Chirag paswan - लोकसभा में परचम लहराने वाली लोजपा विधानसभा चुनाव में रही फिसड्डी, तीन चुनाव में नहीं पार कर पाई पांच विधायकों का आंकड़ा
Chirag paswan - चिराग पासवान के लिए बिहार का चुनाव बड़ी चुनौती है। इसका कारण है पिछले चार विधानसभा चुनाव के परिणाम हैं, जिसमें लोजपा पूरी तरह से फिसड्डी रही है।

Patna - चिराग पासवान ने अपनी पार्टी का 100 परसेंट स्ट्राइक रेट दांव पर लगाया और एनडीए में अपने पक्ष में न सिर्फ माहौल बनाने में कामयाब हुए, बल्कि भाजपा और जदयू को भी अपने फैसले को मानने के लिए मजबूर कर दिया है। बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए के सीटों के बंटवारे में चिराग पासवान की पार्टी लोजपा रामविलास को 29 सीटें मिली है। जिसके बाद अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या चिराग पासवान इतनी सीटों के काबिल हैं। जवाब लोजपा के बिहार के पांच विधानसभा चुनाव के आंकड़े बता रहे हैं. जिसमें लोजपा की सीटें लगातार नीचे की ओर जा रही है। यहां तक कि पिछले तीन चुनाव में पार्टी को पांच सीट का आंकड़ा पार करना मुश्किल हो गया।
कैसा रहा लोजपा का ग्राफ
लोजपा का स्थापना 2000 में, स्वर्गीयरामविलास पासवान ने किया और उसके अध्यक्ष बने। पासवान के साथ उनके भाईरामचंद्र पासवान, कैप्टनजय नारायण प्रसाद निषाद और रमेश जिगाजिनागी भी पार्टी में शामिल हुए। जिसके बाद पार्टी ने 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया और चार सीटों पर जीतने में कामयाब हुए। यह वह समय था जब रामविलास पासवान की लोकप्रियता नीतीश कुमार से भी अधिक थी।
जब 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव हुए तो यह रामविलास पासवान की लोकप्रियता नजर आई और पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन में और राजद के खिलाफ चुनाव लड़ा और 29 विधानसभा सीटें जीतीं। रामविलास पासवान के पास सरकार बनाने का मौका था। लालू प्रसाद ने उन्हें सीएम बनने का ऑफर दिया, लेकिन उन्होंने खास समुदाय के मुख्यमंत्री बनाने की मांग की। जिसके कारण बिहार की सत्ता की कुर्सी पाने का मौका गंवा दिया। वहीं उनके विधायक नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनाने की तैयारी में थे। जब कोई सरकार बनाने में कामयाब नहीं हुआ तो विधानसभा भंग करने का फैसला लिया गया।
छह महीने बाद दोबारा बिहार चुनाव में पासवान को झटका
29 सीट जीतने के बाद रामविलास पासवान की एक जिद उन पर भारी पड़ी। 2005 में नवंबर में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। जिसमें नीतीश कुमार की जदयू ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और पूर्ण बहुमत हासिल किया। यहां से नीतीश कुमार का सुशासन शुरू हुआ।
जबकि रामविलास पासवान के लिए यह चुनाव बेहद खराब परिणाम लेकर आया। छह महीने पहले 29 सीट जीतनेवाली लोजपा इस बार सिर्फ 10 सीटों पर सिमट गई।
इसके बाद राम विलास पासवान 2009 के लोकसभा आम चुनाव मेंचौथे मोर्चेनामक गठबंधन में भाग लिया , जिसमें राष्ट्रीय जनता दल , लोक जनशक्ति पार्टी और समाजवादी पार्टीशामिल थे । यह कदम विनाशकारी साबित हुआ, क्योंकि लोजपा एक भी सीट नहीं जीत सकी और राजद लोकसभामें 4 सीटों पर सिमट गई ।
यह स्थिति 2010 में भी कायम रही। 2010 के बिहार विधान सभा चुनावमें , पार्टी नेराष्ट्रीय जनता दलके साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। हालाँकि, पार्टी केवल 6.75% वोट हासिल कर सकी और केवल 3 सीटें जीत सकी, जो 2006 के पिछले चुनावों से 7 कम थी।
इसके बाद लोजपा में चिराग पासवान की इंट्री हुई। पिता पुत्र ने उस समय की राजनीति को भांप लिया और 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के साथ गठबंधन किया। गठबंधन में पार्टी ने सात में छह सीटों पर जीत हासिल की। जिसमें चिराग पहली बार सांसद बने।
2015 के बिहार चुनाव में लगा झटका
2015 के बिहार चुनाव में जहां नीतीश कुमार ने लालू यादव के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। वहीं लोजपा भाजपा के साथ उतरी।। पार्टी को 40 सीटें मिली। लेकिन इस बार भी पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। इस बार चुनाव में सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली। बाकी सीटों पर लोजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा।
2020 में सिर्फ एक सीट पर सिमटे
2020 के विधानसभा चुनावों के लिए सीट बंटवारे के सवाल पर, चिराग पासवान की अध्यक्षता में लोजपा ने एनडीए छोड़ने और अकेले 143 विधानसभा सीटों पर लड़ने का फैसला किया।यह नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडी(यू) के खराब चुनावी प्रदर्शन का सबसे महत्वपूर्ण कारण निकला। हालांकि यह फैसला पार्टी के लिए भी नुकसानवाला रहा। लोजपा सिर्फ एक सीट पर जीत पाई। बाद में इकलौते विधायक ने जदयू की सदस्यता ले ली।
इस हार का परिणाम यह हुआ कि पार्टी टूट गई और चाचा पशुपति पारस ने चिराग को ही पार्टी से निकाल दिया। अब चिराग पहली बार अपने परिवार से अलग होकर विधानसभा चुनाव में अपनी शर्तों पर उतर रहे हैं।