Bihar Public Servants:बिहार में भ्रष्टाचार की महामारी, 4200 लोकसेवकों का 'दागी'! धूल फांक रहीं कार्रवाई की फाइलें
Bihar Public Servants:बिहार में भ्रष्टाचार की गंगा ऐसी बह रही है कि निगरानी विभाग को भी पसीना छूट गया है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, करीब 4200 लोकसेवक और 696 निजी व्यक्ति भ्रष्टाचार के दलदल में धंसे हैं...

Patna: बिहार में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि अब निगरानी विभाग भी हांफ रहा है। ताजा खुलासे के मुताबिक, राज्य में करीब 4200 सरकारी कर्मचारी और 696 प्राइवेट लोग भ्रष्टाचार के दलदल में बुरी तरह फंसे हुए हैं। निगरानी अन्वेषण ब्यूरो , विशेष निगरानी इकाई , और आर्थिक अपराध इकाई के दफ्तर इन भ्रष्टों के कारनामों की फाइलों से भरे पड़े हैं। दिसंबर 2024 तक की यह 'दागी सूची' अब विभागों, कमिश्नरों और जिलाधिकारियों के पास भेजी गई है, ताकि वे अपने 'ईमानदार' कर्मचारियों को प्रमोशन का झुनझुना थमा सकें। लेकिन फाइलों की रफ्तार ऐसी है कि पूछिए मत!
'स्वच्छता प्रमाणपत्र' का नया तमाशा!
निगरानी विभाग ने एक नया फरमान जारी किया है कि 30 जून 2025 तक के मामलों में प्रमोशन के लिए अलग से 'क्लीन चिट' की जरूरत नहीं होगी! वाह जी वाह! मतलब, अगर कोई भ्रष्टाचार में गर्दन तक डूबा है, लेकिन उसका मामला अभी 'जांच' के चक्कर में फंसा है, तो उसे पाक-साफ मान लिया जाएगा। बाकी मामलों में 'जरूरत' पड़ने पर निगरानी विभाग से 'गुजारिश' की जा सकती है। अब यह 'गुजारिश' कितने 'लेन-देन' के बाद पूरी होगी, यह तो बिहार की सरकारी फाइलों के 'स्पीड' कंट्रोलर ही बता सकते हैं।
शिक्षा विभाग: भ्रष्टाचार का 'अड्डा' नंबर वन!
अब आइए असली मुद्दे पर। बिहार के सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार की दौड़ में शिक्षा विभाग ने सबको पीछे छोड़ दिया है। पूरे 962 सरकारी कर्मचारियों पर केस दर्ज हैं, जिनमें 400 से ज्यादा तो शिक्षक ही हैं! मुजफ्फरपुर के मीनापुर, कांटी, सरैया, गायघाट, पारू, बोचहां और मुशहरी जैसे इलाकों के शिक्षकों ने तो जैसे भ्रष्टाचार में पीएचडी कर रखी है। ये वही 'गुरुजी' हैं जो बच्चों को ईमानदारी का पाठ पढ़ाते हैं, लेकिन खुद रिश्वत और बेहिसाब संपत्ति के मामले में एक्सपर्ट निकले!
दूसरे नंबर पर है पंचायती राज विभाग, जहां 333 मामले दर्ज हैं, और आधे से ज्यादा में मुखिया जी 'किंग' बने हुए हैं। तीसरे पायदान पर सामान्य प्रशासन विभाग है, जहां 247 मामले हैं, और डीएम से लेकर बीडीओ तक भ्रष्टाचार की 'गंगा' में गोते लगा रहे हैं। बिहार पुलिस भी कहां पीछे रहने वाली है—245 दारोगा और इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी रिश्वतखोरी और संपत्ति बनाने के खेल में मस्त हैं। राजस्व, भूमि सुधार और ग्रामीण विकास विभाग भी इस 'भ्रष्टाचार यज्ञ' में अपनी आहुति दे रहे हैं।
निगरानी की 'सुस्ती': जांच का कभी न खत्म होने वाला सिलसिला!
निगरानी विभाग की कार्रवाई का हाल तो और भी मजेदार है। SVU में 55 मामले हैं, जिनमें से आधे कोर्ट में अटके हैं, और बाकी 'जांच' के नाम पर धूल फांक रहे हैं। EOU में 85 मामले हैं, लेकिन 2019 के बाद सिर्फ एक में चार्जशीट दाखिल हुई है! बाकी मामलों में या तो 'सबूत नहीं मिले' या जांच का रिकॉर्ड अभी भी 'प्ले' बटन पर अटका हुआ है। निगरानी अन्वेषण ब्यूरो (VIB) थोड़ा एक्टिव दिखा, 39 मामलों में से 37 में चार्जशीट हुई, लेकिन दो मामलों में 'फाइनल रिपोर्ट' दाखिल कर इतिश्री कर दी गई। यह जांच की रफ्तार ऐसी है कि अगर भ्रष्टाचार का ओलंपिक होता, तो बिहार का निगरानी विभाग 'सबसे धीमा' कैटेगरी में गोल्ड मेडल जीत लेता!
विभागीय कार्रवाई: सिर्फ कागजी खानापूरी!
सिर्फ 39 मामलों में विभागीय कार्रवाई शुरू हुई है, लेकिन यह कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ज्यादातर मामलों में 'जांच अभी जारी है'। मतलब, कागजों में सब ठीक-ठाक है, लेकिन हकीकत में भ्रष्टाचार का रथ बिना रुके चल रहा है। साल में दो बार दागी कर्मचारियों की लिस्ट भेजने का नियम है, लेकिन यह लिस्ट कितनी बार धूल खाती है और कितनी बार 'गायब' हो जाती है, यह कोई नहीं बताता।
भ्रष्टाचार का 'कुंभ मेला'!
बिहार में भ्रष्टाचार अब कोई गुनाह नहीं, बल्कि एक 'कला' बन गया है, जिसमें शिक्षा विभाग के 'उस्ताद' और पंचायती राज के 'सरपंच' माहिर हैं। निगरानी विभाग की फाइलें, जांच और 'क्लीन चिट' का खेल सिर्फ एक दिखावा है, जो जनता को यह यकीन दिलाने के लिए खेला जा रहा है कि 'कुछ तो हो रहा है'। लेकिन सच तो यह है कि बिहार में भ्रष्टाचार की गंगा में डुबकी लगाने वालों की कमी नहीं है, और निगरानी विभाग का जाल इतना कमजोर है कि बड़े मगरमच्छ तो क्या, छोटी मछलियां भी आसानी से निकल जाती हैं। तो अगली बार जब कोई बिहारी सरकारी कर्मचारी आपको 'ईमानदारी' का लेक्चर दे, तो बस मुस्कुरा दीजिए—आखिर, यह बिहार है, जहां भ्रष्टाचार सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि जीने का तरीका है!