बिगड़ती जीवनशैली और असंतुलित खानपान ने भारत में दिल से जुड़ी बीमारियों के मामलों में तेजी से वृद्धि की है। खासकर युवाओं में हार्ट अटैक, हार्ट ब्लॉकेज और स्ट्रोक जैसी समस्याएं आम हो गई हैं। इन बीमारियों से निपटने के लिए डॉक्टर अक्सर सर्जरी की सलाह देते हैं, जिसमें स्टेंट डालने की प्रक्रिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
हार्ट ब्लॉकेज क्या है?
हार्ट ब्लॉकेज तब होता है जब धमनियों में कोलेस्ट्रॉल या अन्य फैट के जमाव से खून का प्रवाह रुक जाता है। इससे हार्ट को सही मात्रा में खून और ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, जिससे हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। ब्लॉकेज का सही समय पर इलाज करना जीवन बचाने में मदद कर सकता है।
स्टेंट कब डाला जाता है?
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार, जब ब्लॉकेज 70 प्रतिशत या उससे अधिक होता है, तब स्टेंट डालने की जरूरत होती है। हालांकि, यह निर्णय मरीज की स्वास्थ्य स्थिति, फिटनेस और उम्र पर भी निर्भर करता है।
स्टेंट डालने की प्रक्रिया
स्टेंट एक छोटी जालीदार ट्यूब होती है, जो ब्लॉकेज को हटाने और ब्लड फ्लो को सुचारू करने के लिए धमनियों में डाली जाती है। इसे कोरोनरी डिजीज और हार्ट अटैक के गंभीर मामलों में उपयोग किया जाता है।
स्टेंट डालने से पहले टेस्ट
स्टेंट डालने से पहले मरीज को कई प्रकार के टेस्ट से गुजरना पड़ता है, जैसे:
कार्डियोवस्क्यूलर टेस्ट: हार्ट की स्थिति को जानने के लिए किया जाता है।
डोपलर इकोकार्डियोग्राफी: ब्लड फ्लो की जांच के लिए।
स्ट्रेस टेस्ट: हार्ट की क्षमता का पता लगाने के लिए।
कैथेटराइजेशन: ब्लॉकेज की सटीक स्थिति का निर्धारण।
स्टेंट के फायदे
ब्लड फ्लो को सुचारू बनाना। हार्ट अटैक के खतरे को कम करना। मरीज को तत्काल राहत प्रदान करना।
स्टेंट कब जरूरी नहीं?
हर ब्लॉकेज में स्टेंट डालना जरूरी नहीं होता। अगर ब्लॉकेज 70 प्रतिशत से कम है और मरीज की स्थिति स्थिर है, तो दवाओं और लाइफस्टाइल में सुधार के जरिए इलाज संभव है।
निष्कर्ष
हार्ट ब्लॉकेज एक गंभीर स्थिति है, जिसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। स्टेंट डालने का निर्णय मरीज की सेहत, फिटनेस और ब्लॉकेज की गंभीरता को ध्यान में रखकर लिया जाता है। समय पर जांच और डॉक्टर की सलाह का पालन करके दिल से जुड़ी बीमारियों से बचा जा सकता है। स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें और नियमित रूप से जांच कराते रहें।