थाने के भीतर हीं हुआ था गैरकानूनी काम, पटना हाईकोर्ट ने पुलिस को लताड़ा, माना दोषी, सुना दिया ये बड़ा फैसला

कोर्ट ने आदेश की प्रति डीजीपी को भेजने का निर्देश दिया, ताकि प्रदेश के सभी पुलिस अधीक्षकों को गिरफ्तारी संबंधी दिशा-निर्देशों का पालन कराने के लिए चेताया जा सके।

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पटना हाईकोर्ट ने पुलिस को लताड़ा- फोटो : social Media

Patna: एक चौंकाने वाला मामला पटना हाई कोर्ट की सख्ती का कारण बन गया है। अदालत ने गैरकानूनी तरीके से तीन निर्दोष रिश्तेदारों को थाना में दिनों तक कैद रखने पर जहानाबाद पुलिस की जमकर फटकार लगाई और दो लाख रुपये का जुर्माना ठोंक दिया। हाई कोर्ट ने यह रकम सीधे दोषी पुलिसकर्मियों से वसूलने की छूट जहानाबाद के एसपी को दी है।

न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद और न्यायमूर्ति सौरेन्द्र पाण्डेय की खंडपीठ ने कहा कि गिरफ्तारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों की धज्जियां उड़ाना किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अदालत ने साफ कहा कि किसी भी व्यक्ति को कानूनी समय सीमा से अधिक थाने में कैद रखना गंभीर अपराध है। इस मामले में जहानाबाद थाना के एसएचओ, मखदुमपुर थाना के एसएचओ और जहानाबाद थाना के सहायक सब इंस्पेक्टर तीनों ने कानून को दरकिनार कर मनमानी की है।

हालांकि अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि दोषी पुलिस अधिकारियों पर अवमानना की कार्यवाही चलाई जा सकती थी, लेकिन भविष्य में सबक सिखाने के लिए फिलहाल केवल जुर्माना लगाया जा रहा है। साथ ही कोर्ट ने आदेश की प्रति डीजीपी को भेजने का निर्देश दिया, ताकि प्रदेश के सभी पुलिस अधीक्षकों को गिरफ्तारी संबंधी दिशा-निर्देशों का पालन कराने के लिए चेताया जा सके।

पूरा मामला अपहरण और हत्या से जुड़े थाना कांड संख्या 337/2025 का है। इस केस में शक के आधार पर पुलिस ने आवेदक के तीन रिश्तेदार—मंजू देवी, आदित्य राज और गौतम कुमार—को अलग-अलग जगहों से उठा लिया और कई दिनों तक थाने में कैद रखे रखा। परिजनों को उनकी कोई जानकारी नहीं दी गई। हद तो तब हो गई जब चार-पांच दिन तक परिवार वालों को यह तक नहीं बताया गया कि वे कहां हैं। थक-हारकर परिजनों ने मगध रेंज के डीआईजी से शिकायत की और फिर मामला हाई कोर्ट पहुंचा।

हाई कोर्ट की सुनवाई के दौरान सामने आया कि पुलिस ने एक को तो तुरंत छोड़ दिया, लेकिन बाकी दो को पुलिस बॉन्ड पर रिहा किया। अदालत में तीनों जिम्मेदार पुलिस पदाधिकारी खुद हाजिर हुए। कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं आम हो चुकी हैं और पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी संबंधी तय दिशा-निर्देशों को बार-बार नजरअंदाज कर रहे हैं।