Bihar Muslim representation: NDA की जीत के बाद मुस्लिम प्रतिनिधित्व 35 साल में सबसे कम, सिर्फ 10 विधायक चुनकर आए
Bihar Muslim representation: बिहार चुनाव 2025 में मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व गिरने के मुख्य कारण हैं। प्रमुख दलों ने मुस्लिम उम्मीदवारों को कम टिकट दिए। NDA के सोशल इंजीनियरिंग मॉडल में 'महिला + युवा (MY)' पर फोकस किया।
Bihar Muslim representation: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे जहां एनडीए की बड़ी जीत लेकर आए, वहीं एक और आंकड़ा चर्चा में रहा—इस बार सदन में मुस्लिम विधायकों की संख्या घटकर केवल दस रह गई। यह संख्या राज्य की मुस्लिम आबादी की तुलना में काफी कम मानी जा रही है और पिछले कई दशकों में ऐसा गिरावट वाला दौर बहुत कम देखने को मिला है।
सीमांचल क्षेत्र में इस चुनाव में AIMIM का प्रभाव पहले की तरह दिखाई दिया। पार्टी ने कई सीटों पर जोरदार चुनाव अभियान चलाया और अंततः पाँच स्थानों पर जीत हासिल की। अमौर, जोकीहाट, बहादुरगंज, कोचाधामन और बायसी जैसे इलाकों में AIMIM का आधार और मजबूत होता नजर आया, जहाँ स्थानीय मुद्दों और क्षेत्रीय पहचान ने पारंपरिक समीकरणों से अलग रुझान बनाया।
जदयू की टिकट रणनीति और मुस्लिम उम्मीदवारों की स्थिति
इस चुनाव में जेडीयू ने मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या सीमित रखी। चार नाम सामने आए, जिनमें केवल चैनपुर से मोहम्मद ज़मा खान ही आगे निकल सके। दिलचस्प बात यह रही कि चैनपुर मुस्लिम बहुल क्षेत्र नहीं है, लेकिन चुनावी माहौल और स्थानीय समीकरणों के कारण उनकी स्थिति मजबूत होती गई। जदयू की टिकट नीति में यह बदलाव मुस्लिम प्रतिनिधित्व पर सीधा असर डालता दिखा।
लोजपा (आरवी) का सीमांचल प्रयोग असर नहीं दिखा सका
बहादुरगंज में लोजपा (RV) ने मुस्लिम चेहरे को उतारकर नई रणनीति बनाई थी, पर यह कदम सीमांचल के राजनीतिक समीकरणों को नहीं बदल पाया। यहाँ AIMIM और कांग्रेस के बीच मुकाबला अधिक प्रभावी रहा और अंततः लोजपा का उम्मीदवार चुनाव में पिछड़ गया। इस क्षेत्र में लोजपा की कोशिशों को समर्थन नहीं मिल पाया और उसका प्रभाव सीमित ही रहा।
राजद को दो मुस्लिम सीटों से राहत
राजद ने इस बार मुस्लिम चेहरों को कम टिकट दिए, लेकिन दो जगहों पर पार्टी को जीत मिली। बिस्फी से आसिफ अहमद और रघुनाथपुर से ओसामा साहब ने पार्टी को राहत दी। विशेष रूप से रघुनाथपुर की जीत इसलिए खास रही क्योंकि यह सीट लंबे अंतराल के बाद फिर से उसी परिवार के पास लौटी जिसने यहां कई दशकों तक राजनीतिक उपस्थिति बनाए रखी थी।
कांग्रेस ने सीमांचल में अपने गढ़ को बचाए रखा
कांग्रेस ने भी सीमांचल के दो क्षेत्रों में अपनी परंपरागत पकड़ बनाए रखी। किशनगंज और अररिया से उसके उम्मीदवारों को जीत मिली, जिससे पार्टी को इस क्षेत्र में थोड़ी मजबूती मिली। हालांकि पार्टी का एक बड़ा चेहरा इस बार जीत हासिल नहीं कर सका, पर कुल मिलाकर सीमांचल में कांग्रेस की स्थिति पहले जैसी ही बनी रही।
बिहार विधानसभा में पिछले वर्षों का प्रतिनिधित्व कैसा रहा?
बिहार में मुस्लिम विधायकों की संख्या पहले भी उतार–चढ़ाव से गुजरती रही है। एक समय में यह संख्या बीस से ऊपर रहती थी और 2015 में तो यह लगभग पच्चीस तक पहुंच गई थी। इसके बाद अगले चुनावों में संख्या स्थिर होने के बाद 2025 में यह अचानक दस पर आकर ठहर गई। यह गिरावट बताती है कि टिकट वितरण, क्षेत्रीय दलों की रणनीति और सीमांचल के बदलते राजनीतिक समीकरणों ने मुस्लिम प्रतिनिधित्व को सीधे प्रभावित किया है।
2025 का चुनाव एक नया राजनीतिक संकेत
बिहार चुनाव 2025 में मुस्लिम प्रतिनिधित्व का कम होना केवल आंकड़ों का बदलाव नहीं है। यह चुनावी रणनीति, दलों की प्राथमिकताओं और क्षेत्रीय राजनीति की नई दिशा का संकेत भी है। सीमांचल में AIMIM का उभार, महागठबंधन और एनडीए—दोनों के टिकट वितरण में बदलाव तथा कई सीटों पर नए सामाजिक गठजोड़ इस परिणाम की बड़ी वजहों के रूप में उभरकर सामने आए हैं।