Lalu Parivar: करारी शिकस्त के बाद राजद में उठा तूफ़ान,लालू परिवार की घरेलू क़लह बनी सियासी हलचल का नया केंद्र

Lalu Parivar: राजद के शिकस्त की धूल अभी बैठ भी नहीं पाई थी कि परिवार की अंदरूनी दरारें एक एक करके उजागर होने लगीं, और सियासी हलक़ों में सरगर्मियाँ बढ़ गईं।

RJD storm after crushing defeat Lalu family
लालू परिवार की घरेलू क़लह बनी सियासी हलचल का नया केंद्र- फोटो : social Media

Lalu Parivar: बिहार की सियासत इस वक़्त एक अजीबो-ग़रीब उथल–पुथल से गुज़र रही है। विधानसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त ने राष्ट्रीय जनता दल को जिस तरह भीतर तक झकझोर दिया है, उसका असर अब पार्टी संगठन से निकलकर सीधे उसके सर्वेसर्वा लालू प्रसाद यादव के घर तक पहुँच चुका है। शिकस्त की धूल अभी बैठ भी नहीं पाई थी कि परिवार की अंदरूनी दरारें एक एक करके उजागर होने लगीं, और सियासी हलक़ों में सरगर्मियाँ बढ़ गईं।

इसी आलम में लालू प्रसाद की बेटी रोहिणी आचार्या का भावनाओं से लबालब भरा इस्तिहारी ऐलान सामने आया, जिसने राजनीतिक महफ़िलों में ताज़ा बहस छेड़ दी है। सिंगापुर में रह रही रोहिणी, जो पेशे से डॉक्टरी की पढ़ाई कर चुकी हैं, ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर ऐसे शब्दों में राजनीति और परिवार से अलग होने की घोषणा की, मानो बरसों की चुप्पी किसी तूफ़ान के साथ टूट गई हो।

उन्होंने लिखा कि “मैं राजनीति छोड़ रही हूँ और अपने परिवार से नाता तोड़ रही हूँ… सब कुछ का इल्ज़ाम मैं अपने सर ले रही हूँ।” यह बयान सियासी दुनिया में उस वक्त आया जब राजद के भीतर पहले ही बेचैनी और बेचैनी से उपजी बेचैनी का गहरा साया पसरा था।

रोहिणी के पोस्ट यहीं नहीं रुके। रविवार को एक के बाद एक कई भावुक पंक्तियाँ उन्होंने साझा कीं, मानो दिल का बोझ उतारने के लिए शब्दों का सहारा ले रही हों। अपने पिता को किडनी देने पर उन्हें मिली कथित गालियों, तानों और आरोपों ने उनके मन में जो टीस पैदा की, उसने उनके शब्दों को तल्ख़ और बेबाक बना दिया।

उन्होंने लिखा कि “मुझे गंदी कहा गया, मेरी दी हुई किडनी को गंदा बताया गया… बेटियों से कहा गया कि मायके के लिए कुछ मत करो, पिता को बचाने का फ़र्ज़ मत निभाओ।”यह बयान न सिर्फ़ भावुक था बल्कि समाज के उस कटु सच को भी उजागर करता है, जहाँ त्याग को भी शक की नज़र से देखा जाता है।

एक अन्य पोस्ट में रोहिणी ने अपने आत्मसम्मान पर चोट की बात कही, और बताया कि कैसे उनकी मदद पर ही सवाल उठा दिए गए। उनके शब्दों में मज़बूरी, तन्हाई और बेइज़्ज़ती की पूरी कहानी दर्ज थी। “कल एक बेटी को जलील किया गया… मुझे मेरा मायका छोड़ने पर मजबूर किया गया… मुझे अनाथ बना दिया गया…”—यह वाक्य न सिर्फ़ उनकी भावनाओं का इज़हार है, बल्कि इस विवाद के गहराते आयामों का आईना भी है।

बिहार की राजनीति में यह पारिवारिक दरार केवल घर की चारदीवारी का मसला नहीं रही, बल्कि अब यह राजद की सियासी दिशा, उसकी कमज़ोरी और भविष्य की रणनीति पर भी सीधे सवाल खड़े कर रही है। करारी हार के बाद पार्टी जिस मनोवैज्ञानिक टूटन से गुज़र रही है, उसमें रोहिणी प्रकरण ने एक नया मोड़ जोड़ दिया है—एक ऐसा मोड़, जिसके असर से आने वाले दिनों की राजनीति अछूती नहीं रहेगी।