Bihar News : पहले गंगा और अब कोसी तथा गंडक में आई बाढ़ से बिहार बेहाल है. बिहार के एक दर्जन जिले जलप्रलय से बेहाल हैं. करोड़ों की आबादी पर गंभीर संकट मंडरा रहा है. बिहार की इस बाढ़ में जहां लोगों को खाने –पीने के लाले पड़ रहे हैं, वहीं बाढ़ में कई अनोखे प्राणी भी देखने को मिल रहे हैं. विशेषकर जलचरों की कई ऐसी प्रजातियां इन दिनों सामने आई हैं जो लोगों के लिए कौतूहल का विषय बन गए हैं. गंगा नदी में पिछले कुछ दिनों के दौरान मछलियों की कई ऐसी प्रजातियां देखने को मिली हैं जो आम तौर पर नहीं दिखती.
सोशल मीडिया एन्फ़्ल्युइंसर सुंदरम ने अपने सोशल मीडिया पेज पर ऐसी ही मछलियों के पकड़े जाने का जिक्र किया है. उन्होंने बताया कि गंगा नदी में इस बार मछुआरों के जाल में ‘बघार’ मछली फंस रही है. उन्होंने बताया कि "बघार" मछली विशालकाय मछलियों की एक दुर्लभ प्रजाति है। यह दो से ढाई क्विंटल तक हो सकती है। नदियों के बदलते स्वरूप में यह मछली विलुप्त होने के कगार पे है। इसका वैज्ञानिक नाम 'बैगेरियस' है।
सुंदरम ने बताया कि बीते साल लखीसराय में लगभग 100 किलो की यही मछली पकड़ी गयी थी। वहीँ 2018 में खगड़िया में 125 किलो की ‘बघार’ मछली पकड़ी गयी थी। इस बार ‘बघार’ मछली की यह विलुप्त प्राय प्रजाति पटना के मोकामा के औंटा में गंगा बाढ़ से विस्थापित बिन्द समुदाय के लोगों को मिली.
कूचिया मछली भी दुर्लभ प्रजाति की एक अन्य मछली है. सुंदरम ने बताया कि बिहार में साँप के आकार के इस जलचर को "कूचिया मछली" कहते हैं. हालांकि इसे फ्रेश वाटर इल फिस कहते हैं। कूचिया मछली की मेडिसिनल वैल्यू अधिक है। गंगा समेत कई छोटी नदियों में यह पाया जाता है। ओमगा थ्री, हाई प्रोटीन और कैलोरी से युक्त यह मछली कई रोगों के इलाज में कारगर है। शरीर में खून का निर्माण करती है। वहीं बिहार में बिन्द समुदाय के लोग इसे "वाम मछली" कहते है। इस मछली चोंच चपटे और नुकीले होते हैं।