दहेज़ खातिर सिपाही नहीं लाया बारात दुल्हन संग परिवार पंहुचा थाने
Crime News: दुल्हन सजे जोड़े में इंतज़ार कर रही थी, मेहमान फूलों की महक में डूबे थे, पर जैसे ही खबर आई कि दूल्हा बारात लेकर नहीं आ रहा, समूचा महफ़िलख़ाना मातम में बदल गया।
Crime News: दुल्हन सजे जोड़े में इंतज़ार कर रही थी, मेहमान फूलों की महक में डूबे थे, पर जैसे ही खबर आई कि दूल्हा बारात लेकर नहीं आ रहा, समूचा महफ़िलख़ाना मातम में बदल गया। दिल्ली-दून हाइवे के किनारे बसे एक फार्म हाउस में रविवार की शाम वह माहौल था, जहाँ शहनाई की सुर लहरियों में खुशियों की महक घुलनी थी। यह मामला किसी आम रद्द-शादी का नहीं, बल्कि दहेज़खोरी की स्याह हकीकत का नमूना है, जिसने समाज की पेशानी पर शिकन डाल दी है।
दौराला थाना क्षेत्र के मनोहरपुरी निवासी मास्टर महेश शर्मा की बिटिया की शादी परतापुर के अछरौंडा निवासी गोपाल शर्मा के बेटे अभिषेक शर्मा से तय हुई थी — जो पेशे से उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही है और इस वक़्त कासगंज में तैनात है। रिश्ता बिचौलिया अशोक शर्मा के जरिये तय हुआ। एक नवंबर को सगाई के रस्म अदा हुई और दो नवंबर को बारात आने का वक़्त मुकर्रर था।
शादी की तैयारियाँ पूरे तामझाम के साथ चल रही थीं फार्म हाउस जगमगा रहा था, रिश्तेदारों की भीड़ लगी थी, डीजे की धुनें बज रहीं थीं। लेकिन रात ढलने लगी और बारात का कोई अता-पता नहीं। बेचैनी बढ़ी तो दुल्हन के पिता ने फोन किया। उधर से आया जवाब सुनकर सबके पैरों तले ज़मीन खिसक गई बीस लाख रुपये नकद चाहिए, मेरी नौकरी लगवाने में इतने ही खर्च हुए हैं!
दहेज़ की इस मांग ने पूरी खुशियों पर पानी फेर दिया। दुल्हन की आँखों का काजल आँसुओं में बह गया। रिश्तेदारों ने थालियाँ छोड़ दीं, मिठाई की मिठास जहर बन गई। फार्म हाउस का हर कोना रोती हुई इज़्ज़त और टूटे अरमानों का गवाह बन गया।
लाचार पिता महेश शर्मा ने दौराला थाने पहुँचकर तहरीर दी। पुलिस ने तुरंत दूल्हे, उसके पिता और बिचौलिये के खिलाफ दहेज़ उत्पीड़न और धोखाधड़ी की धाराओं में एफआईआर दर्ज की।
सूचना मिलते ही भाजपा के पूर्व विधायक ठाकुर संगीत सोम मौके पर पहुँचे, परिजनों से मुलाकात की और दूल्हा पक्ष के इस शर्मनाक कृत्य पर अफसोस जताया। उन्होंने पुलिस अधिकारियों से बात कर पीड़ित परिवार को हरसंभव सहायता का भरोसा दिया।
अब यह मामला प्यार और इज़्ज़त की जंग से आगे बढ़कर इंसाफ की लड़ाई बन गया है। जहां दुल्हन की आँखों में अब आँसू नहीं, बल्कि अपने हक़ की चमक है क्योंकि शहनाई की आवाज़ भले ही थम गई हो, पर इंसाफ की दस्तक अब गूंज उठी है।