Bihar Politics:बिहार की सियासत में महागठबंधन का फैलता कुनबा, एनडीए पर भारी, अंदरूनी खींचतान का इम्तिहान बाकी

Bihar Politics: विधानसभा चुनाव 2025 की आहट से पहले विपक्षी महागठबंधन ने अपने कुनबे को इतना फैला लिया है कि अब वह संख्याबल में एनडीए पर भारी दिख रहा है।

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बिहार की सियासत में महागठबंधन का फैलता कुनबा- फोटो : social Media

Bihar Politics:बिहार की सियासत में एक बार फिर नए गठजोड़, नए समीकरण और नए किस्सों का दौर शुरू हो गया है। विधानसभा चुनाव 2025 की आहट से पहले विपक्षी महागठबंधन ने अपने कुनबे को इतना फैला लिया है कि अब वह संख्याबल में एनडीए पर भारी दिख रहा है। जहां एनडीए के पास भाजपा, जेडीयू, हम, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी और चिराग पासवान का अलायंस ही बचा है, वहीं महागठबंधन के पाले में अब आठ तक पार्टियां आ खड़ी हुई हैं।

आरजेडी, कांग्रेस, वाम दल (सीपीआई-एमएल, सीपीआई, सीपीएम) के साथ पहले ही मैदान में मौजूद महागठबंधन को हाल में मुकेश सहनी की वीआईपी और पशुपति पारस की आरएलजेपी का साथ मिल चुका है। इसके साथ ही झारखंड से झामुमो ने भी कंधे से कंधा मिलाने का ऐलान कर दिया। अब आईपी गुप्ता की इंडियन इंकलाब पार्टी (IIP) को लाने की कवायद अंतिम दौर में है। अगर यह सौदा पक्का हो गया तो महागठबंधन बिहार का सबसे बड़ा अलायंस बन जाएगा, जिसमें कुल आठ पार्टियों का जमावड़ा होगा।

महागठबंधन की रणनीति साफ है—2020 की गलती नहीं दोहरानी। तब महज 11 हज़ार वोटों के अंतर से सरकार हाथ से फिसल गई थी। इस बार आरजेडी-कांग्रेस ने अपने हिस्से की सीटें घटाकर नए साथियों को जगह देने का फैसला किया है। सहनी के पास निषाद वोट बैंक, पारस के पास दलित समीकरण, जबकि आईपी गुप्ता के साथ पान समाज का वोट जुड़ सकता है। कांग्रेस और आरजेडी भले ही अंदर से नाराज़ हों, लेकिन सत्ता की राह पकड़ने के लिए उन्होंने समझौते की राह चुन ली है।

पिछली बार कांग्रेस ने 70 सीटों पर लड़कर महज़ 19 सीटें जीतीं। इस बार कांग्रेस ने भले ज्यादा सीटों की मांग न की हो, मगर "जिताऊ सीटों" की शर्त रख दी है। दूसरी ओर, सीपीआई (एमएल) ने 45 सीटों की मांग कर दी है, जबकि मुकेश सहनी 60 सीटें और यहां तक कि डिप्टी सीएम की कुर्सी तक मांगने लगे हैं। आरजेडी पर दबाव है कि वह अपने हिस्से से 10-15 सीटें छोड़कर नए साथियों को संतुष्ट करे। साफ है कि महागठबंधन की सबसे बड़ी चुनौती अंदरूनी खींचतान को काबू करना है।

उधर, एनडीए "डबल इंजन" के नारे और विकास की गाथा सुनाकर जनता को लुभाने में जुटा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार बिहार दौरों में सड़क, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा और पानी के नाम पर नई-नई घोषणाएं कर रहे हैं। नीतीश कुमार भी अपने अंदाज में जनता तक पहुंच बनाने की कोशिश कर रहे हैं। एनडीए का दावा है कि "विपक्ष का तिकड़म" काम नहीं करेगा और बिहार की जनता एक बार फिर उनके साथ खड़ी होगी।

महागठबंधन ने कुनबा तो बढ़ा लिया है, लेकिन "कुर्सी की ताजपोशी" तक का सफर आसान नहीं। सीटों की सौदेबाज़ी और नेताओं की महत्वाकांक्षाएं इसे कहीं अंदर से खोखला न कर दें। वहीं, एनडीए "विकास और डबल इंजन" के नारे पर भरोसा कर रहा है या नहीं इसका निर्णय तो चुनाव के बाद हीं हो पाएगा। बिहार की सियासत में असल मुकाबला अब "संख्या बनाम विकास" का होगा।