Sharda Sinha ki Yaadien: लोक गायिका शारदा सिन्हा ने छठ के गीतों को अपनी नानी और सास से मिली प्रेरणा के साथ गाया और उन्हें रिकॉर्ड किया। भास्कर को दिए एक इंटरव्यू में शारदा सिन्हा ने बताया था कि उनके घर में छठ पूजा की परंपरा बचपन से थी। उनकी नानी पटना आकर गंगा नदी में अर्घ्य देती थीं और पूरे विधि-विधान से छठ करती थीं। उन्हीं दिनों से छठ के पारंपरिक गीत उनके मन में बस गए थे। इन गीतों की मधुरता और पवित्रता ने उनके दिल में एक गहरी छाप छोड़ी।
शारदा सिन्हा ने 978 में उन्होंने पहली बार उग हो सूरज देव…गाना रिकॉर्ड किया था जो अत्यधिक लोकप्रिय हुआ। ये छठ पर्व के श्रद्धालुओं के हृदय में उतर गया था। आज भी यह गीत उतना ही लोकप्रिय है, जितना 50 साल दशक पहले था। जानकारी के अनुसार, ‘रुनकी झुनकी बेटी मांगीला’ बोल का गीत शारदा सिन्हा का पहला लोकप्रिय छठ गीत माना जाता है। यह गीत 1970 के दशक में रिलीज हुआ था।
छठ की परंपरा और पारिवारिक प्रेरणा
शादी के बाद शारदा सिन्हा की सास भी छठ पूजा करती थीं, खासकर इसलिए क्योंकि उनके पति बचपन में बहुत बीमार रहते थे, और उनकी सास ने उनके स्वास्थ्य के लिए छठी मैया से प्रार्थना की थी। बड़ी बहू होने के नाते, शारदा सिन्हा को छठ की हर परंपरा और कहानियां उनकी सास ने बताईं। इन कहानियों और परिवार की भावनाओं को उन्होंने अपने गीतों में समेटा और इनकी रिकॉर्डिंग शुरू की।
उनके सबसे प्रसिद्ध छठ गीतों में 'डोमिनी बेटी सुप लेले ठार छे', 'अंगना में पोखरी खनाइब, छठी मैया आइथिन आज', 'मोरा भैया गैला मुंगेर' और 'श्यामा खेले गैला हैली ओ भैया' जैसे गीत शामिल हैं, जो उन्होंने 1978 में रिकॉर्ड किए। इन गीतों को सुनकर लोगों को उनकी नानी और सास की आवाजें और कहानियाँ भी महसूस होती हैं।
पारंपरिक छठ गीतों की विरासत
शारदा सिन्हा के कई छठ गीत उनकी नानी और सास की देन हैं। जैसे 'केलवा के पात पर उगे ला सुरज देव', 'हो दीनानाथ' और 'सोना साठ कुनिया हो दीनानथ'। इन गीतों के माध्यम से वे सूर्य देव से परिवार की भलाई, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-शांति की कामना करती थीं। इन गीतों में उस प्रार्थना का महत्व है जिसमें श्रद्धालु सूर्य देव से जल्दी उगने की विनती करते हैं और अपने परिवार के लिए आशीर्वाद मांगते हैं।
नई पीढ़ी के लिए गीतों की रचना
शारदा सिन्हा ने छठ के गीतों को नई पीढ़ी से जोड़ने के लिए भी रचनाएँ कीं। 'पहली पहल हम कईनी छठी मैया व्रत तोहार' इसी का एक उदाहरण है। उन्होंने यह गीत उन जोड़ों को ध्यान में रखते हुए लिखा था जो आधुनिक जीवन में नौकरी और स्थान परिवर्तन के कारण अपने पारंपरिक त्योहारों से दूर हो जाते हैं। इस गीत के माध्यम से एक पंजाबी बहू की कहानी दर्शाई गई है, जो अपने बिहारी ससुराल की परंपराओं को निभाती है और छठ पूजा करती है। इस तरह से, शारदा सिन्हा ने छठ के गीतों में न केवल पारंपरिक आस्था को जिंदा रखा बल्कि आधुनिक परिवेश में नई पीढ़ी को भी इस पवित्र अनुष्ठान से जोड़ा।