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Aarti: आरती पूजा के बाद क्यों की जाती है , आरती करने और देखने से कैसे होती है पुण्य की प्राप्ति, कैसे करें आरती, जानिए सब कुछ

किसी भी पूजा के बाद आरती सबसे जरुरी मानी जाती है। आरती का मतलब ईश्वर से प्रेम होता है। आरती के बहाने उसी प्रेम भाव का जब हम ह्रदय से इजहार करते हैं तो सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

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आरती क्यों की जाती है- फोटो : Social Media

Aarti: हिन्दू परिवारों में प्रतिदिन सुबह और शाम पूजा तथा आरती करने की परंपरा है, इसके बिना दिन की शुरुआत करना संभव नहीं होता। हिन्दुओं की पूजा में आरती का स्थान सबसे अहम बताया गया है। आरती को भगवान का आशीर्वाद पाने का सबसे सरल तरीका बतलाया गया है। घी, धूप, कर्पूर से आरती का विधान है।  आरती का अर्थ है अपने आप को अपने इष्ठ के आगे समर्पित कर देना।  

आरती को 'आरात्रिक' या 'आरार्तिक' और 'नीराजन' भी कहा गया हैं। पूजाके अन्तमें आरती का विधान है। भगवत पूजन में जो अनजाने में गलती रह जाती है, आरती कर देने भर से उसकी पूर्ति होती है। 

स्कन्दपुराण के अनुसार 

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् कृतं पूजनं हरेः। सर्वं सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे ॥

'पूजन मन्त्रहीन और क्रियाहीन होनेपर भी नीराजन (आरती) कर लेनेसे उसमें सारी पूर्णता आ जाती है।'

आरती करनेका ही नहीं आरती देखनेका भी बड़ा पुण्य शास्त्रों में बताया गया है। हरिभक्तिविलास के अनुसार -

नीराजनं च यः पश्येद् देवदेवस्य चक्रिणः । सप्तजन्मनि विप्रः स्यादन्ते च परमं पदम् ॥

'जो देवदेव चक्रधारी श्रीविष्णुभगवान्‌की आरती (सदा) देखता है, वह सात जन्मोंतक ब्राह्मण होकर अन्तर्मे परमपदको प्राप्त होता है।

विष्णुधर्मोत्तर के अनुसार -

धूपं चारात्रिकं पश्येत् कराभ्यां च प्रवन्दते। कुलकोटिं समुद्धृत्य याति विष्णोः परं पदम् ।।

'जो धूप और आरतीको देखता है और दोनों हाथोंसे आरती लेता है, वह करोड़ पीढ़ियोंका उद्धार करता है और भगवान् विष्णुके परमपदको प्राप्त होता है।'

आरतीमें पहले मूलमन्त्र जिस देवताका जिस मन्त्रसे पूजन किया गया हो, उस मन्त्र के द्वारा तीन बार पुष्पाञ्जलि देनी चाहिये और ढोल, नगारे, शङ्ख, घड़ियाल आदि महावाद्योंके और जय-जयकारके शब्दके साथ शुभ पात्रमें घृतसे या कपूरसे विषम संख्याकी अनेक बत्तियाँ जलाकर आरती करनी चाहिये। 


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