Bihar Muslim Voter Survey: बिहार की सियासत में मुस्लिम वोट बना समीकरणों का केंद्र, नीतीश-तेजस्वी और प्रशांत किशोर की चालों पर टिकी निगाहें, ‘मुस्लिम वोट’ की तिलिस्म और कश्मकश की गहराई में क्यों डूबी है वोट की सियासत, जानिए

बिहार में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे क़रीब आ रहा है मुस्लिम वोटर 'सियासी तराज़ू का पलड़ा' बनते जा रहा है।17.7 प्रतिशत की आबादी वाले मुस्लिम वोटर पर निगाहें टिकी है...

Bihar Muslim Voter Survey
बिहार की सियासत में मुस्लिम वोट बना समीकरणों का केंद्र- फोटो : social Media

Bihar Muslim Voter Survey: बिहार में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे क़रीब आ रहा है, सियासत का मिज़ाज, हुकूमत की जुबान और वोटर की नज़ाकत  तीनों अपने-अपने रास्ते तलाश रहे हैं। इस बार का चुनाव यूं ही नहीं अहम है, बल्कि इसमें 17.7 प्रतिशत की आबादी वाले मुस्लिम वोटर एक बार फिर सियासत की कुर्सी के किंगमेकर साबित हो सकते हैं।

87 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम आबादी 20 फीसदी से ज़्यादा है, वहीं 11 सीटें ऐसी भी हैं जहां यह आंकड़ा 40 फीसदी के करीब है। यानी, तक़रीबन 40 सीटों पर मुस्लिम वोटर की चाबी से ही सत्ता का ताला खुलना है।

अब सवाल उठता है कि क्या ये वोटर्स एकजुट हैं? क्या उनका रुख़ तय है? C-Voter के हालिया सर्वे ने इसी सवाल के जवाब में एक तेज़ाब-सा सच दिखा दिया है। 46.2 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं ने माना कि धर्म और जाति उनके वोटिंग फैसले में बहुत अहम होता है।

 वहीं 27.1 फीसदी ने साफ़ कहा कि वोट सिर्फ पहचान पर नहीं, मुद्दों पर होना चाहिए। 80.5 फीसदी मुस्लिमों को चुनाव में हिस्सा लेना बेहद जरूरी लगता है, जबकि गैर मुस्लिमों में यह आंकड़ा 44 फीसदी रहा।

वक्फ संशोधन विधेयक ने जैसे इस चुनाव में एक नया ध्रुवीकरण का दस्तावेज लिख दिया है। 68.1 फीसदी  मुस्लिम मतदाता मानते हैं कि इसका असर चुनाव में काफी हद तक दिखेगा, वहीं गैर मुस्लिमों में यह आंकड़ा सिर्फ 42.9 फीसदी रहा।

अब बात उस गठबंधन की, जिसे ‘मुस्लिम उम्मीदों की गठरी’ समझा जा रहा है  INDIA गठबंधन। 44.3 फीसदी मुस्लिम वोटर मानते हैं कि यह उनके हितों की हिफाजत कर सकता है। लेकिन 31.9 फीसदी को इस गठबंधन की ईमानदारी पर शक है और 27.9 फीसदी तो अब भी इस सवाल पर खामोश हैं शायद खुद को टटोल रहे हैं।उधर, बीजेपी की तरफ से की गई पहल को मुस्लिम समुदाय का महज 16.2 फीसदी वोटर गंभीर मानते हैं, जबकि 50.8 फीसदी ने इसे सिर्फ प्रतीकात्मक ‘दिखावा’ कहा। यानी ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा अब भी दिल तक नहीं पहुंचा।

तेजस्वी यादव के चुनाव बहिष्कार की धमकी को 44.9 फीसदी मुस्लिमों ने समर्थन दिया, मगर 28.1 फीसदी ने इससे किनारा भी किया। यहां भी तस्वीर साफ नहीं, बल्कि धुंध से ढकी हुई है।

बहरहाल अबकी बार मुस्लिम मतदाता 'सिर्फ वोटर नहीं', बल्कि 'सियासी तराज़ू का पलड़ा' हैं।जिसने इनकी भावनाओं, मुद्दों और अस्मिता को समझा  वही बिहार के सत्ता गलियारे में 'बावर्ची' नहीं, 'बादशाह' बनेगा।तो कौन होगा बिहार का सियासी शाहंशाह? जवाब छुपा है  "अदब, अक़्ल और अल्फ़ाज की इस ख़ामोश कशमकश" में!