Indian Economy: 1973 के बाद डॉलर में सबसे बड़ी गिरावट, क्या डॉलर की कमजोरी भारत की ताकत बनेगी? या महंगा होता सोना बिगाड़ेगा समीकरण?"जानिए
Indian Economy: डॉलर की ढलान और सोने की उड़ान भारत के लिए राहत और चिंता दोनों का विषय है...

Indian Economy: डोनाल्ड ट्रंप की जनवरी 2025 में सत्ता में वापसी के बाद अमेरिकी डॉलर की जो गिरावट शुरू हुई, वह आधे साल में इतिहास के सबसे गहरे गर्त में पहुंच गई। वर्ष 1973 के बाद से यह सबसे बड़ी अर्धवार्षिक गिरावट मानी जा रही है, जिसमें डॉलर इंडेक्स ने लगभग 11% का गोता लगाया और यह अपने 52-सप्ताह के उच्चतम स्तर से 13% नीचे फिसल गया।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप के संरक्षणवादी रवैये और "लिबरेशन डे" जैसे टैरिफ्स ने अमेरिकी वित्तीय प्रतिष्ठानों की स्थिरता को झकझोर कर रख दिया है। विदेशी निवेशक अब अमेरिकी परिसंपत्तियों से हाथ खींचने लगे हैं। फेडरल रिजर्व की स्वायत्तता पर राजनीतिक हमले और बढ़ता राजकोषीय घाटा, डॉलर की "सेफ हेवन" छवि को बुरी तरह नुकसान पहुँचा रहे हैं।
इसी बीच, बिग ब्यूटीफुल बिल एक्ट के तहत टैक्स में छूट और सामाजिक योजनाओं में कटौती की घोषणाओं ने अमेरिकी ऋण को $3.3 ट्रिलियन तक और बढ़ा दिया है। मूडीज ने अमेरिकी सॉवरेन रेटिंग को घटाकर Aa1 कर दिया है। वहीं, विदेशी निवेशकों के पास $31 ट्रिलियन की अमेरिकी संपत्तियाँ होने के कारण किसी भी विचलन का सीधा असर डॉलर पर दिखाई दे रहा है।
अर्थशात्री डॉ रामानंद पाण्डेय के अनुसार 2025 के अंत तक ब्याज दरों में दो से तीन बार कटौती की संभावनाओं ने डॉलर की चमक और कम कर दी है। इस गिरावट के बीच सोना नई ऊँचाई पर पहुँच गया है। स्विस सोने का अमेरिका स्थानांतरण और कॉमेक्स की इन्वेंट्री का 300 टन तक पहुंचना इस अनिश्चितता की तस्वीर को और स्पष्ट करता है।
अर्थशात्री डॉ रामानंद पाण्डेय के अनुसार भारत जैसे उभरते देशों के लिए यह संकट एक अवसर भी है। रुपये की मजबूती से तेल, खाद, रसायन, इलेक्ट्रॉनिक्स और ज्वैलरी सेक्टर को बड़ी राहत मिल रही है। किसानों को सस्ते इनपुट मिलेंगे और आयात करने वालों की लागत घटेगी। परन्तु दूसरी ओर आईटी, दवा और टेक्सटाइल जैसे निर्यात-निर्भर क्षेत्रों को गहरा झटका लग सकता है। डॉलर की कमजोरी से मिलने वाली कम आय, वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भारत को कमजोर कर सकती है। उच्च शिक्षा और विदेश यात्रा भी महंगी हो जाएगी।
बहरहाल डॉ रामानंद पाण्डेय के अनुसार ट्रंप की नीतियों से उत्पन्न डॉलर संकट एक ऐसा वित्तीय तूफान बन गया है जो विश्व बाजार की दिशा ही बदल सकता है कुछ के लिए अवसर, और कुछ के लिए संकट।