Demon Gayasur: एक राक्षस ‘गयासुर’ के कारण ‘गया’ कैसे बना मोक्ष प्राप्ति का स्थान,पांच कोस में फैला है राक्षस का शरीर

Demon Gayasur: धार्मिक दृष्टि से गया न सिर्फ हिन्दूओं के लिए बल्कि बौद्ध धर्म मानने वालों के लिए भी महनीय है। बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे महात्मा बुद्ध का ज्ञान क्षेत्र मानते हैं जबकि हिन्दू गया को मुक्तिक्षेत्र और मोक्ष प्राप्ति का स्थान मानते हैं।

Demon Gayasur, Gaya
पांच कोस में फैला है राक्षस का शरीर- फोटो : social Media

Demon Gayasur: पुराणों के अनुसार गयासुर एक शक्तिशाली राक्षस था जिसने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की थी। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे वरदान दिया कि जो भी उसे देखेगा या छूएगा, वह सीधे स्वर्ग जाएगा और यमलोक नहीं जाएगा। इस वरदान के परिणामस्वरूप यमलोक में जनसंख्या कम होने लगी, जिससे देवताओं में चिंता उत्पन्न हुई।

इससे परेशान होकर यमराज ने जब ब्रह‍्मा, व‌िष्णु और शिव से यह कहा क‌ि गयासुर के कारण अब पापी व्यक्त‌ि भी बैकुंठ जाने लगा है इसल‌िए कोई उपाय क‌िज‌िए। यमराज की स्‍थ‌ित‌ि को समझते हुए ब्रह‍्मा जी ने गयासुर से कहा क‌ि तुम परम पव‌ित्र हो इसल‌िए देवता चाहते हैं क‌ि हम आपकी पीठ पर यज्ञ करें।

इस समस्या को हल करने के लिए देवताओं ने गयासुर से कहा कि उन्हें उसके शरीर पर यज्ञ करना है। गयासुर ने अपने शरीर को यज्ञ के लिए देने का निर्णय लिया और अपने शरीर को उत्तर दिशा में लेटकर फैलाया, जिससे उसका शरीर पांच कोस (लगभग 15 किलोमीटर) तक फैला हुआ माना जाता है। इसी कारण इस क्षेत्र का नाम ‘गया’ पड़ा।

जब देवताओं ने यज्ञ शुरू किया, तो गयासुर का शरीर हिलने लगा। इसे स्थिर करने के लिए भगवान विष्णु स्वयं आए और अपने चरणों से गयासुर के शरीर को स्थिर किया। यासुर के शरीर को स्‍थ‌िर करने के ल‌िए इसकी पीठ पर एक बड़ा सा श‌िला भी रखा गया था। यह श‌िला आज प्रेत श‌िला कहलाता है।

गयासुर के इस समर्पण से व‌िष्‍णु भगवान ने वरदान द‌िया क‌ि अब से यह स्‍थान जहां तुम्हारे शरीर पर यज्ञ हुआ है वह गया के नाम से जाना जाएगा। यहां पर प‌िंडदान और श्राद्ध करने वाले को पुण्य और प‌िंडदान प्राप्त करने वाले को मुक्त‌ि म‌िल जाएगी। यहां आकर आत्मा को भटकना नहीं पड़ेगा।

गया एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन गया जहां लोग अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से 101 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है और उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है। गया में पहले 360 वेदियां थीं, लेकिन अब केवल 48 ही शेष हैं जहाँ लोग पिंडदान करते हैं।



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