Bihar News: अगर पति आवारा हो, कंडोम ही सहारा हो, एड्स जागरूकता की पहल,स्टूडेंट्स ने कसे तंज

छात्राओं ने जब सड़क पर उतरकर अपने हाथों में पोस्टर उठाए और नारे बुलंद किए अगर पति आवारा हो, कंडोम ही सहारा हो, परदेस नहीं जाना बलम जी, एड्स न लाना बलम जी”—तो माहौल एकाएक जागरूकता, व्यंग्य और संकल्प के संगम में बदल गया।...

If Husbands Wander Condoms
अगर पति आवारा हो, कंडोम ही सहारा हो...- फोटो : social Media

Bihar News: विश्व एड्स दिवस के अवसर पर समस्तीपुर के सदर अस्पताल में सोमवार को वह नज़ारा देखने को मिला, जिसने न सिर्फ़ स्वास्थ्य जागरूकता को नई दिशा दी, बल्कि समाज में जमी रूढ़ियों को भी झकझोर कर रख दिया। अस्पताल परिसर में जुटी GNM छात्राओं ने जब सड़क पर उतरकर अपने हाथों में पोस्टर उठाए और नारे बुलंद किए अगर पति आवारा हो, कंडोम ही सहारा हो, परदेस नहीं जाना बलम जी, एड्स न लाना बलम जी” तो माहौल एकाएक जागरूकता, व्यंग्य और संकल्प के संगम में बदल गया।ये नारे जितने तंज़ भरे थे,संदेश साफ़ था: “एड्स से लड़ाई शर्म-हया से नहीं, समझदारी से जीती जाती है।”

 समस्तीपुर के सदर अस्पताल के मुख्य द्वार पर रंगीन पोस्टर, बैनर और हाथों में लाल रिबन लगाए छात्र-छात्राओं की भीड़ उमड़ पड़ी। अस्पताल प्रशासन, डॉक्टर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, स्वास्थ्य कर्मियों और  छात्राओं की उपस्थिति ने वातावरण को किसी बड़े सामाजिक आंदोलन जैसा रूप दे दिया।

रैली अस्पताल से निकलकर पटेल गोलंबर, कलेक्ट्रेट, ओवरब्रिज होते हुए वापस अस्पताल परिसर में लौटकर समाप्त हुई। पूरे रास्ते छात्राओं ने अपने नारे, पोस्टर और स्लोगन से राहगीरों और दुकानदारों का ध्यान खींचा। कई जगह लोग रुककर नारे पढ़ते, तस्वीरें लेते और जागरूकता के पर्चे प्राप्त करते नज़र आए।

अस्पताल परिसर से निकलते ही ये नारे शहर भर में चर्चा का विषय बन गए।“अगर पति आवारा हो, कंडोम ही सहारा हो”—यह नारा महिलाओं को सुरक्षा के अधिकार का संदेश देता है। वही “परदेस नहीं जाना बलम जी, एड्स न लाना बलम जी”न सिर्फ़ प्रवासी श्रमिकों की समस्या पर रोशनी डालता है, बल्कि बीमारी के उन रास्तों पर भी ध्यान खींचता है, जिन पर आज भी खुले तौर पर बात नहीं होती।

समाज में यौन स्वास्थ्य को लेकर जो झिझक और शर्म का माहौल है, उस पर यह रैली एक तगड़ा शिकंजा कसती है। छात्राओं का कहना था कि जब तक समाज खुलकर बात नहीं करेगा, तब तक बीमारी फैलती रहेगी और लोग डर के मारे समय पर जांच नहीं कराएंगे।

इसी संदर्भ में एक  छात्रा ने कहा कि हम समाज को यह समझाना चाहते हैं कि रोकथाम किसी भी बीमारी का सबसे बड़ा इलाज है। एड्स के मामले में यह और भी महत्वपूर्ण है। अगर हम मौन रहेंगे, तो बीमारी बोलती रहेगी।

अगर पति आवारा हो, कंडोम ही सहारा हो यह सिर्फ़ एक तंज़ नहीं, बल्कि समाज को चेतावनी है कि सुरक्षा अधिकार है, शर्म नहीं।परदेस नहीं जाना बलम जी, एड्स न लाना बलम जी यह उन परिवारों से संवाद है जिनके पुरुष रोज़गार की तलाश में बाहर जाते हैं और अनजाने में संक्रमण लेकर लौट आते हैं।