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PATNA HIGHCOURT - सुप्रीम कोर्ट ने नीतीश सरकार को दिया बड़ा झटका, हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से किया इनकार, जानें क्या है पूरा मामला

PATNA HIGHCOURT - सुप्रीम कोर्ट ने नीतीश सरकार को बड़ा झटका दिया है। नगर निकाय के दैनिक कार्य में सरकार के हस्तक्षेप करने पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। लेकिन वहां हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है।

PATNA HIGHCOURT - सुप्रीम कोर्ट ने नीतीश सरकार को दिया बड़ा झटका, हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से किया इनकार, जानें क्या है पूरा मामला

PATNA/NEW DELHI -पटना हाईकोर्ट के स्थानीय निकायों  के दैनिक कार्यो में  राज्य सरकार के हस्तक्षेप नहीं  करने के आदेश के विरुद्ध राज्य सरकार की अपील पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया।जस्टिस अभय ओका की खंडपीठ ने बिहार सरकार की अपील पर सुनवाई की।

अपने आदेश में  पटना हाइकोर्ट ने डा. आशीष कुमार सिन्हा की याचिका पर सुनवाई करते हुए एक आदेश पारित किया था।हाईकोर्ट ने अपने आदेश में  स्पष्ट किया था कि राज्य सरकार स्थानीय निकायों के दैनिक कामकाज में  हस्तक्षेप नहीं करें। इन संस्थाओं की स्वायतत्ता के लिए ये आवश्यक है कि  संवर्गीय स्वयतता बहुत महत्त्वपूर्ण है।राज्य सरकार को इनके दैनिक कार्यों मे हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

कोर्ट ने ये भी कहा कि  स्थानीय निकायों के कार्यों,जैसे स्थानाततरण ,पदस्थापन,अनुशासनिक  कार्रवाई आदि कानून व संवैधानिक सिद्धांतों के अनुसार निगमों के अधिकार क्षेत्र में होना चाहिए । बिहार सरकार का पक्ष वरीय अधिवक्ता तुषार मेहता व डा. आशीष कुमार सिन्हा की ओर से वरीय अधिवक्ता  दमा शेषादरी नायुडू ,नितेश रंजन व एडवोकेट मयूरी ने कोर्ट के समक्ष पक्षों को रखा।

राज्य सरकार ने पटना हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया,क्योंकि स्थानीय निकायों में  बड़ी संख्या में  तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के पद रिक्त है,जिससे स्थानीय निकायों के कार्य प्रभावित हो रहे है। डा.आशीष कुमार सिन्हा की ओर से ये हलफ़नामा दायर कर बताया गया कि  स्थानीय निकायों के सभी अधिकार राज्य सरकार अपने हाथों में  रखना चाहती है ।स्थानांतरण,पदस्थापना,अनुशासनिक कार्रवाई आदि के माध्यम से स्थानीय निकायों के कर्मचारियों पर नियंत्रण रखना चाहती है ।

सुप्रीम कोर्ट को ये भी बताया गया कि  डिप्टी मेयर  के क्लर्क को सचिव ने स्थानांतरित कर दिया।ये अधिकार भी जनता के चुने प्रतिनिधियों को पास नहीं है।इस तरह से स्थानीय निकायों के जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि कैसे अपना दायित्व निभा पाएंगे।

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