Bihar Crime News: अस्पताल की दीवारों के साए में दहशत का खेल! सदर अस्पताल में वार्ड गर्ल पर एसिड अटैक, बाल-बाल बची जिंदगी

Bihar Crime News: सदर अस्पताल जहाँ ज़िंदगी बचाने के लिए लोग दौड़ते हैं, वहीं मौत की परछाईं चुपके से अस्पताल की दीवारों के भीतर उतर आई।...

Nalanda Terror under hospital walls ward
सदर अस्पताल में वार्ड गर्ल पर एसिड अटैक- फोटो : social Media

Bihar Crime News: सदर अस्पताल जहाँ ज़िंदगी बचाने के लिए लोग दौड़ते हैं, वहीं मौत की परछाईं चुपके से अस्पताल की दीवारों के भीतर उतर आई। अपराध की दुनिया की भाषा में इसे कहते हैं साइलेंट वार… बिना आवाज़, बिना चेतावनी, सीधा चाकू जैसी जलन। अज्ञात हमलावरों ने बिहारशरीफ के सदर अस्पताल परिसर में मौजूद एक वार्ड गर्ल पर एसिड से हमला करने की साज़िश की, और बोतल उसके बिलकुल पास आकर फर्श पर फट गई। अगर एक कदम आगे, या दो सेकंड की देरी होती मामला इंसानी जिस्म पर नहीं, चेहरे की पहचान और ज़िंदगी पर होता।

पीड़िता का नाम जूली कुमारी, नवादा जिले के वारिसलीगंज थाना क्षेत्र की रहने वाली। आउटसोर्सिंग पर बहाली, सरकारी अस्पताल में ड्यूटी और रात की शिफ्टें, जिनमें आमतौर पर डर और ज़िम्मेदारी दोनों साथ चलते हैं। जूली आनंद पथ, नाला रोड के एक किराए के मकान में रहती हैं। उस रात की कहानी उनके शब्दों में लेबर वार्ड से नए भवन की तरफ जा रही थी। ऊपर की मंज़िल से किसी ने बोतल फेंकी। बस एक झटका और ज़मीन पर गिरकर तेज़ धमाके के साथ एसिड फैल गया।

यह हमला किसी हादसे का नाम नहीं, बल्कि सोची-समझी वारदात का नमूना है। अपराधियों को अस्पताल की बनावट, ड्यूटी का वक़्त और रास्ते का अंदाज़ा था। यानी प्लानिंग साफ थी टारगेट साफ, इरादा काला।

एसिड जिसे अपराध की दुनिया में  खामोश हथियार  कहा जाता है। न गोली की आवाज़, न चाकू की चोट, लेकिन जिस्म को राख कर देने की ताक़त। बोतल फर्श पर गिरने से वार्ड गर्ल की जान तो बच गई, लेकिन निशान दहशत का ज़रूर छोड़ दिया। अगर वो कुछ कदम आगे होती, तो चेहरे की त्वचा, आँखें, और ज़िंदगी हमेशा के लिए पलट सकती थीं।

घटना की सूचना पर नगर थानाध्यक्ष सम्राट दीपक मौके पर पहुंचे और जांच शुरू कर दी। अस्पताल परिसर को सुरागों के लिए खंगाला जा रहा है। हमला करने वाला कौन था? किसी मरीज के परिजन? कोई बदमाश? या अंदर का कोई चेहरा? यह अब पुलिस की तहकीकात का हिस्सा है।

लेकिन सवाल उससे बड़ा है कि अस्पताल जैसी पवित्र जगह में, जहाँ इलाज होता है, ज़ख्म लगाए जा रहे हैं। रात की शिफ्ट में काम करने वाली नर्सें और वार्ड गर्ल्स अब ड्यूटी नहीं, जिंदगी की बाज़ी खेल रही हैं। शहर के अपराध जगत में यह संदेश साफ है कि अस्पताल अब सुरक्षित नहीं, दहशत की परतें इमारत तक घुस चुकी हैं।