Religion:"जो कुछ न माँगे, वही सब पा जाता है – भक्ति का रहस्य और रामप्रेम का प्रसाद"
Religion:भक्ति किसी वाणी की वस्तु नहीं, यह आत्मा की पुकार है।यह तब मिलती है जब हमारे जीवन का लक्ष्य केवल और केवल प्रभु का प्रेम बन जाए।जब न धन चाहिए, न पद, न सुख—केवल प्रभु का नाम और उनकी कृपा।

Religion:करूँ राम से प्रार्थना, दें तुमको आनंद।
फूल भरी हो जिंदगी, और रहो सानंद।।
भक्ति का मार्ग सरल है परंतु उसमें प्रवेश वही कर सकता है जिसका हृदय संसार के बंधनों से विलग होकर केवल प्रेम में डूबा हो। यह कथा हमें यही सिखाती है कि ईश्वर की भक्ति तभी प्राप्त होती है जब वह हमारी पहली प्राथमिकता बन जाए।
अयोध्या के संत: कथा में डूबा एक प्रेमी हृदय
श्री अयोध्या जी की पुण्यभूमि पर एक सिद्ध संत निवास करते थे। उनका जीवन अत्यंत सरल था, परंतु उनका मन रामकथा में रमता था। उन्हें रामायण का श्रवण करना इतना प्रिय था कि जहाँ कहीं कथा होती, वे प्रेमपूर्वक वहाँ पहुँच जाते।
कभी-कभी वे स्वयं किसी भक्त या संत से कथा कहने की प्रार्थना भी कर देते। उनका भक्ति से भीगा हुआ हृदय कथा सुनते-सुनते भाव-विभोर हो जाता।
एकांत कथा: जब धनहीनता भी बाधा न बनी
एक दिन उन्हें कथा सुनाने वाला कोई न मिला। तभी एक पंडित रामायण की पोथी लिए जा रहे थे। उन्होंने संत को प्रणाम किया और सेवा का अवसर माँगा।
संत बोले—“पंडित जी, कथा सुनाइए, पर हमारे पास दक्षिणा देने को कुछ भी नहीं है।”
हम तो केवल माला, लंगोटी और कमंडलधारी फक्कड़ साधु हैं।
पंडित जी ने निस्संकोच कहा—“महाराज! यही तो सेवा है।”
फिर दोनों सरयू के किनारे एक एकांत कुंज में प्रतिदिन कथा सुनने लगे।
श्रवण का वैभव: कथा में भक्ति का रस
पंडित जी जब रामायण का पाठ करते, संत कभी रोने लगते, कभी नाचने लगते, कभी शांत होकर ध्यान में लीन हो जाते। यह प्रेम की वह धारा थी, जिसमें केवल भाव का प्रवाह था—कोई दिखावा नहीं, कोई आडंबर नहीं।
कथा का पारितोषिक: माँगने की परीक्षा
जब कथा समाप्त हुई, संत बोले—“पंडित जी, आपके श्रम के लिए हमारे पास कुछ नहीं है, परंतु हम प्रभु से जो कहेंगे, वही होगा। आप जो चाहें माँग लीजिए।”
पंडित जी बोले—“महाराज, हमें बहुत सारा धन मिल जाए।”
संत ने श्रीराम से प्रार्थना की, प्रभु मुस्कराए।
फिर पंडित बोले—“हमें एक ज्ञानी पुत्र की प्राप्ति हो।”
संत ने पुनः प्रार्थना की, प्रभु ने फिर मुस्कराकर 'तथास्तु' कहा।
अंत में पंडित ने कहा—“अब हमें श्रीराम जी की अखंड भक्ति और प्रेम मिल जाए।”
संत का उत्तर: जब भक्ति नहीं मिलती...
संत गंभीर हो गए। बोले—“यह नहीं मिलेगा।”
पंडित चौंक गए—“महाराज, यह क्यों?”
संत बोले—“तुम्हारी प्राथमिकता धन, फिर पुत्र, और अंत में भक्ति है। जब तक संसार पहले है और भगवान् बाद में, तब तक भक्ति नहीं मिलती।”
भक्ति माँगी नहीं जाती—वह समर्पण और निरपेक्ष प्रेम से स्वतः प्रकट होती है।
धार्मिक दृष्टांत: जब प्रेम ही वरदान बन गया
संत ने कहा—“प्रभु ने जब केवट से पूछा कि क्या चाहिए, तो उसने कुछ नहीं माँगा। प्रभु ने धन, पद, यहाँ तक कि मोक्ष तक देने की बात कही, पर केवट ने सब अस्वीकार किया। तब जाकर प्रभु ने उसे अपनी भक्ति दी।”
हनुमान जी को माता जानकी ने बल, बुद्धि, सिद्धियाँ और अमरत्व जैसे अनेक वरदान दिए, पर वे प्रसन्न नहीं हुए।
अंत में जब उन्होंने रामभक्ति दी, तब हनुमान ने सिर नवाया।
प्रह्लाद ने प्रभु से केवल एक ही वर माँगा—“प्रभु! हमारे मन में माँगने की इच्छा ही न बचे।” तब उन्हें अखंड भक्ति मिली।
भक्ति वही, जो बिना अपेक्षा के हो
भक्ति किसी वाणी की वस्तु नहीं, यह आत्मा की पुकार है।
यह तब मिलती है जब हमारे जीवन का लक्ष्य केवल और केवल प्रभु का प्रेम बन जाए।
जब न धन चाहिए, न पद, न सुख—केवल प्रभु का नाम और उनकी कृपा।
"जो कुछ न माँगे, वही सब पा जाता है।"
यह भक्ति का अनमोल सत्य है।
करूँ राम से प्रार्थना, दें तुमको आनंद।
फूल भरी हो जिंदगी, और रहो सानंद।।
कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से....