Bihar Politics on BHURA BAAL Saaf Karo: भूरा बाल की गूंज, बिहार की सियासत में फिर उठा जातीय बवंडर, तेजस्वी के A to Z फार्मूले का क्या होगा....

Bihar Politics on BHURA BAAL Saaf Karo:क्या तेजस्वी यादव “भूरा बाल साफ करो” की जातीय बवंडर को थाम पाएंगे, या फिर 1996 का इतिहास एक बार फिर 2025 की राजनीति को दिशा देगा?..

BHURA BAAL Saaf Karo
भूरा बाल साफ करो की गूंज- फोटो : social Media

Bihar Politics on BHURA BAAL Saaf Karo: 1996 की सियासी सुबह, जब अख़बारों में सुर्ख़ी बनी.... “भूरा बाल साफ करो”...तो पूरे बिहार की राजनीति में भूचाल आ गया था। यह नारा उस दौर के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के नाम से जोड़ा गया, हालाँकि उन्होंने कुछ दिन बाद  प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सफाई दी कि यह उनकी ज़ुबान से कभी निकला ही नहीं। लेकिन सच यह है कि उस बयान ने बिहार की सियासत को गहरे तक हिला दिया था। उस समय जातीय समीकरण और सामाजिक संघर्ष राजनीति की धुरी बन गए थे।

आज, लगभग तीन दशकों बाद वही पुराना जख़्म फिर हरा हो गया है। राजद विधायक मुन्ना यादव ने हाल ही में चुनावी माहौल में उसी विवादित नारे को दोहराते हुए कहा—“यहाँ शर्मा, मिश्रा का कुछ नहीं होगा, भूरा बाल साफ करना होगा।” उनके सुर में सुर मिलाते हुए राजद के सीनियर नेता अशोक महतो ने भी तंज कसा कि “90 फीसदी पर 10 फीसदी कभी हावी नहीं हो सकते, और 10 फीसदी यह तय नहीं करेंगे कि मुख्यमंत्री कौन होगा।” इस बयान ने एक बार फिर बिहार की राजनीति को गरमा दिया।

अशोक महतो का विवादित अतीत भी इस आग में घी डालने जैसा है। अपराध जगत से राजनीति में आए महतो की छवि हमेशा विवादों से घिरी रही। उनकी पत्नी अनीता महतो 2024 लोकसभा चुनाव में हार चुकी हैं। ऐसे में उनके विवादित बोल राजद की मुश्किलें और बढ़ा रहे हैं।

तेजस्वी यादव, जिन्होंने अपने नेतृत्व में A to Z का नारा दिया था—यानी सभी जातियों और वर्गों को साथ लेकर चलने की राजनीति, उनकी इमेज पर यह बयान भारी पड़ रहा है। तेजस्वी ने कभी कहा था कि राजद अब जातीय खांचे से निकलकर सर्वसमावेशी राजनीति करेगी। मगर उनके ही विधायक और नेता उस बनी-बनाई तस्वीर को धुंधला कर रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह भी है कि तेजस्वी यादव ने इन विवादित बयानों पर अब तक चुप्पी साधी हुई है।

बिहार का जातीय समीकरण हमेशा से राजनीति का निर्णायक पहलू रहा है। जाति सर्वेक्षण के मुताबिक़ अति पिछड़ा वर्ग 27.12 फीसदी, अत्यंत पिछड़ा 36.01 फीसदी, अनुसूचित जाति 19.65 फीसदी, अनुसूचित जनजाति 1.68 फीसदी और सवर्ण वर्ग 15.52 फीसदी हैं। सवर्णों में ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और कायस्थ प्रमुख हैं। माना जाता है कि सवर्ण वोट बैंक बिहार की सत्ता का दिशा निर्धारण करता है। ऐसे में राजद नेताओं के विवादित बोल साफ संकेत देते हैं कि यह मुद्दा चुनावी ज़मीन पर जातीय ध्रुवीकरण पैदा कर सकता है।

भाजपा ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। प्रदेश प्रवक्ता प्रभाकर मिश्रा ने कहा कि “1996 में लालू यादव ने जो बोया था, वही अब तेजस्वी यादव की पार्टी काट रही है। उन्होंने खुद को A to Z की पार्टी बताया, लेकिन उनके विधायक वही पुराना ज़हर उगल रहे हैं।”

वहीं कांग्रेस  ने भी तल्ख़ टिप्पणी की देश को जाति और धर्म के नाम पर बाँटना लोकतंत्र के खिलाफ़ है। इस तरह के बयान नफ़रत और बंटवारे की राजनीति को हवा देते हैं।

राजद की अंदरूनी राजनीति भी इस प्रकरण से विचलित नज़र आती है। विधायक और नेता चुप्पी साधे हैं। बयान की निंदा तक कोई सामने नहीं आया। इससे तेजस्वी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मुहाने पर खड़ा है। ऐसे समय में ‘भूरा बाल साफ करो’ जैसी पुरानी गूंज, तेजस्वी के A to Z एजेंडे को कमजोर कर रही है। सवाल साफ है कि क्या तेजस्वी यादव इस जातीय बवंडर को थाम पाएंगे, या फिर 1996 का इतिहास एक बार फिर 2025 की राजनीति को दिशा देगा?