हिन्दू परिवारों में प्रतिदिन सुबह और शाम पूजा तथा आरती करने की परंपरा है, इसके बिना दिन की शुरुआत करना संभव नहीं होता। देवों में प्रथम देव गणेश जी को बताया गया है। भगवान गणेश की पूजा से इहलोक से साथ परलोक भी सुधरता है।
गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥ जय गणेश० ॥
एकदन्त दयावन्त चार भुजा धारी। मस्तक सिन्दूर सोहे मूसे की सवारी ॥ जय गणेश०॥
अन्धन को आँख देत कोढ़िन को काया। बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया ॥ जय गणेश० ॥
लडुअन कौ भोग लगे सन्त करें सेवा। पान चढ़ें फूल चढ़ें और चढ़ें मेवा ॥ जय गणेश०॥
दीनन की लाज राखो शम्भु-सुतवारी। कामना को पूरा करो जग बलिहारी ॥ जय गणेश० ॥
गणेश जी की आरती करते समय काले वस्त्र पहनना उचित नहीं है, क्योंकि इसे नकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। गजानन की पूजा पीले, सफेद या लाल रंग के कपड़ों में करनी चाहिए।जब आप गणेश भगवान के सामने दीपक जलाते हैं, तो उसका स्थान बार-बार न बदलें। कई लोग दीया जलाने के बाद उसे सिंघासन पर रखते हैं या उसकी स्थिति को सुधारते हैं, लेकिन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ऐसा करने से पूजा का फल नहीं मिलता।गजानन को भोग में अर्पित की गई वस्तुओं को पूजा के बाद सिंघासन पर नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि इससे घर में दरिद्रता आ सकती है।गणेश जी को पूजा में तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाने चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक बार तुलसी गणेश जी को देखकर उन पर मोहित हो गई थीं और उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा था, जिसे गणेश ने ठुकरा दिया। इसके परिणामस्वरूप तुलसी ने गजानन को दो विवाह करने का श्राप दिया था।