देवर की शर्मनाक हरकत, भाभी ने पहले दबाया मामला, बेटी की इज़्ज़त लगी दांव पर, दर्दनाक कहानी सुनकर रूह कांप जाएगी, पटना में शर्मसार करने वाली वारदात

Patna Crime: दर्दनाक कहानी सुनकर रूह कांप जाती है। यह कहानी है 36 साल की विधवा मां की, जिसने पति की मौत के बाद तीन मासूम बच्चों की परवरिश का बोझ अकेले उठाया। लेकिन...

Patna Shocking Act by Brother in law
देवर की शर्मनाक हरकत- फोटो : social Media

Patna Crime:पटना की गलियों में इंसानियत को शर्मसार करने वाली सनसनीखेज़ वारदात ने हर किसी को हिला दिया है। दर्दनाक कहानी सुनकर रूह कांप जाती है। यह कहानी है 36 साल की विधवा मां की, जिसने पति की मौत के बाद तीन मासूम बच्चों की परवरिश का बोझ अकेले उठाया। लेकिन उसकी ज़िन्दगी में रिश्तों और अजनबियों ने जो ज़हर घोला, वह समाज को झकझोर देने वाला है।

साल 2023 में पति के निधन के बाद महिला को उम्मीद थी कि परिवार उसका सहारा बनेगा। लेकिन उसका अपना देवर ही दरिंदगी पर उतर आया। रात के अंधेरे में कमरे में घुसकर उसने महिला के जिस्म को गलत तरीके से छूने की कोशिश की। विरोध करने पर मामला रफ़ा-दफ़ा कर दिया गया। ससुराल वालों ने भी इसे मज़ाक बनाकर टाल दिया। बोला गया।“देवर-भाभी के बीच ये सब चलता रहता है”।

महिला ने 1 अगस्त को थाने में FIR दर्ज करवाई, लेकिन पुलिस ने चुप्पी साध ली। यही खामोशी दरिंदे को और हौसला देती रही। वो बार-बार महिला की इज़्ज़त से खेलने लगा। पीड़िता ने अपने बच्चों की परवरिश और इज़्ज़त के नाम पर खामोशी ओढ़ ली।

लेकिन हद तब हुई जब महज 7 साल की मासूम बेटी को भी दरिंदों ने नहीं छोड़ा। किराएदार ने बच्ची के प्राइवेट पार्ट की तस्वीर खींच ली। उस दिन मां अस्पताल में थी और बेटी घर पर। बच्ची ने डरी सहमी आवाज़ में बताया– “अंकल ने धमकी दी थी, अगर किसी को बताया तो मार डालेंगे”।

बेटी की मासूमियत पर हमला सुनकर मां टूट गई। उसका कहना है “अब खून का घूंट पीना नामुमकिन है, मेरी बेटी की इज़्ज़त दांव पर है”। लेकिन दर्द यह भी है कि बेटी की बदनामी के डर से वह खुलकर FIR दर्ज नहीं करवाना चाहती।

महिला आयोग की सदस्य रश्मि रेखा सिन्हा ने पूरे मामले को गंभीर मानते हुए कहा है कि पीड़िता ने महिला थाने में शिकायत दर्ज करवाई है। DM को भी पत्र लिखा गया है। लेकिन पुलिसिया कार्रवाई अभी भी ठंडी पड़ी है। अगली सुनवाई 20 अक्टूबर को तय है।

यह घटना सिर्फ़ एक मां-बेटी की त्रासदी नहीं, बल्कि कानून-व्यवस्था पर सवालिया निशान है। सवाल ये उठता है कि आखिर कब तक मासूम बेटियों की चीख़ें, माओं की सिसकियां और समाज की शर्मिंदगी इस तरह दबाई जाती रहेगी?