Tejshwi Yadav letter to PM Modi: तेजस्वी यादव का पीएम मोदी को खुला पत्र,आरक्षण सीमा खत्म कर सामाजिक न्याय का फूंका बिगुल
Tejshwi Yadav letter to PM Modi:भारत में सामाजिक न्याय और प्रतिनिधित्व को लेकर बहस एक बार फिर गरमा गई है। पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र लिखा है...

Tejshwi Yadav letter to PM Modi:भारत के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन तब आया जब केंद्र सरकार ने जाति आधारित जनगणना कराने का निर्णय लिया। विपक्षी दल इसे अपनी सफलता के रूप में देख रहे हैं, और इस बीच राष्ट्रीय जनता दल के नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र लिखकर सामाजिक न्याय की दिशा में ठोस कदम उठाने की अपील की है। इस पत्र में तेजस्वी ने जाति जनगणना के महत्व को स्पष्ट किया, साथ ही आरक्षण की 50 फीसदी सीमा पर पुनर्विचार, निजी क्षेत्र में समावेशिता, और आगामी परिसीमन में वंचित समुदायों के लिए उचित प्रतिनिधित्व जैसे मुद्दों को भी उठाया है।
तेजस्वी ने पीएम को लिखे पत्र में जातीय जनगणना को भारत के लोकतांत्रिक और सामाजिक ताने-बाने के लिए "ऐतिहासिक चौराहा" करार दिया है। तेजस्वी ने पीएम को पत्र में लिखा कि यह सिर्फ जनसंख्या का गणित नहीं, बल्कि हाशिए पर खड़े करोड़ों लोगों के सम्मान और पहचान की लड़ाई है। उन्होंने इसे "समानता की यात्रा में परिवर्तनकारी क्षण" बताया।
पत्र में तेजस्वी ने केंद्र सरकार के पिछले रुख की आलोचना की, जिसमें जाति जनगणना को "विभाजनकारी" और "अनावश्यक" बताया गया था। उन्होंने बिहार में किए गए जाति सर्वेक्षण का जिक्र करते हुए कहा कि जब बिहार ने अपने संसाधनों से यह पहल की, तो केंद्र सरकार और उसके कानूनी अधिकारियों ने हर कदम पर बाधाएं खड़ी कीं। तेजस्वी ने इस बात पर जोर दिया कि बिहार का जाति सर्वेक्षण, जिसमें यह सामने आया कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) राज्य की आबादी का लगभग 63% हिस्सा हैं, ने सामाजिक यथास्थिति को बनाए रखने के लिए फैलाए गए कई मिथकों को तोड़ दिया।
तेजस्वी ने अपने पत्र में सबसे अहम मांग यह की कि आरक्षण पर लगी 50फासदी की सीमा पर फिर से विचार किया जाए। उन्होंने तर्क दिया कि जाति जनगणना के आंकड़े सामाजिक सुरक्षा और आरक्षण के दायरे को आबादी के अनुपात में बढ़ाने के लिए एक आधार प्रदान करेंगे। यह मांग इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50फीसदी की आरक्षण सीमा कई राज्यों में ओबीसी और अन्य वंचित समुदायों की आबादी के अनुपात को प्रतिबिंबित नहीं करती। तेजस्वी ने इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक अनिवार्य कदम बताया।। तेजस्वी का कहना है कि जब ओबीसी-ईबीसी की जनसंख्या 63फीसदी से अधिक हो, तो प्रतिनिधित्व भी उसी अनुपात में क्यों नहीं?
तेजस्वी ने आगामी परिसीमन में पिछड़े वर्गों को उचित राजनीतिक भागीदारी देने की मांग की है। उनका कहना है कि केवल आरक्षण नहीं, बल्कि निर्णय लेने वाली संस्थाओं में वास्तविक प्रतिनिधित्व चाहिए।आगामी परिसीमन प्रक्रिया को लेकर भी तेजस्वी ने अपनी चिंता जाहिर की। उन्होंने मांग की कि निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण जनगणना के आंकड़ों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। विशेष रूप से, ओबीसी और ईबीसी समुदायों के लिए निर्णय लेने वाले संस्थानों में पर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रावधान किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्य विधानसभाओं और संसद में इन समुदायों का आनुपातिक प्रतिनिधित्व होना चाहिए, जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुरूप होगा।
उन्होंने निजी क्षेत्र की आलोचना करते हुए कहा कि ये संस्थान सार्वजनिक संसाधनों का इस्तेमाल करते हैं लेकिन वंचित वर्गों को रोजगार नहीं देते। उन्होंने निजी क्षेत्र में आरक्षण या समावेशिता पर बहस की शुरुआत की मांग की।उन्होंने तर्क दिया कि निजी क्षेत्र ने सार्वजनिक संसाधनों का व्यापक उपयोग किया है, जैसे कि रियायती दरों पर जमीन, बिजली सब्सिडी, कर छूट, और अन्य वित्तीय प्रोत्साहन। इसके बावजूद, निजी क्षेत्र में वंचित समुदायों का प्रतिनिधित्व नगण्य है। तेजस्वी ने मांग की कि जाति जनगणना के संदर्भ में निजी क्षेत्र में समावेशिता और विविधता के लिए खुली बातचीत शुरू की जाए। उन्होंने इसे करदाताओं के हित में बताया, जो इन सब्सिडी और प्रोत्साहनों का बोझ उठाते हैं।
तेजस्वी ने संविधान के निर्देशक सिद्धांतों का हवाला देते हुए राज्य की जिम्मेदारी को रेखांकित किया — "संसाधनों का न्यायसंगत वितरण और आर्थिक असमानताओं को खत्म करना ही असली राष्ट्रनिर्माण है।"
तेजस्वी ने अपने पत्र को एक सकारात्मक नोट पर समाप्त करते हुए कहा कि केंद्र सरकार अब एक "ऐतिहासिक चौराहे" पर खड़ी है। उन्होंने चेतावनी दी कि जाति जनगणना के आंकड़ों को केवल संग्रह तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, बल्कि इसे प्रणालीगत सुधारों के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए। उन्होंने बिहार के प्रतिनिधि के रूप में केंद्र सरकार को सामाजिक परिवर्तन के लिए रचनात्मक सहयोग का आश्वासन दिया।
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव का यह पत्र केवल राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि यह सामाजिक न्याय और समानता के लिए एक जोरदार अपील भी है। अब गेंद केंद्र सरकार के पाले में है। क्या प्रधानमंत्री इस मुद्दे को केवल डेटा संग्रहण तक सीमित रखेंगे, या इसे भारत के सामाजिक ढांचे में क्रांतिकारी सुधार के अवसर में बदलेंगे?
रिपोर्ट- रंजन सिंह के साथ नरोत्तम सिंह