शराब बंदी कानून पर सभी ट्रायल कोर्ट के न्यायिक अधिकारियों को ट्रेनिंग पर भेजें, पटना हाईकोर्ट ने न्यायिक अकादमी को दिया आदेश
पटना हाईकोर्ट ने शराबबंदी कानून के पालन में लापरवाही पर सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने एक मामले में मेडिकल जांच और तय प्रारूप में बयान न होने पर FIR रद्द करते हुए सभी निचली अदालतों को नियमों का अक्षरशः पालन करने का आदेश दिया है।
Patna - पटना हाईकोर्ट ने राज्य के सभी ट्रायल कोर्ट को शराबबंदी कानून के नियमों का पालन सख्ती से करने का आदेश दिया है।कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश के प्रति को राज्य के सभी ट्रायल कोर्ट को भेजने का आदेश हाई कोर्ट के महानिबंधक को दिया है। साथ ही आदेश की एक प्रति को न्यायिक अधिकारियों को प्रशिक्षण देने के लिए बिहार न्यायिक अकादमी के निदेशक को भी भेजने का आदेश दिया। जस्टिस अरुण कुमार झा की एकलपीठ ने शमशेर बहादुर की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश दिया।
कोर्ट ने माना कि ट्रायल कोर्ट में शराबबंदी कानून के नियमों का सख्ती से पालन नहीं हो रहा है।कोर्ट ने शराबबंदी कानून के तहत दर्ज प्राथमिकी सिंघेश्वर थाना कांड संख्या 69/2021 को निरस्त कर दी।कोर्ट ने शराबबंदी कानून के तहत दर्ज मामलों की सुनवाई करने वाले सभी न्यायालयों को शराबबंदी कानून के नियमों में निर्धारित नियमों का पालन करने को कहा है।
कोर्ट ने शराबबंदी कानून के तहत पकड़े गये व्यक्ति के अभियोग स्वीकार करने पर नियम 18 के तहत प्रपत्र VI A में निर्धारित प्रारूप में बयान दर्ज करने और उसके अनुसार प्रपत्र VII में आदेश पारित करने का आदेश दिया है।
ये मामला मधेपुरा के सिंघेश्वर थाना से सम्बंधित हैं।पुलिस ने आवेदक सहित एक अन्य को शराब पीने के आरोप में 25 मार्च 2021 को गिरफ्तार किया।उनका कहना था कि गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने आवेदक का ब्रेथ एनालाइजर से जांच तक नहीं किया।
यही नहीं, खून और पेशाब का नमूना तक नहीं लिया गया।सिर्फ डॉक्टर के कहने पर शराब के नशा में होने को लेकर केस दर्ज कर लिया गया।उन्होंने कोर्ट को बताया कि मामले को जल्द समाप्त करने के लिए आवेदक की ओर से एक आवेदन दायर कर कोर्ट से जुर्माना जमा करने और मामले को समाप्त करने का अनुरोध किया गया।
कोर्ट ने आवेदक को 2000 रुपये जमा करने का आदेश दिया और जुर्माना जमा नहीं किये जाने पर एक माह का साधारण कारावास की सजा दी।साथ ही मामले को निष्पादित कर दिया।
उनका कहना था कि आवेदक ने कभी भी अपना अपराध स्वीकार नहीं किया और गलत कानूनी सलाह के तहत उसने जुर्माना जमा किया। ट्रायल कोर्ट के आदेश से ऐसा प्रतीत होता है कि आवेदक ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है।बल्कि उसने अपने आप को पूरी तरह निर्दोष बताया सिर्फ मामले को समाप्त करना चाहता था और इसके लिए वह जुर्माना जमा करने को तैयार था।
उनका यह भी कहना था कि ट्रायल कोर्ट कानूनी प्रावधानों का पालन किए बिना आदेश पारित कर दिया।बिहार निषेध एवं उत्पाद शुल्क नियम, 2021 के नियम 18 के तहत प्रपत्र VII में आदेश पत्र का प्रारूप निर्धारित किया गया है। जब किसी आरोपी को बिहार निषेध एवं उत्पाद शुल्क अधिनियम 2016 की धारा 37 के अंतर्गत अपराध के लिए कोर्ट में पेश किया जाता है ,तो कोर्ट को आरोपी से यह पूछना होगा कि क्या वह अपना अपराध स्वीकार करता है, और यदि वह अपना अपराध स्वीकार करता है, तभी उस पर कार्रवाई की जा सकती है।
ट्रायल कोर्ट का आदेश नियम 18 के तहत निर्धारित प्रारूप में नहीं है। यहां तक कि दोषी ठहराए जाने के लिए नियम 18 के तहत प्रपत्र VI A के रूप में एक प्रारूप प्रदान किया गया है, लेकिन न तो याचिकाकर्ता का बयान प्रपत्र VI A के प्रारूप में दर्ज किया गया और न ही निचली अदालत ने आबकारी नियमों के प्रपत्र VII के प्रारूप में आदेश पत्र तैयार किया गया।