'मेरा समय बर्बाद न करें'... पदभार संभालते ही बमके दीपक प्रकाश, उपेंद्र कुशवाहा को भी नागवार गुजर रहा बेटे के मंत्री बनने पर सवाल करना

दीपक प्रकाश को मंत्री बनाने को लेकर उपेंद्र कुशवाहा आलोचनाओं में घिरे हैं. दीपक प्रकाश ने विभाग का पदभार संभाला तो उनसे भी जब इसी को लेकर सवाल किया गया तो वे बमक गए.

Deepak Prakash
Deepak Prakash - फोटो : news4nation

Dipak Prakash : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में किसी सदन का सदस्य नहीं होने के बाद भी मंत्री बने दीपक प्रकाश ने शनिवार को पंचायती राज विभाग का पदभार संभाला. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा को बिहार सरकार में एक मंत्री पद मिला है. कुशवाहा ने अपने बेटे दीपक प्रकाश को मंत्री बनवा दिया. इसे लेकर उपेंद्र कुशवाहा आलोचनाओं में घिरे हैं. दीपक प्रकाश ने विभाग का पदभार संभाला तो उनसे भी जब इसी को लेकर सवाल किया गया तो वे बमक गए. 


उन्होंने कहा, मेरा समय बर्बाद न करें. मुझे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जो भरोसा दिखाया है, उस पर खरा उतरना है. हमारा हर एक मिनट जनता के विकास और उनके हित में उपयोग होना चाहिए. दीपक प्रकाश ने अपने मंत्री बनाए जाने पर उठ रहे सवालों से कन्नी काटने की कोशिश की. 


दीपक प्रकाश ने कहा कि, हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था में, लोकतांत्रिक व्यवस्था में पंचायती राज का एक अहम स्थान है. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के नेतृत्व में बिहार में पंचायती राज मंत्री के रुप में काम करने का अवसर मिल रहा है. उन्होंने कहा कि वो अपने दायित्व को निभाएंगे. पंचायती राज व्यवस्था को और लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए काम करेंगे.


उपेंद्र कुशवाहा ने दी थी सफाई

परिवारवादी राजनीति को बढ़ावा देने पर उठ रहे सवालों पर उपेंद्र कुशवाहा ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा,  'मेरा पक्ष है कि अगर आपने हमारे निर्णय को परिवारवाद की श्रेणी में रखा है, तो जरा समझिए मेरी विवशता को। पार्टी के अस्तित्व व भविष्य को बचाने व बनाए रखने के लिए मेरा यह कदम जरुरी ही नहीं अपरिहार्य था। मैं तमाम कारणों का सार्वजनिक विश्लेषण नहीं कर सकता, लेकिन आप सभी जानते हैं कि पूर्व में पार्टी के विलय जैसा भी अलोकप्रिय और एक तरह से लगभग आत्मघाती निर्णय लेना पड़ा था। जिसकी तीखी आलोचना बिहार भर में हुई। उस वक्त भी बड़े संघर्ष के बाद आप सभी के आशीर्वाद से पार्टी ने सांसद, विधायक सब बनाए। लोग जीते और निकल लिए।  झोली खाली की खाली रही। शुन्य पर पहूंच गए। पुनः ऐसी स्थिति न आए, सोचना ज़रूरी था।'


उन्होंने कहा , 'सवाल उठाइए, लेकिन जानिए। आज के हमारे निर्णय की जितनी आलोचना हो, लेकिन इसके बिना फिलहाल कोई दूसरा विकल्प फिर से शुन्य तक पहुंचा सकता था। भविष्य में जनता का आशीर्वाद  कितना मिलेगा, मालूम नहीं। परन्तु खुद के स्टेप से शुन्य तक पहुंचने का विकल्प खोलना उचित नहीं था। इतिहास की घटनाओं से यही मैंने सबक ली है।  समुद्र मंथन से अमृत और ज़हर दोनों निकलता है। कुछ लोगों को तो ज़हर पीना ही पड़ता है। वर्तमान के निर्णय से परिवारवाद का आरोप मेरे उपर लगेगा। यह जानते/समझते हुए भी निर्णय लेना पड़ा, जो मेरे लिए ज़हर पीने के बराबर था। फिर भी मैंने ऐसा निर्णय लिया। पार्टी को बनाए/बचाए रखने की जिद्द को मैंने प्राथमिकता दी। अपनी लोकप्रियता को कई बार जोखिम में डाले बिना कड़ा/बड़ा निर्णय लेना संभव नहीं होता। सो मैंने लिया।'


पत्नी को भी दिया था टिकट

उपेंद्र कुशवाहा को बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की ओर से जो सीटें दी गई उसमें एक सीट पर उन्होंने अपनी पत्नी स्नेहलता को उम्मीदवार बनाया. स्नेहलता चुनाव जीतकर विधायक बनी हैं जबकि रालोमो को कुल 4 विधायक जीते हैं. ऐसे में रालोमो प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा खुद राज्यसभा सांसद हैं, उनकी पत्नी विधायक हो गई हैं और बेटा दीपक प्रकाश जो न तो विधायक हैं और ना ही एमएलसी वह अब मंत्री बन गए हैं.