दहेज की डिमांड पूरी नहीं होने पर पत्नी को मारनेवाले पति ने हाईकोर्ट से मांगी माफी, कोर्ट ने कहा – नहीं मिलेगी, सजा बरकरार

 दहेज की डिमांड पूरी नहीं होने पर पत्नी को मारनेवाले पति ने

Patna - पटना हाईकोर्ट ने पत्नी के हत्यारे को मिली दस साल के कठोर कारावास की सजा के साथ-साथ दस हजार रुपये के जुर्माने की सजा और जुर्माना अदा न करने की स्थिति में दो माह का साधारण कारावास की अतिरिक्त सजा देने के सजा को बरकरार रखा।कोर्ट ने दहेज हत्या के दोषी शौहर मो हसीब की ओर से दायर आपराधिक अपील को जस्टिस आलोक कुमार पाण्डेय ने सुनवाई के बाद खारिज कर दिया।

ये मामला मुजफ्फरपुर जिला के  कथैया थाना कांड केस संख्या 189/2018 से सम्बंधित हैं। मुजफ्फरपुर के जिला और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश - XIII ने गत 14 मई को दोषी करार दिया और 22 मई को आईपीसी की धारा 304 (बी) के तहत दोषी ठहराते हुये दस साल के कठोर कारावास के साथ-साथ दस हजार रुपये का जुर्माने की सजा दी।साथ ही  जुर्माना अदा नहीं किये जाने पर दो  माह का साधारण कारावास की अतिरिक्त सजा काटनी होगी।

गौरतलब है कि सूचक की पुत्री की शादी आवेदक के साथ 28 मार्च, 2014 को हुई थी। शादी के छह महीने बाद दहेज में मोटरसाइकिल और ढाई लाख रुपये की मांग की जाने लगी।

मांग पूरा नहीं किये जाने की स्थिति में पत्नी को कई तरह से प्रताड़ित किया जाने लगा। बाद में सूचक ने अपने दामाद को एक मोटरसाइकिल खरीदी और दी। कुछ दिनों के बाद फिर से पत्नी पर हमला किया और उसे कई तरह से प्रताड़ित किया और छत की ढलाई और विदेश घूमने के लिए ढाई लाख रुपये नकद की मांग की।

पत्नी ने इसका विरोध किया।लेकिन दामाद को विदेश जाने के लिए एक लाख रुपये कर्ज लेकर अपने दामाद को दिया। उसके बाद 13 जुलाई, 2018 को मिली सूचना पर जब पुत्री के ससुराल गया तो देखा कि दोपहर बाद दो बजे के करीब ससुराल में पुत्री का शव खाट पर पड़ा है।   ससुराल के परिवार के सभी सदस्य फरार हैं।

पुत्री के बगल वाले कमरे से एक सफेद रंग का भीगा हुआ व दाग लगा तकिया मिला है। माना गया कि पैसे की मांग पूरी नहीं होने पर पुत्री का मुंह तकिये से दबाकर सुनियोजित तरीके से हत्या कर दी गई। पति की ओर से दलील दी गई कि पत्नी ने आत्महत्या कर ली है और उसे इस केस में फंसाया गया है।कोर्ट ने कहा कि आवेदक मृतका का पति है और उसकी पत्नी की मृत्यु विवाह के पाँच वर्ष के भीतर हुई हैं।

कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने जो सजा दी हैं, उस सजा को कम करने का कोई कारण नहीं बन रहा है। कोर्ट ने कहा कि सजा देने वाले कोर्ट का दायित्व हैं कि दोनों पक्षों को न्याय सुनिश्चित करना।कोर्ट ने आवेदक के अपील को रद्द कर दिया।