Bihar elections 2025 - नवादा के इस इलाके में लोगों ने दस साल बाद की वोटिंग, इस कारण मतदान से थे वंचित

Bihar elections 2025 - नवादा के इस इलाके में लोगों ने दस साल

Nawada - नवादा जिले के जंगल और पठारी इलाकों से घिरे दनिया गांव में करीब दस साल के लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर मतदान हुआ। मतदान से वंचित रहे ग्रामीणों में इस बार अपनी लोकतांत्रिक भागीदारी को लेकर भारी उत्साह देखा गया। 

प्रशासन ने दनिया बूथ पर मतदान प्रक्रिया को सुनिश्चित करने के लिए पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था की थी, जहां लगभग 800 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इस मतदान केंद्र पर दनिया के साथ-साथ रानीगदर, झरनवा और करमाटांड गांवों के मतदाताओं ने भी वोट डाले। 

यहां मतदान कराना चुनौतीपूर्ण

यह इलाका झारखंड की सीमा से सटा हुआ है और गोविंदपुर विधानसभा क्षेत्र के तहत आता है। नवादा जिले के गोविंदपुर और रजौली विधानसभा क्षेत्रों में कई मतदान केंद्र झारखंड की सीमा से सटे हुए हैं। इस क्षेत्र का दुर्गम भूगोल और सड़क सुविधा का अभाव प्रशासन के लिए हर चुनाव में अतिरिक्त चुनौतियां खड़ी करता है। सिर नावाडीह, जमुनादाहा, बुड़ियासाख और धामोचक जैसे गांवों तक पहुंचना आज भी काफी मुश्किल है।

2015 से हो रहा था बहिष्कार

दरअसल, दनिया के ग्रामीण 2015 से ही लगातार मतदान का बहिष्कार कर रहे थे। बहिष्कार का मुख्य कारण इलाके में विकास कार्यों की कमी और मूलभूत सुविधाओं का अभाव था, जिसके चलते लोगों ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया से दूरी बना ली थी। हालांकि, इस बार ग्रामीणों ने अपने बहिष्कार को समाप्त किया और लोकतंत्र के इस पर्व में एक नए जोश के साथ हिस्सा लिया, जो क्षेत्र में बदलाव की उम्मीद जगाता है।

नवादा जिला मुख्यालय से लगभग 80 किलोमीटर दूर स्थित दनिया गांव पूरी तरह से जंगल और पठारी क्षेत्र में बसा हुआ है, और यह सीधे झारखंड के गिरिडीह जिले की सीमा से सटा है। सड़क सुविधा के अभाव के कारण, ग्रामीणों को कौआकोल प्रखंड मुख्यालय तक पहुंचने के लिए लगभग 40 किलोमीटर की लंबी और कठिन यात्रा करनी पड़ती है। यह क्षेत्र लंबे समय से नक्सल प्रभावित और संवेदनशील भी माना जाता रहा है; 9 फरवरी 2009 को इसी इलाके के महुलियाटांड में नक्सलियों के हमले में तत्कालीन थानाध्यक्ष रामेश्वर राम सहित दस पुलिसकर्मी शहीद हुए थे।

लंबे समय बाद हुए इस मतदान ने दनिया और आसपास के इलाकों के लोगों में विकास की नई उम्मीदें जगा दी हैं। ग्रामीणों ने अब अपनी 'वोट की ताकत' का प्रयोग किया है और वे चाहते हैं कि इस भागीदारी के माध्यम से उनके गांव तक भी विकास की राह पहुंचे और मूलभूत सुविधाओं का अभाव जल्द दूर हो।