश फाइलों में दब गया। माना जा रहा है कि अगर जांच हुई तो कईयों का सच सामने आ जाएगा।
मंदिर की जमीन में फर्जीवाड़े का यह मामला मुशहरी अंचल के भीखनपुर मौजा गांव का है। एनएच-77 एवं एनएच-57 के किनारे बसे गांव में देवी-देवताओं के नाम करीब 17 एकड़ जमीन (खाता संख्या 62 एवं खेसरा संख्या 1463 और 1494 की) दर्ज है। इसकी रसीद भी देवी-देवताओं के नाम से कट रही है। इसमें सेवइत के रूप में कैलाश सिंह का नाम दर्ज है।
बताया गया कि 2007-08 से ही इस मंदिर की जमीन की खरीद बिक्री का काम चल रहा था। लेकिन रसीद मंदिर के नाम पर कटने के कारण इसकी जमाबंदी नहीं हो रही थी।
2019 में राजस्व कर्मचारी ने किया बड़ा खेल
साल 2019 में मुशहरी अंचल में नियुक्त राजस्व कर्मचारी विश्वामित्र खरवार ने मंदिर की जमीन पर बड़ा खेल खेलना शुरू किया। खरवार ने जमीन की जमाबंदी रैयतों के नाम से करनी शुरू कर दी। इस दौरान उसने अपने रिश्तेदारों के नाम पर लिखवाई। जो दस्तावेज सामने आए हैं, उसके अनुसार एक जुलाई 2019 को रामनारायण खरवार के नाम से 3.60 डिसमिल जमीन लिखवाई गई। इसके बाद 19 नवंबर को दो डिसमिल जमीन मदन खरवार के नाम लिखवाई।
पहले दिखाई इमानदारी, फिर बिगड़ नियत
हालांकि अंचल में मंदिर की जमीन पर पहले से ही फर्जी तरीके से बेचने का धंधा चल रहा था। राजस्व कर्मचारी ने यहां इसे रोकने के लिए शुरूआत में इमानदारी दिखाई। राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग की वेबसाइट पर दर्ज जमाबंदी रिकॉर्ड के अनुसार विश्वामित्र खरवार ने 26 अप्रैल को खेसरा संख्या 1463 के दाखिल-खारिज आवेदन को अस्वीकृत करने की रिपोर्ट की।
मगर जैसे ही उनके रिश्तेदार के नाम से जमीन की खरीद हुई, जमाबंदी का क्रम शुरू हो गया। 9 अगस्त को आए आवेदन को पहली स्वीकृति मिली।
इसके बाद उक्त दोनों खेसरा की जमाबंदी के आवेदन को कर्मचारी खरवार लगातार स्वीकृति के लिए अग्रसारित करते रहे। अपने रिश्तेदारों के नाम खरीदी गई जमीन की जमाबंदी भी इसमें शामिल है। हालांकि खरवार के यहां से तबादले के बाद दाखिल-खारिज के अधिकतर आवेदन अस्वीकृत ही किए गए।
अंचधाधिकारी ने भी कई आवेदन किए स्वीकृत
देवी-देवताओं के नाम से दर्ज उक्त जमीन की जमाबंदी को लेकर आए आवेदनों में विक्रेता, खाता और खेसरा एक होने के बाद भी अंचल कार्यालय के निर्णय अलग-अलग रहे। तत्कालीन अंचलाधिकारी नागेंद्र कुमार की ओर से भी इन मामलों में अलग-अलग निर्णय लिए गए। यहां तक कि खरवार की स्वीकृति की अनुशंसा को कई बार खारिज भी किया गया, मगर अधिकतर बार इसे स्वीकृत कर लिया गया।
फैसले का किया बचाव
एक ही जमीन को लेकर अलग-अलग निर्णय के कारण उनकी भूमिका भी संदेह के घेरे में है। जबकि उनके पहले और बाद के अंचलाधिकारी ने देवी-देवताओं के नाम की जमीन की जमाबंदी के आवेदन अस्वीकृत ही किए।
इस मामले में नागेंद्र कुमार ने कहा कि रसीद देवी-देवताओं के नाम से कट रही है। जमाबंदी सेवइत कैलाश सिंह के नाम से है। उनके वंशजों ने जमीन की खरीद-बिक्री की इस कारण दाखिल-खारिज के आवेदन स्वीकृत किए गए। हालांकि, अस्वीकृत आवेदन को लेकर वह स्पष्ट रूप से कुछ नहीं बोल सके।
मंदिर - मठ की जमीन को लेकर क्या है नियम
मंदिर मठ की जमीन की खरीद बिक्री के नियम को लेकर पूर्व अंचलाधिकारी ने बताया कि उक्त खाता एवं खेसरा की जमीन देवी-देवताओं के नाम से है। इस कारण ही उनके समय में दाखिल-खारिज के आए आवेदनों को अस्वीकृत किया गया। इस मामले में किसी ऊपरी अदालत का आदेश नहीं था।
कोर्ट के आदेश के बिना नहीं ले सकते कोई फैसला
उन्होंने सरकारी और मठ-मंदिर की जमीन को जहां तक संभव हो बचाने का प्रयास किया गया। जब तक किसी ऊपरी कोर्ट का आदेश नहीं आता इसपर रोक ही रहता है। इसकी जमाबंदी रैयत के नाम से नहीं की जा सकती।
डीएम-सीएम को लेटर लिखकर जांच की मांग
मंदिर की जमीन पर हुए कब्जे को मुक्त कराने को लेकर पूर्व मुखिया उमा शंकर प्रसाद सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र भेजा था। इसकी कॉपी डीएम सुब्रत कुमार सेन को भी दी। डीएम के निर्देश पर अपर समाहर्ता ने मामले की जांच एसडीओ पूर्वी को दी है।
डेढ़ महीने पुराने आदेश पर नहीं शुरू हुई जांच
दो नवंबर को दिए गए निर्देश पर अब तक जांच शुरू नहीं हो सकी है। माना जा रहा है कि अगर जांच शुरू होती है एक मंदिर ही नहीं, बल्कि कई मंदिरों की जमीन पर हुए फर्जीवाड़े का सच भी सामने आ सकता है।