Bihar Vehicle: बिहार में गाड़ियों की फिटनेस जांच में भारी गड़बड़ी! बिना जांच के जारी हो रहे सर्टिफिकेट, सड़क हादसों का बढ़ता खतरा
Bihar Vehicle: बिहार में गाड़ियों की फिटनेस जांच में गड़बड़ी उजागर हुई है। निजी केंद्रों द्वारा बिना सही जांच के सैकड़ों गाड़ियों को फिटनेस प्रमाण पत्र जारी किया जा रहा है, जिससे सड़क हादसों का खतरा बढ़ रहा है।

Bihar Vehicle: बिहार में गाड़ियों की फिटनेस जांच व्यवस्था गंभीर सवालों के घेरे में है। हाल ही में ओडिशा और पश्चिम बंगाल सरकारों ने केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय को पत्र लिखकर शिकायत की है कि बिहार में कई ऐसी गाड़ियों को फिटनेस सर्टिफिकेट जारी किए जा रहे हैं, जो वहाँ कभी चलाई भी नहीं गईं।इस पत्र में इन राज्यों ने आग्रह किया है कि बिहार के परिवहन विभाग को ठोस कार्रवाई का निर्देश दिया जाए, ताकि फिटनेस सर्टिफिकेट का दुरुपयोग रोका जा सके।
बिहार के 8 निजी फिटनेस सेंटर: नियमों का खुला उल्लंघन
बिहार में फिलहाल कुल 8 निजी ऑटोमेटिक टेस्टिंग सेंटर (ATS) कार्यरत हैं:
पटना में 3 और दरभंगा, भागलपुर, हाजीपुर, नालंदा और सासाराम में 1-1
नियम क्या कहते हैं?
नई गाड़ियों को हर दो साल में एक बार फिटनेस जांच से गुजरना अनिवार्य है।8 साल से पुरानी व्यावसायिक गाड़ियों को हर साल फिटनेस टेस्ट कराना होता है। एक गाड़ी की जांच में औसतन 15-20 मिनट का समय लगता है। इसका मतलब यह है कि कोई भी ATS सेंटर 24 घंटे काम करके अधिकतम 100 गाड़ियों की जांच कर सकता है। लेकिन वास्तविकता में दिन में 250-300 गाड़ियों को बिना समुचित जांच के सर्टिफिकेट दे दिए जा रहे हैं।
अनदेखी और मिलीभगत विभागीय निगरानी का अभाव
राज्य सरकार की नीति कहती है कि हर 6 महीने पर इन केंद्रों की जांच होनी चाहिए, लेकिन वास्तविकता कुछ और है:अब तक केवल 0.16% केंद्रों की ही निगरानी जांच की गई।11,235 गाड़ियों का फिटनेस टेस्ट लंबित है, जो कुल गाड़ियों का 1.09% है।
अब तक केवल 70 बसें, लगभग 700 ट्रक और 162 ऑटो ही फिटनेस में फेल घोषित किए गए हैं।इससे यह साफ झलकता है कि फिटनेस जांच एक औपचारिकता भर बनकर रह गई है। विभाग के अधिकारियों और केंद्र संचालकों के बीच मिलीभगत के कारण मेरी मर्जी मॉडल पर सिस्टम चल रहा है।
सड़क दुर्घटनाओं की सीधी कड़ी अनफिट वाहन हैं खतरा
बिना फिटनेस के प्रमाण पत्र पाए वाहन सीधे सड़क हादसों का कारण बनते हैं। ब्रेक फेल, स्टीयरिंग फेल, खराब टायर और टर्निंग लाइट्स का न चलना – ये सब दुर्घटनाओं की मुख्य वजहें हैं।हर साल बिहार में सैकड़ों जानें जाती हैं, जिनमें से बड़ी संख्या उन वाहनों की होती है जो तकनीकी रूप से सड़क पर चलने योग्य नहीं होते।