Maha kumbh katha Part 3 2025: प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत हो गई। 26 फरवरी 2025 तक चलने वाले इस माहकुंभ के सबसे पहला साक्ष्य सम्राट हर्षवर्धन के काल में देखने को मिलता है. हालांकि कुछ ग्रंथों में कुंभ मेला का आयोजन 850 साल से भी ज्यादा पुराना बताया जाता है.जबकि कुछ विद्वानों का कहना है कि गुप्त काल के दौरान से ही इसकी शुरुआत हुई थी. लेकिन इसके साक्ष्य सम्राट हर्षवर्धन के काल में आदि शंकराचार्य द्वारा महाकुंभ की शुरुआत के साथ मिलती है. इसी के बाद शंकराचार्य और उनके शिष्यों द्वारा संन्यासी अखाड़ों के लिए संगम तट पर शाही स्नान की व्यवस्था की गई थी. धार्मिक ग्रंथों में भी इस बात की चर्चा है.आठवीं शताब्दी में सनातन धर्म की मान्यताओं और मंदिरों को जब खंडित किए जाने लगे तब कहा जाता है कि इसको देखकर आदि गुरु शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की और वहीं से सनातन धर्म की रक्षा का दायित्व संभाला।
इसके बाद आदि गुरु शंकराचार्य को लगा कि सनातन परंपराओं की रक्षा के लिए सिर्फ शास्त्र ही काफी नहीं हैं, शस्त्र भी जरूरी हैं. तब उन्होंने अखाड़ा परंपरा की शुरुआत की. इसमें धर्म की रक्षा के लिए मर-मिटने वाले संन्यासियों को प्रशिक्षण देनी शुरू की गई और यहीं से नागा साधुओं के साक्ष्य भी मिलने लगे. नागा साधुओं को अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए काफी मश्क्त करनी पड़ी. चलिए आज आपको बताते हैं कि अंग्रेजों के शासन काल में ईसाई अधिकारी ने नागा साधु पर कुंभ में अश्लीलता फैलाने का आरोप लगाने का क्या था पूरा वाक्या....?
महाकुंभ में शुरु से नागा साधु सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र थे. दरअसल, ये अपनी वेशभूषा और खान-पान के कारण आम लोगों से बिल्कुल अलग दिखते हैं. यही कारण है कि ये महाकुंभ में आकर्षण के केंद्र भी बने हुए थे. इसी कारण 1 फरवरी 1888, ब्रितानी अखबार मख्ज़ान-ए-मसीही में एक खबर प्रकाशित हुई. यह खबर में प्रयाग में चल रहे कुंभ को लेकर लिखा गया था- 'संगम पर करीब 400 नागा साधुओं का जत्था स्नान करने आया है. इनको देखने के लिए और इनकी पूजा करने के लिए रास्ते में दोनों तरफ हजारों की संख्या में भारतीय हिन्दू पुरुष और महिलाएं खड़े थे. कुछ लोग इनका पूजन भी कर रहे थे.इनकी सुरक्षा और इनको किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं हो इसको लेकर एक अंग्रेज अधिकारी जुलूस के आगे-आगे चलकर इनका रूट क्लियर करवा रहा था.
यह दुखद और शर्मनाक दृश्य था. हमारी सरकार न्यूडिटी पर पनिशमेंट देने का काम करती है, लेकिन भारत के प्रयागराज में तो जॉइंट मजिस्ट्रेट पद के अफसर को भेजकर मैसेज दिया जा रहा है कि हम हिंदुओं के साथ हैं.’’ इसी खबर के प्रकाशित होने पर 'क्रिश्चियन ब्रदरहुड' के अध्यक्ष आर्थर फोए ने ब्रिटेन के एक सांसद को चिट्ठी लिखी. उसने अपनी चिट्टी में लिखा- 'इस नग्न प्रदर्शन से तो शिक्षित हिन्दू समाज भी शर्म से गड़ जाए. लेकिन ऐसे काम के लिए सरकार ने अंग्रेज अफसर को तैनात किया? तैनात करना ही था तो इस काम के लिए किसी भारतीय को क्यों नहीं लगाया गया. ऐसा नहीं कर भारतीयों को लगता है कि उन लोगों ने अंग्रेजी हुकूमत को झुका दिया और अपनी बात मनवा ली है. ईसाई धर्म के लिए ये शर्म की बात है. आर्थर फोए की इस चिट्ठी का 16 अगस्त 1888 को सरकार ने जवाब देते हुए लिखा- 'कुंभ हर 12 साल और अर्धकुंभ हर 6 साल बाद होता है. इस अवसर पर इलाहाबाद और बाकी जगहों पर नागा साधु परंपरागत रूप से शोभायात्रा निकालते हैं.ऐसे में कई बार इनके बीच खूनी संघर्ष भी होते हैं. इसके साथ ही नागा संन्यासी हिन्दू समाज में बहुत पवित्र माने जाते हैं. इनमें कोई बुराई नहीं है. इसलिए हमें अंग्रेज अधिकारी तैनात करना पड़ता है. हम इनके धार्मिक मामले में दखल नहीं दे सकते हैं.’ ये चिट्ठी राष्ट्रीय अभिलेखागार में 'प्रोसीडिंग्स ऑफ होम डिपार्टमेंट' में आज भी मौजूद है.
