Lord Vitthal: एक भक्त, जिसने भगवान को भी माँ के आगे झुकाया,माँ के पैर दबाते भक्त ने विठोबा को ईंट पर बिठाया, कर्तव्य की ऐसी अनूठी मिसाल जानकर हो जाएंगे हैरान
Lord Vitthal: भगवान कृष्ण, जिन्हें सृष्टि का स्वामी कहा जाता है, एक भक्त की आज्ञा मानकर ईंट पर बैठे हैं। यह कहानी उस भक्त की है, जिसने कर्तव्य को भक्ति से ऊपर रखा ।

Lord Vitthal: पंढरपुर के विठोबा मंदिर की कहानी अपने आप में अनूठी है, जहाँ भगवान कृष्ण, जिन्हें सृष्टि का स्वामी कहा जाता है, एक भक्त की आज्ञा मानकर ईंट पर बैठे हैं। यह कहानी उस भक्त की है, जिसने कर्तव्य को भक्ति से ऊपर रखा और माँ की सेवा को भगवान की पूजा से भी बड़ा माना।
क्या थी वह घटना?
एक भक्त अपनी माँ के पैर दबा रहा था, अपने प्रेम और समर्पण में डूबा हुआ। वह भक्त वर्षों से कृष्ण की भक्ति में लीन था—विरह में रोता, गीत गाता, नाचता और अपने आराध्य को याद करता। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान कृष्ण प्रकट हुए और पीछे खड़े होकर बोले, "हे भक्त! मैं तेरा भगवान हूँ, जिसके लिए तूने इतने वर्षों तक प्रार्थना की, धूप-दीप जलाए। पलटकर मेरी ओर देख, मैं यहाँ हूँ!"
लेकिन भक्त ने पलटकर देखने के बजाय पास पड़ी एक ईंट को पीछे सरकाया और कहा, "इस पर बैठ जाओ। अभी मैं माँ के पैर दबा रहा हूँ। तुम ठीक समय पर नहीं आए।" भगवान कृष्ण, जिन्हें विठोबा के रूप में जाना जाता है, उस भक्त के आदेश पर चुपचाप ईंट पर बैठ गए। भक्त ने कहा, "अगर रुकना ही है, तो बैठे रहो। नहीं तो तुम्हारी मर्जी।"
कर्तव्य की सच्ची परिभाषा
यह कहानी कर्तव्य की उस गहन अवधारणा को दर्शाती है, जो आज के समय में कहीं खो सी गई है। उस युग में कर्तव्य का अर्थ था—वह कार्य जो करने योग्य है, जिसके अतिरिक्त और कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं। भक्त के लिए उस पल में माँ की सेवा से बढ़कर कोई कर्तव्य नहीं था, यहाँ तक कि भगवान का दर्शन भी उस कर्तव्य के सामने फीका पड़ गया।
कर्तव्य उस समय अनिच्छा से किया गया कार्य नहीं था, बल्कि एक सात्विक भाव था, जिसमें प्रेम, समर्पण और धर्म का संगम था। भक्त ने भगवान को प्रतीक्षा करने को कहा, क्योंकि माँ की सेवा पूरी होने तक वह किसी और की ओर ध्यान नहीं दे सकता था।
पंढरपुर का अनूठा मंदिर
पंढरपुर का विठोबा मंदिर इसीलिए खास है। दुनिया में कई मंदिर हैं, जहाँ भगवान अपनी इच्छा से विराजमान हैं, लेकिन यहाँ विठोबा एक भक्त की मर्जी से ईंट पर बैठे हैं। कोई भव्य सिंहासन नहीं, बस एक साधारण ईंट, जो भक्त के कर्तव्य और भक्ति की महानता का प्रतीक है। भक्त ने तब तक भगवान की ओर मुंह नहीं किया, जब तक उसकी माँ सो नहीं गई। घंटों बाद, जब माँ को सुलाकर वह मुक्त हुआ, तभी उसने विठोबा की ओर देखा।
जहाँ प्रेम, वहाँ प्रार्थना
इस घटना ने भगवान कृष्ण के हृदय को छू लिया। वे इस भक्त के प्रेम, कर्तव्यनिष्ठा और निस्वार्थ भक्ति से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने हमेशा के लिए पंढरपुर में विठोबा के रूप में निवास करना स्वीकार किया। यह कहानी सिखाती है कि सच्चा प्रेम और कर्तव्य ही वह प्रार्थना है, जो भगवान तक पहुँचती है। जहाँ माँ के प्रति इतना गहरा प्रेम और समर्पण है, वहाँ प्रार्थना का फूल स्वतः खिल उठता है।
आज के लिए प्रेरणा
आज के दौर में, जब कर्तव्य को केवल बोझ या मजबूरी समझा जाता है, यह कहानी हमें याद दिलाती है कि कर्तव्य वह है, जो मन से, प्रेम से और समर्पण से किया जाए। भक्त का यह कृत्य हमें सिखाता है कि अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठा ही सच्ची भक्ति है, और यही वह मार्ग है, जो हमें ईश्वर के और करीब ले जाता है।
पंढरपुर का विठोबा आज भी उस भक्त की भक्ति और कर्तव्य की गाथा को जीवंत रखता है, जो हमें बताता है कि माँ की सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं, और सच्चा भक्त वही है, जो कर्तव्य को भगवान से भी ऊपर रखे।
संपादक कौशलेंद्र प्रियदर्शी के वॉल से