Bihar Vidhansabha Chunav 2025 : पटना के कुम्हरार विधानसभा सीट को लेकर बीजेपी में मचा बवाल, कायस्थ समाज में नाराजगी बढ़ी
Bihar Vidhansabha Chunav 2025 : कुम्हरार में दुसरे जाति का उम्मीदवार उतारने के अटकलों को लेकर बवाल मचा है. इसको लेकर कायस्थ समाज में भी नाराजगी देखि जा रही है.....पढ़िए आगे

PATNA : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, भाजपा के भीतर सीट शेयरिंग को लेकर असंतोष गहराता जा रहा है। खासकर पटना की कुम्हरार विधानसभा सीट पर पार्टी का अंदरूनी विवाद खुलकर सामने आने लगा है। पार्टी के अंदर और बाहर से इस सीट पर उम्मीदवार चयन को लेकर असहमति बढ़ी है। बताया जा रहा है कि भाजपा ने इस बार कायस्थ समाज से आने वाले संभावित उम्मीदवारों के नाम को हटा दिया और दूसरी जाति के उम्मीदवार पर विचार कर रही है। यही वजह है कि भाजपा का पारंपरिक समर्थन माने जाने वाला कायस्थ समाज अब नाराज दिख रहा है। स्थानीय स्तर पर यह चर्चा जोरों पर है कि भाजपा ने जातीय समीकरण के नाम पर अपनी उस पहचान को कमजोर कर लिया है, जिसे कायस्थों के समर्थन ने दशकों तक मजबूत बनाया था। इसी राजनीतिक असंतोष के बीच प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज ने एक बड़ा दांव खेला है। जनसुराज ने कुम्हरार सीट से बिहार के प्रसिद्ध गणितज्ञ, लेखक और शिक्षा जगत की प्रतिष्ठित हस्ती प्रो. केसी सिन्हा को उम्मीदवार घोषित किया है। चार विश्वविद्यालयों के पूर्व कुलपति, सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक और पटना विश्वविद्यालय से जुड़े प्रो. सिन्हा कायस्थ समाज से आते हैं। जनसुराज का यह फैसला भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है, क्योंकि यह सीट पर जातीय और बौद्धिक दोनों तरह का प्रभाव डाल सकता है। भाजपा के अंदर से मिल रही जानकारी के अनुसार, पार्टी प्रो. सिन्हा के मुकाबले संजय गुप्ता को टिकट देने की तैयारी में है। इससे कायस्थ वर्ग में असंतोष और बढ़ गया है। सोशल मीडिया पर कई भाजपा कार्यकर्ता सवाल उठा रहे हैं कि जिस सीट पर कायस्थों की जनसंख्या निर्णायक है, वहां उनकी उपेक्षा क्यों की जा रही है।
कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र की सामाजिक बनावट को देखें तो कायस्थ परिवार अब भी यहां प्रभावशाली भूमिका में हैं। हर इलाके में कायस्थों की अच्छी-खासी आबादी है, उनके सामाजिक आयोजन और सांस्कृतिक उपस्थिति लगातार बनी हुई है। बावजूद इसके, भाजपा इस सीट को “taken for granted” मान रही है। यही बात कायस्थ समाज को सबसे अधिक खल रही है। इतिहास गवाह है कि भाजपा और पूर्व जनसंघ के निर्माण में कायस्थ समाज की भूमिका केंद्रीय रही है। लेकिन पिछले दो दशकों में धीरे-धीरे कायस्थ बहुल सीटों पर वैश्य और अन्य जातियों को टिकट देने की प्रवृत्ति बढ़ी है। पटना, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, कटिहार, गया और पूर्णिया जैसे क्षेत्रों में कायस्थ समाज की मजबूत उपस्थिति के बावजूद अब उनकी राजनीतिक भागीदारी घट गई है। पटना में डॉ शैलेंद्र नाथ श्रीवास्तव की सीट पर सुशील मोदी, दीघा में ठाकुर प्रसाद और नवीन सिन्हा की सीट पर संजीव चौरसिया आ गए। मोतिहारी में कायस्थों की सीट पर प्रमोद कुमार आ गए। कटिहार के जगबंधु अधिकारी की सीट पर तारकिशोर प्रसाद आ गए। भागलपुर में विजय कुमार मित्रा की सीट पर अश्विनी चौबे आ गए। दरभंगा में शिवनाथ वर्मा की सीट पर संजय सरावगी आ गए। मुजफ्फरपुर विधानसभा कायस्थ बहुल होते हुए कभी कायस्थ को टिकट नहीं मिला। पूर्णिया विधानसभा में कायस्थ विधायक होते थे। वहां उनका टिकट काटा गया। गया विधानसभा कायस्थ बहुल होते हुए कभी कायस्थ को टिकट नहीं मिला।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भाजपा के इस रवैये ने कायस्थ मतदाताओं में गहरी असंतुष्टि पैदा कर दी है। वहीं, जनसुराज पार्टी ने इस असंतोष को समझते हुए अपने उम्मीदवार चयन में रणनीतिक समझदारी दिखाई है। प्रो. केसी सिन्हा जैसे शिक्षित और प्रतिष्ठित चेहरे को उतारना न केवल जातीय गणित को प्रभावित करेगा, बल्कि भाजपा के वैचारिक आधार को भी चुनौती देगा। बीजेपी के पुराने समर्थक अब खुलकर यह कहने लगे हैं कि पार्टी की “दबंग राजनीति” और “जातीय समीकरणों की मजबूरी” ने उस वैचारिक एकता को तोड़ा है, जिसे कायस्थों ने वर्षों से साधा था। वे अब खुद को हाशिये पर महसूस कर रहे हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि यदि भाजपा ने समय रहते इस नाराजगी को दूर नहीं किया, तो इसका असर सिर्फ एक सीट पर नहीं, बल्कि पूरे बिहार के वोट पैटर्न पर पड़ेगा। कायस्थ समाज आरएसएस और भाजपा के वैचारिक समर्थक रहे हैं, लेकिन अब उनमें असंतोष का स्वर तेज़ हो रहा है।खासकर युवा पीढ़ी का भाजपा से मोहभंग हो रहा है। कई वरिष्ठ राजनीतिक जानकारों का यह भी कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस स्थिति पर व्यक्तिगत तौर पर संज्ञान लेना चाहिए। यदि भाजपा “कायस्थ विमुख नीति” पर पुनर्विचार नहीं करती, तो यह असंतोष बिहार से आगे बढ़कर राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के लिए राजनीतिक नुकसान का कारण बन सकता है।
मुरली मनोहर श्रीवास्तव की रिपोर्ट