Navratri 2025: ए.आई. के दौर में परंपरा की पुकार, कटिहार में बंगाली धरोहर के रंग में रंगा सन ऑफ इंडिया, दिख रही है बंग व अंग की संस्कृति
Navratri 2025: चाहे तकनीक कितनी भी तरक्की कर ले, मानव संवेदना और सांस्कृतिक विरासत की मिठास कभी फीकी नहीं पड़ सकती।

Navratri 2025: कटिहार की दो नंबर कॉलोनी में इस दुर्गा पूजा पर सन ऑफ़ इंडिया क्लब ने ए.आई. के जमाने में भी अपनी परंपरा को जीवित रखने की अनोखी कोशिश की। कटिहार को हमेशा से थीम-बेस्ड पंडालों का जनक माना जाता रहा है, और इस बार की प्रस्तुति ने इसे एक बार फिर साबित कर दिया।
इस आयोजन में बंगाल के विष्णुपुर के प्रसिद्ध टेराकोटा सूप-पटवा के साथ पंडाल को सजाया गया, जिससे ग्रामीण बंगाली संस्कृति की छवि आँखों के सामने उभर आई। मिट्टी की इस जली हुई कला में जैसे हर आकृति अपनी कहानी बयाँ कर रही हो—पुरखों की मेहनत, गांव की सादगी और लोक जीवन की छटा।
पूरे पंडाल और माहौल को बंगाली देशी टच देने के लिए लोक संगीत का भी खास इंतज़ाम किया गया। मंच पर बाउल गान की स्वर लहरियों ने हर दर्शक के दिल में अद्भुत भावनात्मक कंपन पैदा किया। कोलकाता की झलक वाले इस आयोजन ने शहरवासियों को एक तरह से आधुनिकता और परंपरा के संगम का एहसास कराया।
ए.आई. के इस डिजिटल युग में, जब हर कला को मशीनों और एल्गोरिदम के सहारे पेश किया जाता है, कटिहार का यह पंडाल एक मानव-संस्कृति का दस्तावेज़ साबित हुआ। यहाँ स्थानीय शिल्प और लोक कला ने तकनीकी युग के बीच भी अपनी जगह बनाकर दिखा दी कि परंपरा कभी लुप्त नहीं होती, बस उसे सृजनात्मक ढंग से संजोने की जरूरत होती है।
कटिहार का यह आयोजन दर्शाता है कि चाहे तकनीक कितनी भी तरक्की कर ले, मानव संवेदना और सांस्कृतिक विरासत की मिठास कभी फीकी नहीं पड़ सकती।
रिपोर्ट- श्याम कुमार सिंह