Corpse of the System:वैशाली में सिस्टम की लाश, बाढ़, लापरवाही और इंसानियत के सौदे ने ली एक माँ की जान,आखिर किसके आदेश पर नाव का परिचालन किया गया बंद
वैशाली में मौत किसी बीमारी से नहीं, बल्कि सिस्टम की बदहाली और हुक़्मरानों की लापरवाही से एक महिला की मौत हो गई। लोग कह रहे हैं कि यह सिर्फ़ एक औरत की मौत नहीं, बल्कि प्रशासन की इंसानियत की हत्या है।

Corpse of the System: वैशाली की सड़कों पर शुक्रवार की रात सिर्फ एक औरत की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की मौत हो गई। हसनपुर दक्षिणी पंचायत का बाहलोलपुर दियारा, जहां गंगा का पानी खतरे के निशान से ऊपर बह रहा है, वहीं प्रशासन की नाकामी और संवेदनहीनता ने प्रसव पीड़ा से जूझ रही सोनी देवी की जिंदगी निगल ली।
राजेश राय की पत्नी सोनी देवी जब दर्द से कराह रही थीं, तो उनके घरवाले सरकारी मदद की आस में इधर-उधर दौड़ रहे थे। जनप्रतिनिधि से गुहार लगाई कि नाव या एसडीआरएफ का सहारा मिल जाए। लेकिन जवाब मिला कि “सरकारी नाव बंद है, महनार प्रशासन से बात करो।” जनप्रतिनिधि की जुबान से यह सुनाई नहीं दिया, बल्कि सिस्टम का मज़ाक गूंजा कि “डूब जाओ, मगर काग़ज़ पूरा करो।”
परिजन जब महनार प्रशासन से गुज़ारिश करते हैं, तो वहां से फरमान मिलता है कि “एसडीआरएफ बोट चाहिए तो पहले आवेदन दीजिए।”
सोचिए, एक औरत की जान दस्तावेज़ों की गिरफ्त में फंस गई। देर शाम जब अफ़सर की संवेदना जागी और एसडीआरएफ नाव लेकर पहुंची, तब तक प्रसव गांव में ही हो चुका था। जवानों ने मानवता दिखाते हुए महिला को रेस्क्यू किया, मगर किस्मत ने भी जैसे ठान लिया था कि आज मौत ही आख़िरी पड़ाव होगी।
गंगा पार पहुंचते ही अगला झटका—एम्बुलेंस हड़ताल पर। यानी एक तरफ़ लहरों का आतंक, दूसरी तरफ़ सिस्टम की बेरुख़ी। मजबूरी में मुखिया प्रतिनिधि ने अपनी गाड़ी लगाई और अस्पताल ले जाने की कोशिश की। मगर अस्पताल की दहलीज़ तक पहुँचने से पहले ही सोनी देवी ने दम तोड़ दिया।
अब सवाल खड़ा है कि जब गंगा का पानी खतरे से ऊपर बह रहा है और बाढ़ का अलर्ट हर रोज़ सरकार जारी कर रही है, तो फिर किसके हुक़्म पर नाव का परिचालन बंद था? क्या बाढ़ग्रस्त इलाक़े के लोग सिर्फ़ कागज़ी फाइलों में दर्ज हैं?
वैशाली की इस दर्दनाक घटना ने साबित कर दिया कि यहां मौत किसी बीमारी से नहीं, बल्कि सिस्टम की बदहाली और हुक़्मरानों की लापरवाही से होती है। लोग कह रहे हैं कि यह सिर्फ़ एक औरत की मौत नहीं, बल्कि प्रशासन की इंसानियत की हत्या है।
सवाल यह है कि जब वर्दी, काग़ज़ और कुर्सी इंसान की ज़िंदगी से ऊपर हो जाएं, तो क्या इस मुल्क़ का आम आदमी हर रोज़ ऐसे ही मरता रहेगा?
रिपोर्ट- ऋषभ कुमार