बिहार के 'बाबू साहेब' ने 80 वर्ष की उम्र में जीता था स्वतंत्रता का युद्ध, वीर कुंवर सिंह के विजय दिवस पर सीएम नीतीश ने बलिदान और राष्ट्रभक्ति को किया याद
80 साल की आयु में अदम्य साहस का परिचय देते हुए अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध जीतने वाले बिहार के 'बाबू साहेब' यानी वीर कुंवर सिंह के विजय दिवस पर पटना में भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस दौरान सीएम नीतीश का छोटू सिंह ने अभिनंदन किया.

Veer Kunwar Singh Vijayotsav : 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक बाबू वीर कुँवर सिंह के विजय दिवस के अवसर पर भव्य राजकीय समारोह का आयोजन किया गया। समारोह में बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद ख़ान, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, दोनों उपमुख्यमंत्री, राज्य के मंत्रीगण एवं सैकड़ों गणमान्य व्यक्तियों की गरिमामयी उपस्थिति रही। इस अवसर पर बिहार राज्य नागरिक परिषद के पूर्व महासचिव अरविन्द कुमार सिंह उर्फ छोट्टू सिंह ने मुख्यमंत्रीनीतीश कुमार को शॉल और मोमेंटो भेंट कर सम्मानित किया। समारोह में वीर कुंवर सिंह के बलिदान और राष्ट्रभक्ति को याद किया गया, सभी ने वीर कुंवर सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया एवं उनके योगदान को नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए सदैव तत्पर रहने का संकल्प लिया ।
सीएम नीतीश ने बाबू वीर कुंवर सिंह के बलिदान और राष्ट्रभक्ति को याद करते अपने संदेश में कहा कि '1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक बाबू वीर कुंवर सिंह जी के विजयोत्सव पर उन्हें सादर नमन। उनका अदम्य साहस, नेतृत्व और देशभक्ति की गाथा हम सबको हमेशा प्रेरणा देती रहेगी।'
कौन थे बाबू वीर कुंवर सिंह
भोजपुर जिले के शाही उज्जैनिया राजपूत परिवार में जन्मे कुंवर सिंह की पहचान केवल एक योद्धा के तौर पर नहीं है। अंग्रेजों के खिलाफ लगातार अभियानों की वजह से आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने स्कूल बनाने के लिए जमीनें दान दी। कौमी एकता के लिए आरा और जगदीशपुर में मस्जिद का निर्माण कराया। एक महादलित महिला को 52 बीघे का भूखण्ड दान कर दिया। आज इसे दुसाधि बधार के नाम से जाना जाता है। एक नेक इंसान की सारी खूबियां उनमें मौजूद थी।
बिहार के भोजपुर जिले जगदीशपुर रियासत में आजादी का लौह स्तंभ स्थापित किया। उसके पश्चात इन्होंने भारत के और भी कई जिले जैसे कानपुर, बांदा, लखनऊ, रीवा, रोहतास, आजमगढ़ जैसे राज्यों को ब्रिटिश शासन प्रणाली से मुक्त कराया। 1857 की क्रांति के पश्चात वीर बहादुर कुंवर सिंह का नाम भारतीय इतिहास के सुनहरे अक्षरों में लिखा जाने लगा।
अंग्रेजों को सात बार दिया शिकस्त
उनके बारे में कभी अंग्रेजों ने कहा था कि 'अच्छा है की यह योद्धा 80 साल का है, युवा होता तो अभी भारत छोड़ना पड़ता।' 'अस्सी सालों की हड्डी में जागा जोश पुराना था,सब कहते हैं कुंवर सिंह वीर मर्दाना था।' बाबू कुंवर सिंह तेगवा बहादुर,बंगला में उड़ेला अबीर। ढलती उम्र में नए जोश के सबसे बेहतरीन उदाहरण 'बाबू साहेब' ही है। जी हाँ रणबांकुरे वीर कुंवर सिंह। जिन्होंने एक दो बार नहीं। बल्कि सात बार अंग्रेजों को शिकस्त दिया। 1857 में दानापुर से गदर का नेतृत्व कर उन्होंने आजमगढ़ तक कब्जा किया।
80 साल की आयु में दिखाई वीरता
80 साल की आयु में उन्होंने लगभग 81 दिन तक आजमगढ़ को आज़ाद रखा। 23 अप्रैल 1858 को उन्होंने आज़ादी का ऐलान कर दिया। हालांकि बांह में लगी अंग्रेजों की गोली ने उनके शरीर के साथ दगाबाजी कर दी। ठीक तीन बाद ही 26 अप्रैल 1858 को उनका निधन हो गया।