Bihar former MLA pension: बिहार में विधायकों के पेंशन का गणित वेतन से भी ज़्यादा, जानिए जनता के कितने पैसे मिलते हैं माननीय को पेंशन में, इसकारण मिलता है वेतन से पेंशन ज्यादा

विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों का मासिक वेतन भले ही 50 हज़ार रुपए हो, मगर पेंशन का खेल इतना पेचीदा और दरियादिल है कि कई पूर्व विधायकों को सैलरी से भी कहीं अधिक पेंशन मिल रही है। ...

Bihar MLAs Pension Surpasses Salary Burden
जनता की जेब पर भारी माननीयों की मेहरबानी, - फोटो : social Media

Bihar former MLA pension: बिहार की सियासत में इस वक़्त सबसे गर्म मुद्दा है,माननीयों की पेंशन बनाम जनता का बोझ। विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों का मासिक वेतन भले ही 50 हज़ार रुपए हो, मगर पेंशन का खेल इतना पेचीदा और दरियादिल है कि कई पूर्व विधायकों को सैलरी से भी कहीं अधिक पेंशन मिल रही है। यह अजब-गजब व्यवस्था बिहार की राजनीतिक और प्रशासनिक सोच पर कई सवाल खड़े करती है।

बिहार में पेंशन का नियम ऐसा है कि कोई भी विधायक अपनी पहली ही टर्म के बाद 45 हज़ार रुपए महीना पेंशन का हकदार हो जाता है। हर साल इसमें 4 हज़ार रुपए की बढ़ोत्तरी होती रहती है। नतीजा यह कि पाँच साल विधायक रहने के बाद पेंशन 61 हज़ार रुपए, दस साल रहने पर 81 हज़ार, पंद्रह साल पर 1 लाख 1 हज़ार और बीस साल पर यह राशि 1.21 लाख रुपए तक पहुँच जाती है। यानी जितना अधिक कोई सत्ता से जुड़ा रहा, उतनी अधिक रियायतें और इनायतें मिलती रहीं।

सीधा गणित ये है कि माननीयों के पेंशन सबको सामान नहीं मिलता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि माननीय कितने वर्षों तक विधानमंडल  में रहे हैं। इनको पेंशन मद में 45 हजार रुपया मिलता है। पर उन माननीयों को ज्यादा मिलता है जो ज्यादा वर्षों तक विधायक रहे हैं। यह राशि प्रति वर्ष 4 हजार की दर से मूल पेंशन की राशि में जुड़ कर मिलता है। यानि कोई 10 वर्षों से माननीय हैं तो उन्हें मूल पेंशन 45 हजार की राशि में 40 हजार और जुड़ जाएंगे।

सबसे अधिक पेंशन पाने वाले पूर्व विधायक सत्यदेव नारायण आर्य हैं, जिन्हें 1.73 लाख रुपए महीना मिलता है। 33 साल तक विधायक, मंत्री और फिर हरियाणा व त्रिपुरा के राज्यपाल रह चुके आर्य ‘पेंशन सिंहासन’ के शीर्ष पर हैं। वहीं 23 साल विधायक रहीं बीमा भारती महिलाओं में सबसे आगे हैं, जिन्हें 1.33 लाख रुपए पेंशन मिलती है। इसके अलावा लंबी राजनीतिक उम्र वाले जगदीश शर्मा (1.65 लाख), अवधेश कुमार (1.41 लाख) और राजद के वरिष्ठ नेता जगदानंद सिंह (1.37 लाख) भी इस सूची में खास मुकाम रखते हैं।

पेंशन ही नहीं, सुविधा का ‘सियासी पैकेज’ और भी भरपूर है। पूर्व विधायकों को हर साल 2 लाख रुपए के फ्लाइट-ट्रेन कूपन और वर्तमान माननीयों को 4 लाख रुपए के यात्रा कूपन मिलते हैं, जिन पर वे तीन से चार लोगों को साथ ले जा सकते हैं। यात्रा का सबूत सिर्फ टिकट और बोर्डिंग पास से पूरा हो जाता है। इसके अलावा माननीयों और उनके जीवनसाथी को CGHS दरों पर इलाज की सुविधा मिलती है, जिसका पूरा खर्च सरकार वहन करती है। माननीय के निधन के बाद भी परिवार को 75 फीसदी पेंशन जारी रहती है।

यह पूरा ढांचा जनता के बीच सवाल खड़े करता है कि क्या यह व्यवस्था जनसेवा है या स्वयंसेवा? क्या आम नागरिक, जो महीनों की नौकरी में इतनी रकम नहीं कमा पाता, उसकी मेहनत से जुटे कर के पैसों से ऐसी अतिशय सुविधाएँ उचित हैं? चुनावी मैदान में जनता से बड़े-बड़े वादे करने वाले माननीयों को क्या अब इस पेंशन व्यवस्था पर भी ईमानदार आत्ममंथन नहीं करना चाहिए?