Geeta Gyan: वासना और मोह में फंसा मानव भूलता है धर्म-पथ, स्वयं से हारकर चलता है आत्मविनाश की ओर, पढ़िए अंतर्मन के द्वार खोलने वाली कहानी...

Geeta Gyan: कौशल प्रियदर्शी की यह कहानी उस समाज की प्रतिच्छाया है, जो जानता तो है पाप-पुण्य का भेद, परंतु फिर भी स्वयं को वासना के वश में कर देता है।

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पाप-पुण्य का भेद- फोटो : Meta

मनुष्य पाप करता क्यों है?गीता में अर्जुन के सवाल पर भगवान कृष्ण का जवाब आंखे खोल देगा...कैसे खुद को हीं धोखा दे रहे...

वासना और काम के वश में होकर व्यक्ति खुद के सामने खुद से ही हार जाता है...प्रतिदिन खबरों में आप अवैध संबंधों से जुड़ी, हत्या ,चोरी घोटाला से संबंधित खबरों को पढ़ते हैं और देखते हैं...और आप कह उठते हैं कि यह बिल्कुल गलत है...लेकिन क्या आप भी वहीं काम तो नहीं कर रहे होते। क्या आप भी उसके शिकार तो नहीं?दैनिक जीवन में आप और हम कर क्या रहे हैं...छोटी छोटी बातें भी बहुत कुछ सिख दे जाती है।

गीता में भगवान कृष्ण से अर्जुन ने पूछा कि हे केशव इंसान पाप करता हीं क्यों है...केशव कहते हैं कि वासना और काम के जाल में फंसा जीव यानी मनुष्य वासनात्मक प्रवृत्तियों की वजह से उसका गुलाम होता है। फिर उसी के अनुसार वह रिश्ते नाते और नैतिक जिम्मेदारियों को भूलकर व्यभिचार,वासनात्मक कर्मों में डूब कर खूब पाप करता है। जिसमें उसे मजा आता है जबकि बाद वही सजा का करना बनता है। सबको यह पता होता है कि यह रास्ता बिल्कुल गलत है..इसका परिणाम इस लोक में और परलोक में कहीं से अच्छा नहीं होने वाला। लेकिन चुकी उसका आत्मविश्वास इतना कमजोर होता है कि वह अपना आत्मचरित्र तक नहीं बचा पाता...बार बार वह वहीं करने को विवश होता है जबकि उसे पता है कि यह रास्ता निहायत  गलत है।इस रास्ते को नियत और नीति से कोई वास्ता नहीं। उसकी विवशता और उसके पाप कर्म की वजह वह खुद होता है लेकिन दोष दूसरे की सिरे मढ़कर या फिर कुछ और कर के आत्मसंतुष्टि का स्वांग रचता है। उसके अंदर नैतिक बल की इतनी कमी होती है वह पाप करने पर विवश होता है। जबकि उसे सबकुछ पता होता है। जिदंगी के द्वंद में फंसता चला जाता है।जबकि कुछ इस द्वंद से बाहर आने में कामयाब हो जाते हैं..जबकि कुछ नैतिक पतन की पराकाष्ठा देखने के बाद भी कुछ एकदम सुधर नहीं पाते...

भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कुछ मनुष्य जीव ऐसे होते हैं जिनपर वासना और काम इतना हावी होता है उसे शास्त्र लिखिए नैतिक नियम का भी रत्ती  भर अहसास नहीं होता। वह अपनी कमियों पर बात करने को तैयार नहीं होता। धर्मशास्त्र में बताए नैतिक रास्ते भी उसे कांटे की तरह चुभता है...जैसे शराबी और मांसाहारी को आप शराब छोड़ने को कहते हैं तो वह कह उठता है कि यह बनाया हीं क्यों गया। वह अजीब सा तर्क दे उसके सेवन का मजा लेता है। उसी तरह वासना काम क्रोध और अहंकार का पर्दा इतना गहरा होता है उसे आगे कुछ सूझता हीं नहीं। समझाने वाला व्यक्ति हीं उसका दुश्मन नंबर वन होता है। आप सुअर जैसे जानवर को कीचड़ से निकाल बेड पर सुलाएंगे तो वह बार बार उसी गंदी नाली और कीचड़ की तरफ हीं भागेगा। चुकी उसके लिए वहीं अच्छा है। उसे अहसास हीं नहीं यह गलत है उसे वहीं अच्छा लगता है...इसी तरह वासना की जाल में फंसा मनुष्य भी वहीं हरकतें कर अपने बहुमूल्य जीवन को नष्ट कर रहा होता है। भगवान की बड़ी महती कृपा होती है तब वह  समझने के काबिल बन पाता है। संयोग देखिए चुकी सुअर भोग योनि में होता है तो उसे उस स्थिति को भोगना हीं है। लेकिन वहीं जीवन में कई जानवरों को भी आपने समझदार देखा होगा। तो हम और आप समझदार क्यों नहीं हो सकते।

हम आप तो इंसान हैं...जीवन में  सही और गलत दो हीं रास्ते हैं चलना किस पर यह हमे और आपको तय करना है...सोचिए सतर्क रहिए और सावधान रहिए...सीताराम नाम स्मरण के साथ दायित्वपूर्ण कर्म...खुद सुधरोगे जग सुधरेगा...

संपादक कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से...