Rupee vs Dollar: डॉलर के मुकाबले पहली बार 90 के पार पहुंचा रुपया, रिकॉर्ड गिरावट ने बढ़ाई चिंता, जानिए क्यों हुआ ऐसा

Rupee vs Dollar: भारतीय रुपया आज पहली बार डॉलर के मुकाबले 90 के पार पहुंच गया। विदेशी निवेश में कमी, आयातकों की बढ़ती मांग और भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की अनिश्चितता से रुपये पर दबाव। जानें—क्यों लगातार गिर रहा है रुपया और आगे क्या होगा।

Rupee vs Dollar
डॉलर के आगे टूटा रुपया!- फोटो : social media

Rupee vs Dollar: भारतीय रुपया बुधवार को इतिहास के सबसे निचले स्तर पर बंद हुआ, जब यह पहली बार 90 के पार पहुँच गया। लगातार पाँचवें दिन रुपये में गिरावट दर्ज की गई, जिससे बाजार में बेचैनी और बढ़ गई। विशेषज्ञों का कहना है कि यह वह स्तर था जिसे RBI कई हफ्तों से बचाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन आज यह “मनोवैज्ञानिक सपोर्ट” टूट गया।

रुपये की गिरावट के पीछे क्या कारण हैं?

भारतीय मुद्रा की कमजोरी केवल वैश्विक स्थितियों का नतीजा नहीं है, बल्कि कई स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय कारण एक साथ दबाव बना रहे हैं।पिछले कुछ हफ्तों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा भारतीय बाजारों से तेज़ी से पूंजी निकाली जा रही है। अमेरिकी टैरिफ को लेकर असमंजस और वैश्विक अनिश्चितता की वजह से निवेशक जोखिम से बचने की रणनीति अपना रहे हैं। तेल कंपनियों सहित बड़े आयातकों ने लगातार डॉलर खरीदा। डॉलर की बढ़ती मांग ने रुपये को और नीचे धकेला।

भारत–अमेरिका व्यापार समझौता अटका

भारत–अमेरिका देशों के बीच संभावित व्यापार समझौता अनिश्चितता में है। नए टैरिफ के डर से बाजार में घबराहट बनी हुई है। मुद्रा बाजार में ट्रेडर्स द्वारा भारी मात्रा में शॉर्ट पोजिशन ली गई थी, जिसने रुपये की कमज़ोरी को और गहरा कर दिया। येन कैरी ट्रेड की आशंका से कई एशियाई करेंसीज़ दबाव में रहीं। इसका असर रुपये पर भी पड़ा।

RBI ने हस्तक्षेप क्यों नहीं किया?

पिछले हफ्तों में रिजर्व बैंक ने हल्का हस्तक्षेप जरूर किया था, लेकिन आज जब 88.80 का महत्वपूर्ण तकनीकी स्तर टूट गया तो बाजार को RBI की ओर से कोई बड़ी दखलअंदाजी नजर नहीं आई। विशेषज्ञों का मानना है कि RBI नियंत्रित तरीके से रुपये को लचीला रहने देना चाहता है।

डॉलर इंडेक्स गिरा, फिर भी रुपया क्यों टूटा?

दिलचस्प बात यह है कि अमेरिकी डॉलर इंडेक्स 99.22 पर थोड़ा कमजोर था।इसका मतलब है कि रुपये की गिरावट का मुख्य कारण घरेलू मांग और निवेश बहिर्गमन रहा। अंतरराष्ट्रीय माहौल थोड़ा सकारात्मक होते हुए भी भारतीय मुद्रा अपनी ही परिस्थितियों से दब गई।

शेयर बाजार में हलचल

रुपये की गिरावट का असर तुरंत शेयर बाजार पर भी दिखा। निफ्टी अपने रिकॉर्ड हाई से 300 अंक नीचे बंद हुआ।निवेशकों को डर है कि कमजोर मुद्रा से आयात लागत बढ़ेगी और कंपनियों की कमाई पर भी असर पड़ेगा।

आगे क्या हो सकता है?

MK ग्लोबल की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2026 तक रुपये की चाल 88 से 91 के बीच रहने की संभावना है। स्थिति तभी बेहतर हो सकती है जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता तय हो जाए और टैरिफ भारत के पक्ष में हों।