Bihar SIR: बिहार में SIR सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू,जानें किन मुद्दों पर हुई बहस
Bihar SIR: बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू। जानें आयोग और याचिकाकर्ताओं के बीच की प्रमुख दलीलें।

Bihar SIR: बिहार में इस वर्ष के अंत में संभावित विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की मतदाता सूची को लेकर चल रहे विवाद ने अब देश की सर्वोच्च अदालत का दरवाज़ा खटखटा दिया है। 27 जुलाई 2025 (सोमवार) को न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ SIR आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार करेगी।यह याचिकाएं नागरिक संगठनों, राजनीतिक दलों और व्यक्तियों द्वारा दायर की गई हैं जो दावा कर रहे हैं कि 24 जून 2025 को जारी एसआईआर आदेश संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और लाखों मतदाताओं को मतदान के अधिकार से वंचित कर सकता है।
निर्वाचन आयोग की दलीलें: चुनाव की शुचिता के लिए जरूरी है SIR
चुनाव आयोग ने कोर्ट में दायर अपने विस्तृत हलफनामे में यह स्पष्ट किया है कि विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) का उद्देश्य अपात्र मतदाताओं को सूची से हटाना है जिससे चुनाव की निष्पक्षता और विश्वसनीयता सुनिश्चित की जा सके।
आयोग का कहना है कि SIR प्रक्रिया सभी प्रमुख राजनीतिक दलों की सहमति से शुरू की गई थी।इस प्रक्रिया में 1.5 लाख से अधिक बीएलए (बूथ लेवल एजेंट) शामिल हैं।अपात्र व्यक्तियों को सूची से हटाकर, मतदाता सूची को पारदर्शी और स्वच्छ बनाया जा रहा है।इसके साथ ही आयोग ने यह आरोप भी लगाया कि अब वही राजनीतिक दल, जो पहले इस प्रक्रिया में भागीदार थे, राजनीतिक फायदे के लिए इसका विरोध कर रहे हैं।
याचिकाकर्ताओं की आपत्तियां असंवैधानिक और पक्षपातपूर्ण प्रक्रिया
मुख्य याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और अन्य ने कई बिंदुओं पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों (ERO) को अत्यधिक और अनियंत्रित अधिकार दिए गए हैं जिससे मनमाने फैसलों की आशंका बढ़ती है। आधार कार्ड और राशन कार्ड जैसे सामान्य पहचान दस्तावेजों को अस्वीकार कर देना न केवल अनुचित है, बल्कि इसका कोई तर्कसंगत कारण भी आयोग ने नहीं दिया है। याचिकाओं में कई उदाहरण हैं जहां BLO न तो घर पहुंचे और न ही आसपास के क्षेत्र में, फिर भी मतदाताओं के फॉर्म जमा किए गए जिनमें जाली हस्ताक्षर पाए गए।
राजद के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद मनोज झा ने अपने प्रत्युत्तर हलफनामे में स्पष्ट कहा कि यह प्रक्रिया मतदाता अधिकारों का चुपचाप उल्लंघन है और इससे लाखों लोग अपने लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित हो सकते हैं।
न्यायपालिका की भूमिका और पिछली टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट की पिछली सुनवाई (10 जुलाई) में न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने स्पष्ट किया था किSIR प्रक्रिया के दौरान आधार कार्ड, राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र जैसे दस्तावेजों को पहचान के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। इससे यह संकेत मिलता है कि अदालत नागरिक अधिकारों की रक्षा को प्राथमिकता दे रही है, जबकि निर्वाचन आयोग की प्रक्रिया की संवैधानिकता और पारदर्शिता की भी जांच कर रही है।