Religion: जब स्त्री ने धर्म का दीप जलाया, तब अंधकार से निकल आया चोर — सत्य के प्रकाश में मिली आत्मा को दिशा

Religion: धर्म केवल रीति नहीं, अंतरात्मा की शुद्धता है। जो कार्य ईश्वर और आत्मा की दृष्टि में गलत हो, वही पाप है। सत्यबोध से ही जीवन का मार्ग बदलता है। कौशलेंद्र प्रियर्दर्शी की कहानी आपकी आंख खोल देगी, पढ़िए...

religious story
सत्य के प्रकाश में मिली आत्मा को दिशा- फोटो : Meta

Religion: एक मामूली सा चोर था, जो लोगों के खेतों से धान चुराया करता था। चोर के परिवार में उसकी पत्नी और उसका एक बेटा रहता था। आज पहली बार चोर ने सोचा कि अपनी पत्नी को भी चोरी करना सिखाना चाहिए। वह अपने पत्नी को साथ लेकर एक खेत में चोरी करने गया। उसने पत्नी को खेत के एक कोने पर ऊँची जगह बिठा दिया और कहा कि “मालिक देखे तो चिल्लाकर मुझे बताना और भाग जाना।”

चोर गया खेत में और धान काटने लगा। कुछ ही देर में चोर का पत्नी चिल्लाई – “मालिक ने देख लिया……. मालिक ने देख लिया ………..।” चोर तुरंत उठकर भागा। आगे–आगे पत्नी, पीछे–पीछे चोर पति। कुछ ही दूर जाने पर चोर ने देखा कि कहीं कोई नहीं है। उसने पत्नी को रोका और पूछा– “अरे किसने देख लिया ?” पत्नी ने ऊपर की ओर इशारा करके कहा – “मालिक ने देख लिया।” चोर ने झुंझलाकर कहा – “अरे मूर्ख औरत! मैं उस मालिक की बात नहीं कर रहा हूँ, खेत का मालिक कहाँ है ?” पत्नी बोली – “ अजी ! आप ही कहते हैं, वह सबका मालिक है। फिर खेत का मालिक मैं किसी और को क्यों मानू।”

चोर बोला – “परन्तु मेरी जान! हमें खतरा केवल इस खेत के सांसारिक मालिक से है। ऊपर वाले से हमें कोई खतरा नहीं” चोर की पत्नी बोली – “एक बात बताइए ! क्या इस खेत का मालिक उस ऊपर वाले मालिक से बड़ा है ?”चोर बोला – “ नहीं तो !”पत्नी बोली – “ तो फिर ! आप ही बताइए, जो कार्य इस मालिक की नज़रों में गलत है,वो उसकी नजर में सही कैसे हो सकता है ? उल्टा वह बड़ा है तो उसकी नज़रों में तो यह कार्य ज्यादा गलत होना चाहिए ।”

मेरी माँ कहती थी “ गलत, हमेशा गलत होता है, फिर चाहे वह छोटा हो या बड़ा, क्या फर्क पड़ता है। जिस कार्य के करने से आत्मा में डर, लज्जा और अशांति हो, वह पाप है। आज पत्नी ने पति की आंखे खोल दी। उस चोर ने उसी दिन से चोरी का काम छोड़ दिया और जंगल से लकड़ियाँ काटकर बेचने लगा।

वास्तव में अधिकांश लोग इस चोर की ही तरह भ्रम में जी रहे है। उन्हें लगता है कि सुबह शाम डिंग हांकने और मंगल और शनिवार मंदिर जाने फिर दो अगरबत्ती लगा देने से उन्हें आस्तिकता और आध्यात्मिकता का सर्टिफिकेट मिल जायेगा, लेकिन वह भ्रम में हैं। 

वह अपने गुण, कर्म, स्वभाव तथा चिंतन, चरित्र और व्यवहार को अपने ईश्वर के अनुरूप बनाने की कोशिश नहीं करते..!! वैसे लोगों को क्या कहा जाय.. मौका तो भगवान सबको देते हैं ..लेकिन..उसको भी वह अपने पाप आचरण की वजह से भुना नहीं पाता...

संपादक कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से