Bihar Vidhansabha Chunav 2025 : चुनावी हार के बाद ठेकेदार बनने का मन बना चुके थे नीतीश कुमार, रोड़ा बन गया यह शख्स, जानिए नीतीश के सीएम बनने की इनसाइड स्टोरी...

Bihar Vidhansabha Chunav 2025 : कभी वो दौर था जब नीतीश कुमार राजनीति छोड़ने का मन बना चुके थे. वे राजनीति छोड़कर ठेकेदार बनना चाहते थे. लेकिन एक शख्स रोड़ा बन गया. जिसके बाद उन्होंने तीसरा चुनाव लड़ने का फैसला किया....पढ़िए आगे

Bihar Vidhansabha Chunav 2025 : चुनावी हार के बाद ठेकेदार बन
नीतीश के सीएम बनने की इनसाइड स्टोरी - फोटो : SOCIAL MEDIA

N4N DESK : 1980 तक नीतीश कुमार दो चुनाव हार गए थे। तब तक उन्हें कॉलेज छोड़े लगभग सात साल गुजर गए थे। लेकिन उन वास्तविकताओं को भूलना नीतीश कुमार के लिए असंभव था. जिनसे यह जाँखें फेरे हुए थे। साधनों का घटते जाना और खिंची खिंची रहनेवाली पत्नी। मंजू सिन्हा ने बख्तियारपुर छोड दिया और अपने पिता के साथ रहने के लिए पटना आ गयी थी। उन्हें पटना के गुलजारबाग में एक सरकारी स्कूल में अध्यापिका की नौकरी लग गई थी। इस बीच मंजू सिन्हा ने 1980 में निशांत को जन्म दिया। हालाँकि नीतीश यदा कदा ही ससुराल जाते थे। इसका एक कारण यह भी था कि नीतीश को जाने पर ऐसा महसूस होता था जैसे परिस्थिति उनके मुँह पर ताना कस रही हो। आ गया यह इंजीनियर जिसने नौकरी करने से साफ मना कर दिया। एक ऐसा राजनीतिज्ञ जिसके पास मेहनत के बदले में मिली असफलता के सिवा कुछ नहीं है। 

विफल राजनीति और पारिवारिक परिस्थियों के बीच उत्पन्न मानसिक यंत्रणा का ही परिणाम था कि बिहार को अपने भावी मुख्यमंत्र देने का क्षण आ गया। एक सुबह वह अपने घर से ट्रेन पकड़कर उद्वेलित और भारी मन से से पटना में अपने उसी ठिकाने पर आ पहुंचे 32 विधायक क्लब और कान पकड लिए। "कुछ तो करें, ऐसे जीवन कैसे चलेगा?"

संकर्षण ठाकुर ने अपनी पुस्तक में इसका जिक्र करते हुए लिखा की उनका मित्र नरेंद्र सिंह जिसने दोनों हारे गए चुनावों में नीतीश के लिए काम किया था, कुछ देर उन्हें समझाता रहा। राजनीति का खेल आप जैसे व्यक्ति के लिए नहीं है। अपना परिवार बचाओ, राजनीति के बारे में बाद में सोचना। जब आपकी आर्थिक स्थिति कुछ मजबूत हो जाए। आपको माता-पिता की देखभाल भी करनी है, आपकी एक पत्नी है. अब तो एक बेटा भी है। अब नीतीश ने साफ तौर पर सरकारी ठेकेदार बनने का फैसला कर लिया। जिससे सारी समस्याओं का समाधान हो सकता था। 

नीतीश फैसले पर अमल करना शुरू करते। इससे पहले नीतीश का एक सहयोगी आ पहुँचा और उसने अशिष्टतापूर्वक नीतीश के इस निर्णय को रोक दिया। वह भारी-भरकम स्थूलकाय आदमी था- विजय कृष्ण, मित्र और भावी शत्रु। विजय कृष्ण उन्हीं जगहों से आये थे। जहाँ से नीतीश आए थे, अठमलगोला से। दोनों के परिवार एक-दूसरे से परिचित थे। किशोर नीतीश तथा विजय कृष्ण एक-दूसरे के घरों में आते-जाते भी रहते थे। जब दोनों ने रेलगाड़ी से पटना जाना शुरू किया, विजय कृष्ण एक सीट नीतीश के लिए रख लिया करता था। क्योंकि वह अठमलगोला से गाड़ी पकड़ते थे, जो बख्तियारपुर से एक या दो स्टेशन पहले है। युवावस्था में दोनों की खूब पटती थी। खेल या मनबदलाव के लिए वे प्रायः साथ ही निकलते थे। राजनीति में दोनों की समान रुचि थी। दोनों राजनीति में आगे बढ़ने के लिए उतावले थे। बकौल विजय कृष्ण यह सच है कि हम बहुत निराश थे और हमारी सोचने की शक्ति चुक गई थी। मैं पढ़ाने की नौकरी तलाश रहा था, नीतीश इधर-उधर के पत्र-पत्रिकाओं आदि में लिखकर थोडा-वहत कमा लेते थे। समय बड़ा कठिन था. लेकिन उससे निकलने का रास्ता वह नहीं था, जो नीतीश ने चुना था। नीतीश जनता के बीच एक जाना-पहचाना चेहरा था। एक सूझ-बूझवाला राजनीतिज्ञ था, हम उसे किसी साइडी कंट्रेक्ट्री-बिजनिस के लिए नहीं छोड सकते थे।

नीतीश को समझाते हुए विजय कृष्ण ने कहा था की तुम्हारी परिस्थितियाँ कर्पूरी ठाकुर की परिस्थितियों से अधिक खराब नहीं है। कर्पूरी ठाकुर के पीछे कुछ भी नहीं था। उन्होंने हमेशा संघर्ष किया। कभी पैसा बनाने के बारे में नहीं सोचा और फिर भी वह सार्वजनिक जीवन में अपनी प्रतिबद्धताओं के प्रति अडिग बने रहे। नीतीश या मेरे लिए हालात कभी इतने बुरे नहीं रहे। जितने कर्पूरी ठाकुर के लिए रहे। मैं समझता हूँ मेरी यह बात नीतीश के दिमाग में बैठ गई। हालाँकि नीतीश ने विजय कृष्ण की रोषभरी सलाह मान ली थी। अंततः नीतीश 1985 में पूरी तैयारी के साथ हरनौत विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और जीत हासिल की। 

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