Ram leela: श्री राम की लीला, काल का शिकंजा, भगवान हनुमान भी न रोक पाए, जानें मृत्यु का अद्भुत रहस्य
Ram leela: अरे मनवा! भवसागर की नाजुक नाव में सवार हो, तो जरा संभल के! कहीं अपने ही कर्मों के बोझ से डुबो न देना!

Ram leela: ये जगती का अटल नियम है, जिसने सांस ली है, वो एक दिन अवश्य ही काल के ग्रास में समाएगा। स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम भी इस विधान से बंधे थे। मगर, उनके मृत्यु वरण की राह इतनी आसान न थी, क्योंकि द्वार पर जो खड़ा थे, वे पवनपुत्र हनुमान थे – जिनकी प्रचंड शक्ति के आगे यमराज भी अयोध्या की सीमा में कदम रखने से थर थर कांपते थे।
यम की बोलती बंद! हनुमान बने अभेद्य दीवार, तब राम ने खेला अद्भुत खेल!
मृत्यु के देवता यम को श्री राम तक पहुंचने की हिम्मत कैसे होती, जब उनके महल का प्रहरी, उनका अनन्य भक्त हनुमान, वज्र सरीखी भुजाएं लिए खड़ा थे? यम का अयोध्या में प्रवेश मानो सिंह के गुफा में घुसने जैसा था। तब लीलाधर राम ने एक अद्भुत योजना बनाई।एक दिन, जब प्रभु राम जान गए कि उनके लौकिक लीला का समापन निकट है, उन्होंने हनुमान से कहा – “हे पवनपुत्र, अब यमराज को मेरे पास आने दो। मेरे वैकुंठ धाम जाने का समय आ गया है।” पर भक्ति के सागर में डूबे हनुमान भला यह कैसे स्वीकार करते?”लेकिन हनुमान जी नहीं मान रहे थे
अंगूठी गिरी, हनुमान पाताल में! क्या ये थी राम की विदाई की लीला?
यम के प्रवेश के लिए श्री हनुमान को हटाना जरुरी था।इसलिए तब भगवान राम ने अपनी मुद्रिका, अपनी प्रिय अंगूठी, महल की धरती के एक छोटे से छिद्र में गिरा दी। व्याकुलता का नाटक करते हुए उन्होंने हनुमान से उसे ढूंढ लाने का आग्रह किया। प्रभु की आज्ञा शिरोधार्य कर, हनुमान पल भर में भौंरे के समान छोटे हो गए और उस रहस्यमय छेद में उतर गए।यह छिद्र मात्र एक बिल नहीं था, बल्कि नागों के लोक, नागलोक की ओर जाने वाली एक लंबी सुरंग थी! वहां हनुमान की भेंट नागों के राजा वासुकी से हुई, जिन्हें उन्होंने अपने आने का कारण बताया। वासुकी हनुमान को नागलोक के मध्य में ले गए, जहां अंगूठियों का एक विशाल पर्वत खड़ा था!
अंगूठियों का पहाड़! क्या हर युग में राम आते हैं और चले जाते हैं?
“यहां आपको श्री राम की अंगूठी अवश्य मिल जाएगी,” वासुकी ने कहा। हनुमान उस अथाह ढेर को देखकर सोच में पड़ गए – भूसे के ढेर में सुई ढूंढना भी इतना मुश्किल न होगा! किस्मत ने साथ दिया, और पहली जो अंगूठी हनुमान के हाथ लगी, वह भगवान श्री राम की ही थी! आश्चर्य तब और गहरा गया, जब दूसरी अंगूठी भी वही निकली। वास्तव में, उस पूरे पर्वत पर जितनी भी अंगूठियां थीं, सब एक समान थीं! हनुमान का मस्तिष्क चकरा गया – “इसका क्या अर्थ है?”
वासुकी मंद-मंद मुस्कुराए और बोले, “हे वानरश्रेष्ठ, यह संसार सृष्टि और विनाश के चक्र में घूमता रहता है, और इसके मध्य में कर्म का पहिया चलता है। भगवान राम ने अवतार लेकर यही सिखाया है कि कर्म को कैसे जिया जाए। हर सृष्टि चक्र एक कल्प कहलाता है, और हर कल्प में चार युग होते हैं।”
अनंत राम, अनंत लीला! मृत्यु तो बस एक पड़ाव है!
वासुकी ने आगे कहा, “दूसरे युग, त्रेता युग में, भगवान राम अयोध्या में जन्म लेते हैं। एक वानर उनकी अंगूठी का पीछा करता है, और पृथ्वी पर राम मृत्यु को प्राप्त होते हैं। यह अंगूठियों का ढेर ऐसे ही सैकड़ों-हजारों कल्पों से बनता आ रहा है। सभी अंगूठियां सत्य हैं। गिरती रहीं और इनका अंबार बढ़ता रहा। भविष्य के रामों की अंगूठियों के लिए भी यहां पर्याप्त स्थान है।”
अब हनुमान समझ गए कि उनका नागलोक में आना और अंगूठियों के पर्वत से मिलना कोई साधारण घटना नहीं थी। यह स्वयं श्री राम का तरीका था उन्हें यह समझाने का कि मृत्यु एक अटल सत्य है, जिसे कोई रोक नहीं सकता। भगवान राम मृत्यु को प्राप्त होंगे और फिर से जन्म लेंगे।
मानव जीवन अनमोल नौका! कर्म की पतवार संभालो, वरना...
हे मनुष्य! तुम्हें भवसागर से पार होने के लिए यह सुंदर मानव शरीर रूपी नौका मिली है। कर्म की पतवार को ठीक से थामना होगा। जरा सी चूक, और वासना, अहंकार, ईर्ष्या और द्वेष के भंवर में पड़कर यह नौका डूब जाएगी! सतर्क रहो, कहीं ऐसा न हो कि तुम स्वयं ही अपनी मुक्ति के मार्ग में बाधा बन जाओ!
साभार: संपादक कौशलेंद्र प्रियदर्शी के वाट्सएप से