Bihar Politics: महागठबंधन में जंग, ‘बड़े भाई’ की भूमिका कौन निभाएगा- राहुल गांधी या तेजस्वी यादव? नया अखाड़े का जानिए कारण

Bihar Politics: महागठबंधन में ‘बड़े भाई’ की भूमिका कौन निभाएगा ..राहुल गांधी या तेजस्वी यादव?..

 Rahul vs Tejashwi
बिहार में राहुल बनाम तेजस्वी बना नया अखाड़ा- फोटो : social Media

Bihar Politics: भारतीय राजनीति में गठबंधन हमेशा सत्ता तक पहुंचने का सबसे आसान रास्ता रहा है, लेकिन यह रास्ता उतना ही कांटों भरा भी है.  महागठबंधन भी आंतरिक खींचतान से जूझता दिख रहा है. ताज़ा उदाहरण है ‘वोटर अधिकार यात्रा’, जिसने बिहार की राजनीति को सिर्फ चुनावी मुद्दों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि एक नए नेतृत्व संघर्ष का मंच भी बना दिया है. सवाल साफ है महागठबंधन में ‘बड़े भाई’ की भूमिका कौन निभाएगा ..राहुल गांधी या तेजस्वी यादव?

सासाराम से शुरू हुई यह 16 दिन की यात्रा, जो 25 जिलों और 1300 किलोमीटर की दूरी तय करेगी, सतह पर तो वोटर लिस्ट की गड़बड़ी और चुनावी धांधली के खिलाफ है. लेकिन इसके पीछे असली जंग है ‘कद’ की राजनीति. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने जब मंच से कहा कि “राहुल रक्षक बनकर आए हैं, तेजस्वी उनका साथ दे रहे हैं”, तो इसने महागठबंधन के भीतर के समीकरणों को उजागर कर दिया. क्या यह बयान राहुल गांधी को महागठबंधन का ‘मुख्य चेहरा’ बनाने की रणनीति है? और अगर हां, तो तेजस्वी यादव कहां खड़े हैं?

तेजस्वी यादव, जिनकी पकड़ बिहार की जातीय राजनीति में गहरी है, बेरोजगारी और शिक्षा जैसे स्थानीय मुद्दों पर मजबूत छवि रखते हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी और तेजस्वी ने खुद को नीतीश कुमार के विकल्प के रूप में पेश किया था. वहीं कांग्रेस, जो बिहार की राजनीति में लंबे समय से हाशिए पर है, राहुल गांधी की यात्राओं से अपनी खोई जमीन वापस लाने की कोशिश कर रही है. ऐसे में राहुल का राष्ट्रीय चेहरा और तेजस्वी का स्थानीय प्रभाव – दोनों का टकराव अपरिहार्य दिख रहा है.

खरगे के बयान ने यह धारणा और मजबूत कर दी है कि कांग्रेस महागठबंधन की ‘ड्राइविंग सीट’ चाहती है. लेकिन आरजेडी कार्यकर्ता इसे ‘अतिक्रमण’ मानते हैं. उनके मुताबिक, बिहार में असली नेता तेजस्वी ही हैं, और राहुल की मौजूदगी तेजस्वी को बैकफुट पर धकेलने की कोशिश है. यही वजह है कि इस यात्रा में भीड़ तो जरूर उमड़ी, लेकिन उत्साह का फोकस बंटा हुआ दिखा.

राहुल गांधी का एजेंडा है वोट चोरी, ईवीएम और जनता के अधिकार जैसे राष्ट्रीय मुद्दे. दूसरी ओर, तेजस्वी बेरोजगारी और स्वास्थ्य जैसी जमीनी समस्याओं पर ज्यादा मुखर हैं. यह विभाजन साफ संकेत देता है कि महागठबंधन में रणनीति दो ध्रुवों पर खड़ी है  एक राष्ट्रीय और दूसरी स्थानीय. सवाल है कि मतदाता किसे ज्यादा गंभीरता से लेगा?

बिहार की राजनीति हमेशा से राष्ट्रीय विमर्श का केंद्र रही है. आज वही जमीन महागठबंधन में ‘बड़े भाई’ के विवाद की गवाह बन रही है. लालू यादव, दीपांकर भट्टाचार्य जैसे नेता इस एकता को मजबूत करने की कोशिश में लगे हैं, लेकिन अंदर ही अंदर राहुल बनाम तेजस्वी की रस्साकशी बढ़ती जा रही है. एनडीए ने इस मौके को भुनाने में देर नहीं की. चिराग पासवान ने इसे ‘नाटक’ करार दिया, तो सम्राट चौधरी ने तंज कसते हुए कहा  “लालू कागज लेकर बैठ गए”.

स्पष्ट है कि ‘वोटर अधिकार यात्रा’ महागठबंधन को मजबूती भी दे सकती है और भीतर से कमजोर भी. अगर यह यात्रा सफल रही, तो 2025 के विधानसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन नई ऊर्जा के साथ उतरेगा. लेकिन अगर ‘बड़े भाई’ की यह जंग तेज हुई, तो सबसे बड़ा फायदा एनडीए को होगा. बहरहाल मतदाता ही तय करेगा कि 2025 में कौन ‘बड़ा भाई’ साबित होगा, लेकिन फिलहाल बिहार की सियासत में नया अखाड़ा सज चुका है.