Student Uniform: चुनावी मौसम में मासूमों के नाम पोशाक राजनीति, 52 लाख बच्चों को नई ड्रेस, 200 करोड़ का काम जीविका दीदियों के हवाले

Student Uniform: राज्य के आंगनबाड़ी केंद्रों में नामांकित 52 लाख बच्चों को नई पोशाक मिलेगी। यह सिर्फ बच्चों के कपड़े का मामला नहीं, बल्कि चुनावी गणित की सूई से बुनी गई एक सधी हुई बुनावट है।

Student Uniform
52 लाख बच्चों के लिए दो-दो जोड़ी ड्रेस- फोटो : social Media

Student Uniform: बिहार की सियासत में इस बार रैलियों से पहले सिलाई मशीनों की आवाज गूंजेगी। विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले राज्य के आंगनबाड़ी केंद्रों में नामांकित 52 लाख बच्चों को नई पोशाक मिलेगी। यह सिर्फ बच्चों के कपड़े का मामला नहीं, बल्कि चुनावी गणित की सूई से बुनी गई एक सधी हुई बुनावट है।

मामला शुरू हुआ 1 जुलाई को, जब जीविका और समाज कल्याण विभाग के समेकित बाल विकास सेवा  के बीच एक समझौता हुआ। तय हुआ कि जीविका समूह की महिलाएं जिन्हें ग्रामीण इलाकों में स्नेह से दीदी कहा जाता है  आंगनबाड़ी आने वाले बच्चों के लिए साल में दो जोड़ी ड्रेस तैयार करेंगी।

समझौते के मुताबिक, पोशाक तैयार करने की डेडलाइन दो महीने रखी गई है। समाज कल्याण विभाग की योजना है कि पहले चरण में बच्चों को एक-एक जोड़ी ड्रेस दी जाए, और कुछ महीनों बाद दूसरी जोड़ी। ड्रेस सीधे जीविका दीदियां अपने हाथों से आंगनबाड़ी केंद्रों में पहुंचाएंगी, जहां तय तारीख पर बच्चों के बीच इसका वितरण होगा। इस पूरी प्रक्रिया पर नज़र रखने की जिम्मेदारी सीडीपीओ स्तर के अधिकारियों को दी गई है।

पहले, आंगनबाड़ी में नामांकित प्रत्येक बच्चे को कपड़ों के लिए 400 रुपये (पहले 250 रुपये) की राशि दी जाती थी। लेकिन इस व्यवस्था में बीच के कई पेंच और देरी के कारण बच्चों को समय पर लाभ नहीं मिल पाता था। नतीजतन, इस बार फैसला किया गया कि रेडीमेड कपड़े सीधे पहुंचाए जाएंगे, ताकि न तो गुणवत्ता पर सवाल उठे और न ही पैसे की राह में अड़चनें आएं।

लेकिन इस योजना के पीछे सिर्फ बच्चों की मुस्कान ही नहीं, एक और ‘स्मार्ट’ सोच है ग्रामीण महिलाओं की आर्थिक स्थिति को मज़बूत करना। आंकड़ों के हिसाब से, यह ड्रेस सिलाई का काम ग्रामीण महिलाओं को घर बैठे लगभग 200 करोड़ रुपये का आर्थिक अवसर देगा। चुनावी साल में यह न सिर्फ महिलाओं की जेब भरेगा, बल्कि गांव-गांव में "सरकार हमारी रोज़ी-रोटी दे रही है" जैसी धारणा भी पुख्ता करेगा।

52 लाख बच्चों के लिए दो-दो जोड़ी ड्रेस, दर्जनों ज़िलों में हज़ारों महिलाएं सिलाई में जुटीं, और वितरण का मेला सा माहौल  यह सब मिलकर महज़ एक कल्याणकारी योजना नहीं, बल्कि ‘मासूम मुस्कान के जरिए मतदाताओं तक पहुंचने का महीन तरीका’ नजर आता है।