Suprme Court On SIR: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश! बिहार में मतदाता सूची से हटाए गए 3.77 लाख लोगों को मिलेगी मुफ्त कानूनी सहायता

Suprme Court On SIR: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान मतदाता सूची से हटाए गए 3.77 लाख लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता देने का आदेश दिया है, ताकि वे अपना नाम हटाए जाने के खिलाफ अपील कर सकें।

Suprme Court On SIR
बिहार मतदाता सूची मामले पर सुनवाई- फोटो : social media

Suprme Court On SIR: उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार (9 अक्तूबर 2025) को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) के दौरान अंतिम मतदाता सूची से बाहर रह गए 3.77 लाख लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है।यह आदेश उन लोगों के लिए है जो अपने नाम मतदाता सूची से हटाए जाने के खिलाफ अपील करना चाहते हैं।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने यह अंतरिम आदेश पारित किया। अदालत ने कहा कि अपील करने की समय-सीमा सीमित है, इसलिए राज्य की विधिक संस्थाओं को तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।

राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (Bihar State Legal Services Authority - BSLSA) के कार्यकारी अध्यक्ष सभी जिलों के जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) को तुरंत निर्देश भेजें।इन निर्देशों में कहा गया है कि वे पैरालीगल स्वयंसेवकों (Paralegal Volunteers) को नियुक्त करें और नि:शुल्क कानूनी सहायता सलाहकार (Free Legal Aid Counsellors) उपलब्ध कराएँ।कोर्ट ने कहा कि इन पैरालीगल स्वयंसेवकों की जिम्मेदारी होगी कि वे गाँवों में जाकर उन लोगों की पहचान करें जिनके नाम मतदाता सूची से हटाए गए हैं, और उन्हें अपील करने के उनके अधिकार की जानकारी दें।वे लोगों की ओर से अपील का मसौदा तैयार करने और मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने में भी सहयोग करेंगे।

अदालत ने कहा तुरंत शुरू हो प्रक्रिया

पीठ ने आदेश दिया कि सभी जिला विधिक सेवा सचिव अपने-अपने क्षेत्रों में पैरालीगल स्वयंसेवकों के मोबाइल नंबर और पूरा विवरण सार्वजनिक करें, ताकि प्रभावित लोग उनसे सीधे संपर्क कर सकें।साथ ही, यह भी निर्देश दिया गया कि ये स्वयंसेवक बूथ-स्तरीय अधिकारियों (BLOs) से समन्वय स्थापित करें और अपील प्रक्रिया को सरल बनाएं।न्यायालय ने कहा कि अपील दायर करने के लिए समय सीमित है, इसलिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कोई भी नागरिक अपने मताधिकार से वंचित न रह जाए।

क्या है विवाद की जड़?

मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि एसआईआर (Special Intensive Revision) प्रक्रिया के दौरान मतदाता सूची से नाम हटाने में मनमानी हुई।उनका कहना है कि सुरक्षा उपायों की कमी के कारण कई पात्र मतदाताओं के नाम बिना सूचना हटाए गए, जिससे वे मताधिकार से वंचित हो गए।याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह प्रक्रिया स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव (Free and Fair Elections) के सिद्धांत के खिलाफ है।उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि ऐसे सभी प्रभावित लोगों को अपील का अधिकार और कानूनी सहायता का अवसर दिया जाए।

चुनाव आयोग का पक्ष

भारतीय चुनाव आयोग (Election Commission of India) ने अपनी दलील में कहा कि मतदाता सूची की पुनरीक्षण प्रक्रिया कानूनी प्रावधानों के तहत की गई है।आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि इस प्रक्रिया का उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना था कि केवल योग्य और जीवित मतदाता ही सूची में शामिल रहें।हालांकि, अदालत ने कहा कि उसे यह स्पष्ट करने की आवश्यकता है कि 65 लाख नाम हटाए जाने के बाद जो 21 लाख नए नाम जोड़े गए हैं, क्या उनमें पहले हटाए गए लोगों के नाम भी शामिल हैं या नहीं।”यह सवाल अदालत ने पहले की सुनवाई में उठाया था और अब उसने चुनाव आयोग से इस पर विस्तृत रिपोर्ट माँगी है।

सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण

अदालत ने यह भी दोहराया कि मताधिकार (Right to Vote) एक लोकतांत्रिक व्यवस्था का मूल स्तंभ है और किसी भी नागरिक को इसे मनमाने ढंग से छीना नहीं जा सकता।इसलिए अदालत ने इसे संवैधानिक न्याय और नागरिक अधिकारों से जुड़ा मामला बताया।पीठ ने कहा कि अगर किसी नागरिक का नाम मतदाता सूची से गलत तरीके से हटाया गया है, तो उसे अपील का अवसर और कानूनी मदद मिलनी चाहिए — चाहे वह गरीब हो या ग्रामीण पृष्ठभूमि से आता हो।