प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में सरकारी संस्थाओं की तरह फीस लेने के फैसले पर लगी रोक, पटना हाईकोर्ट ने नीतीश सरकार को दिया झटका

प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में सरकारी संस्थाओं की तरह फीस लेने के

Patna - पटना हाईकोर्ट ने राज्य के विभिन्न निजी मेडिकल कालेजों में फीस पचास फीसदी सीटों पर  सरकारी मेडिकल कालेजों के तरह लिए जाने के  मामलें पर सुनवाई की।जस्टिस अनिल कुमार सिन्हा ने लार्ड बुद्धा कोशी मेडिकल कालेज एंड हॉस्पिटल,सहरसा और अन्य मेडिकल कॉलेज की याचिका पर  सुनवाई करते हुए राज्य सरकार द्वारा इस सम्बन्ध में 29 जुलाई,2025 को जारी पत्र पर रोक लगा दिया है।कोर्ट ने राज्य सरकार व एनएमसी  को छः सप्ताह में जवाब देने का निर्देश दिया है।

याचिकार्ता के अधिवक्ता श्री रौशन के द्वारा बताया गया कि याचिका में ये कहा गया कि राज्य सरकार ने 29 जुलाई ,2025 को एक पत्र जारी किया।इसमें ये कहा गया है कि इन निजी मेडिकल कालेजों में पचास  सीटों पर सरकारी मेडिकल कालेज की तरह फीस लिया जाये।इससे निजी मेडिकल कालेजों के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो गया है।

बढ़ानी पड़ेगी छात्रों की फीस

राज्य सरकार ने ये व्यवस्था इसी सत्र से प्रारम्भ करने का निर्देश दिया है।इन कालेजों के प्रबंधकों का कहना है कि  यदि इन मेडिकल कालेजों में सरकारी मेडिकल कालेजों की तरह फीस लेने से जो आर्थिक नुकसान होगा,उसे निजी मेडिकल कालेजों के छात्रों की फीस दोगुनी कर भरपाई करना पड़ेगा। उनका कहना है कि  एनएमसी का उद्देश्य मेडिकल शिक्षा लाभ के लिए नहीं के सिद्धांत पर चलाना है ।

कम  हो जाएगी आए

इन निजी मेडिकल कालेजों के संचालकों का कहना है कि  इन निजी मेडिकल कालेजों को व्यवस्थित ढंग से सालाना सौ करोड़ रुपये का खर्च है।इनमें स्टाफ,शिक्षक,लबोरेटरी,आधुनिकतम  उपकरण खरीदने जैसे व्यय होते है।

उन्होंने बताया कि  यदि पचास फीसदी सरकारी मेडिकल कालेजों के तरह  छात्रों का नामांकन फीस लिया जायेगा,तो इससे निजी मेडिकल कालेजों  की आय में   काफी कम हो जाएगी। निजी मेडिकल कालेजों व इनसे जुड़े बहुत सारे अस्पतालों में हजारों की तादाद में लोग काम करते है।अगर इनके आय में कमी होगी,तो बहुत से लोग बेरोजगार हो जाएंगे।

छात्रों को देना पड़ेगा दो करोड़ फीस

इन निजी मेडिकल कालेजों में यदि सरकारी मेडिकल कालेजों की तरह फीस ले कर जो नामांकन होंगे,तो निजी मेडिकल कालेजों के कोटे से नामांकन लेने वाले छात्रों की फीस डेढ़ से दो करोड़ रुपये हो जायेगा।ये खर्च आम लोगों के पहुँच से बाहर हो जायेगा।साथ बिहारी छात्रों का देश और दूसरे देशों में  मेडिकल शिक्षा के लिए पलायन करने लगेंगे।

संचालकों का कहना है कि  इससे सम्बन्धित मामलें सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए लंबित है।सुप्रीम कोर्ट के निर्णय आने के बाद ही राज्य सरकार इस संबंध में निर्णय ले।