Holi 2025: रंग न होते तो होली में महबूबा के गालों को छूने के बहाने न मिलते, होली विशेष
Holi 2025: होली न केवल रंगों का त्योहार है। बल्कि यह सामाजिक एकता और हमारी खुशियों का भी प्रतीक है।

Holi 2025: पर्व और त्योहार ही तो भारत की विशिष्ट पहचान है। जो हमें और देशों से अलग करता है। यह हमारे सभ्यता, संस्कृति और सामाजिक ताने बाने का सम्मिश्रण होता है। होली को ही ले लीजिए। यह न केवल रंगों का त्योहार है। बल्कि यह सामाजिक एकता और हमारी खुशियों का भी प्रतीक है। इसमें रंगों का इतना महत्व क्यों है। इसे समझने के लिए, जरा गौर फरमाईयेगा। एक प्रेमी इंसान ने अपनी महबूब से कहा कि
अगर रंग न होते तो तेरे होठों को गुलाबी कौन कहता ।
तुम्हारी आंखें लाल देख इन्हें शराबी कौन कहता।
कौन कहता कि जुल्फें बादल हैं, कौन लिखता की घटाएं काजल हैं।
इंद्रधनुष की खूबसूरती का जिक्र न होता, फूलों के खिलने और मुरझाने का फिक्र न होता।
रंग न होते तो कौन श्रृंगार पर लिखता कविताएं, तेरी लाल बिंदी और हरी चूड़ियों को भी सब कहते सदाएं।
न माएं सुना पाती रंग बिरंगी परियों की कहानियां, बागों में एक दूसरे का हाथ पकड़े बिना ही बीत जाती जवानियां।
लाल प्रेम का और सफेद दोस्ती का प्रतीक न होता, "रंग दे बसंती" और "मोहे रंग दो लाल" जैसा कोई गीत ना होता।
रंग न होते तो होली में महबूबा के गालों को छूने के बहाने न मिलते।
दिवाली में रंगोली और झालरों के रंग दहलीज पर नहीं खिलते।
प्रेम का है अपना रंग, तो क्रोध व नफरत के अलग अलग होते हैं।
रंग महज़ रंग नहीं, एहसासों के प्रतिबिंब होते हैं।
राजगीर सिंह की विशेष रिपोर्ट