कुंभ को लेकर अंग्रेजों के मन में भी बड़ी आस्था थी. वर्ष 1906 में कुंभ के दौरान मेला क्षेत्र में हैजा फैल गया था.अंग्रेजी सरकार इससे निपटने के लिए प्रयागराज में हैजा हॉस्पिटल बनाया था. इसमें 281 कालरा पीड़ित मरीजों का इलाज किया गया, लेकिन इनमें से 207 लोग मर गए. इसमें 167 लोगों की मौत सांस लेने में दिक्कत और निमोनिया से हुई थी. इसके बाद 1918 में जब कुंभ लगा तो अंग्रेजी सरकार ने कुंभ में आने वाले भक्तों को किसी प्रकार का परेशानी नहीं हो इसको लेकर चार अस्पताल बनवाए थे. मुख्य अस्पताल में 100 बेड और बाकी तीन अस्पतालों में 25-25 बेड थे. मेला प्रबंधन के पास दवाइयों और मेडिकल इक्विपमेंट की व्यवस्था थी. इसके साथ ही महामारी प्रभावित क्षेत्रों में विशेष जांच कैंप लगाकर जांच किए जा रहे थे.
महाकुंभ 2025 को आकर्षक बनाने के लिए जैसे इस वर्ष यूपी सरकार ने प्रयास किया है इस प्रकार की व्यवस्था अंग्रेजों के शासन काल में भी हुआ करता था. कुंभ मेला को सजाने और इसको सफल बनाने के लिए अंग्रेजी सरकार इंग्लैंड से खास तौर पर अफसर बुलाती थी. ये अफसर कुंभ से जुड़े प्रत्येक सूचना को भारत के सचिव को भेजते थे.राजकीय अभिलेखागार के 1894 के एक दस्तावेज के अनुसार कुंभ के लिए जो भी काम होते थे इसके सारे प्रशासनिक काम इलाहाबाद के कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट की निगरानी में किया जाता था. लेकिन मेला सुंदर बनाने और सजाने के लिए इंग्लैंड से तीन अफसर बुलाए गए थे. इसकी राजकीय अभिलेखागार के 1894 में चर्चा है. अंग्रेजों के दौर में ज्यादातर लोग पैदल और बैलगाड़ी से कुंभ स्नान के लिए आया करते थे. तीर्थ यात्रियों को रास्ते में लुटेरों से बचाना मुश्किल काम था. इसके लिए अंग्रेज सरकार रास्ते में विशेष सराय बनाया करते थे. इन सरायों में सुरक्षा की खास व्यवस्था की जाती थी. महाकुंभ 2025 की तर्ज पर तब भी इसकी तैयारी एक साल पहले ही शुरू हो जाती थी. रास्ते में हर जगहों पर फरमान लगाया जाता था कि किसी भी अजनबी को अपने शिविर में रुकने नहीं दें।
इसको लेकर कल्पवास करने वालों से हलफनामा लिया गया था. 94 प्रयागवाल यानी पंडों ने दस्तखत भी किए थे. वर्ष 1880 में अंग्रेजों ने एक इश्तेहार जारी किया, जिसमें लिखा था- मुसाफिर तय पड़ाव पर ही रात गुजारें. वहां उनकी देखरेख के लिए चौकीदार तैनात किए गए हैं. अगर किसी प्रकार की परेशानी हो तो सूचना दें और अगर कोई टेंट के बाहर ठहरता है और उसके साथ कोई अनहोनी होती है, तो उसके लिए वो खुद जिम्मेदार होगा. अंग्रेजी सरकार का ऐसा करने के पीछे लूट-मार से लोगों की रक्षा करना था. इसके साथ ही बीमारियों को फैलने से रोकना था. कुंभ की की निगरानी के लिए एक यूरोपियन कैंटोनमेंट इंस्पेक्टर और दो असिस्टेंट इंस्पेक्टर की ड्यूटी लगाई जाती थी. शौचालयों की साफ-सफाई के लिए हर वॉशरूम के पास 6 घड़ों में मरक्यूरिक परक्लोराइड भरकर रखा जाता था. इस बात की 1894 के दस्तावेज में भी चर्चा है. इसमें लिखा है कि कुंभ की सुरक्षा और इसकी निगरानी की जिम्मेवारी किसी को नहीं दी जाती थी. इसके लिए कुंभ में अधिकारियों को ड्यूटी के लिए परीक्षा पास करनी पड़ती थी. अंग्रेजी सरकार कुंभ को लेकर आचार संहिता जारी करती थी. अंग्रेजी पुलिस के जिम्मे कुंभ में आए लोगों के जान माल की सुरक्षा, साफ-सफाई और हेल्थ होता था।
महाकुंभ से news4nation की टीम