Tulsi Birth Anniversary : "हम चाकर रघुबीर के", समय के साथ और प्रासंगिक होते गए गोस्वामी तुलसीदास, 126 सालों तक जगाया प्रभु श्रीराम का अलख

Tulsi Birth Anniversary : तुलसीदास की समय के साथ प्रासंगिकता बढ़ती ही जा रही है. 126 सालों तक गोस्वामी तुलसीदास प्रभु श्रीराम का अलख जगाते रहे.......पढ़िए आगे

Tulsi Birth Anniversary : "हम चाकर रघुबीर के", समय के साथ और
तुलसी जयंती आज - फोटो : SOCIAL MEDIA

N4N DESK : गोस्वामी तुलसीदास के इस धरा से प्रयाण किये 402 वर्ष गुजर गए हैं। लेकिन आज भी तुसली उतने ही प्रासंगिक हैं, जितना 500 साल पहले थे। यदि भारत की आत्मा प्रभु श्रीराम हैं तो तुसली को भारत की अभिव्यक्ति कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। चित्रकूट से कोई 40 किमी दूर राजापुर के ब्राह्मण कुल में साल 1497 की श्रवण शुक्ल सप्तमी को जन्मे गोस्वामी तुलसीदास ने अपने 126 साल के जीवनकाल में करीब पांच बड़े और सात छोटे ग्रंथों की रचना की। किशोर अवस्था में वे विवाह बंधन में बंधे। लेकिन बहुत जल्द वैराग्य के बाद स्वामी रामानंद की भक्ति परंपरा के वाहक बन गए। 16 वीं शताब्दी के इस महान रामभक्त ने शब्दों का ऐसा दीप जलाया की, उनकी रचना रामचरितमानस आज घर घर में पूजनीय हो गयी। 

संस्कृत में पारंगत होते हुए उन्होंने रामचरितमानस की रचना के लिए लोकभाषा अवधी को चुना। यहीं वजह है की तुलसीदास की कविताई की भारत की गाँव और कस्बों में 24 घंटों तक अखंड पाठ किया जाता है। यहीं नहीं चित्रकूट और अयोध्या के कई इलाकों में 100 सालों से अधिक से रामचरितमानस का अखंड पाठ किया जा रहा है। उनकी के रचनाओं का उद्देश्य संयुक्त परिवार, भाइयों के बीच प्रेम, एक पत्नीत्व की भावना, पति के प्रति निष्ठा, प्राणी मात्र के प्रति संवेदना, प्रकृति से साहचर्य और लोकहित के लिए दुष्टों का नाश जैसे राजकीय कर्त्तव्य का प्रचार प्रसार करना था। तुलसी के नायक श्रीराम इन जीवन मूल्यों के प्रतीक और प्रतिमान हैं। उनका लिखा हनुमान चालीसा आज क्षेत्र, भाषा और संस्कृति की सीमाओं से पूरे राष्ट्र में स्वीकार्य भक्तिगान है तो उनकी कीर्ति का आधार बनी रामचरितमानस की असंख्य चौपाइयां भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में लोकप्रिय बनी हुई हैं।  

गोस्वामी तुलसीदास के जीवन के बात करें तो उस दौर में भारत राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक स्थिति के नाजुक मोड़ पर था। इस दौरान तुलसीदास अकबर के शासनकाल में रहे और जहाँगीर के भी शासनकाल में। उस समय भी तुलसी ने अकबर के दरबारी बनने के आमंत्रण को ठुकरा दिया। उन्होंने साफ़ साफ़ कह दिया की "हम चाकर रघुबीर के पटो लिखो दरबार, तुलसी अब का होएंगे नर के मनसबदार। तुलसी कभी अकबर के दिन-ए-इलाही के झांसे में नहीं आये। साथ ही उन्होंने गाँव गाँव में अभियान चलाकर सनातन धर्म को संपोषित करने का बीड़ा उठाया। 

आज भी तुलसी उतने ही प्रासंगिक है जितने सैकड़ों साल पहले थे। मानस और चालिसा के रचयिता तुलसी को भारत में विस्मृत नहीं किया जा सकता। उनका रचा ही भक्ति का आधार बनता है। यहीं वजह है की उनके समकालीन भी उनकी सराहना किये बिना नहीं रह पाए। उनके समकालीन कवि रहीम ने कहा था, 'सुरतिय, नरतिय, नागतिय अस चाहती सब कोय, गोद लिए हुलसी फिरे तुलसी सो सुत होय।' अर्थात् देवताओं और मनुष्यों सहित अन्य सभी की स्त्रियां अपने बेटों को गोद में उठाए प्रसन्न होती हैं। वे सब यही कामना करती हैं कि उनका बेटा तुलसी के समान प्रतिभावान, भक्त और यशस्वी हो।