Shreemad Bhagwat Katha: प्रेम के कुछ दानों ने पलट दिया भाग्य का लेखा, सुदामा की भक्ति पर मोहित होकर श्रीकृष्ण ने रच दिया विधि का विधान, यमराज भी हुए नतमस्तक

Shreemad Bhagwat Katha: सुदामा की प्रेम भक्ति से प्रसन्न श्रीकृष्ण ने उसे तीनों लोकों का स्वामी बना दिया, प्रभु की भक्ति से यमराज तक विस्मित रह गए। कौशलेंद्र प्रियदर्शी ने एक पुरातन कथा को नया रूप, नई दृष्टि में समेटा है। पढ़िए...

 Shreemad Bhagwat Katha
कर्म से बड़ा कोई भाग्य नहीं, और प्रेम से बढ़कर कोई पूंजी नहीं- फोटो : Meta

Shreemad Bhagwat Katha: कर्म से भाग्य भी बदल जाते हैं!! बशर्ते जीने का ढंग, नीयत और नीति दोनों ऊंच कोटि का हो......

जब भगवान् श्री कृष्ण ने सुदामा जी को तीनों लोकों का स्वामी बना दिया तो, सुदामा जी की संपत्ति देखकर यमराज से रहा न गया और यम भगवान् को नियम कानूनों का पाठ पढ़ाने के लिए अपने बहीखाते लेकर द्वारिका पहुंच गये और भगवान् से कहने लगे कि- अपराध क्षमा करें भगवन लेकिन सत्य तो ये है कि यमपुरी में शायद अब मेरी कोई आवश्यकता नही रह गयी है।

इसलिए में पृथ्वी लोक के प्राणियों के कर्मों का बही खाता आपको सौंपने आया हूँ और इस प्रकार यमराज ने सारे बहीखाते भगवान् के सामने रख दिये। भगवान् मुस्कुराए और बोले यमराज जी आखिर ऐसी क्या बात है जो इतना चिंतित लग रहे हो?यमराज कहने लगे कि प्रभु आपके क्षमा कर देने से अनेक पापी एक तो यमपुरी आते ही नही है वे सीधे ही आपके धाम को चले जाते हैं और..यमराज ने अपना बही खाता खोला तो सुदामा जी के भाग्य वाले स्थान पर देखा तो चकित रह गए। देखते हैं कि जहां 'श्रीक्षय’ सम्पत्ति का क्षय लिखा हुआ था, वहां स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण ने उन्ही अक्षरों को उलटकर उनके स्थान पर 'यक्षश्री’ लिख दिया अर्थात कुबेर की संपत्ति,भगवान् बोले कि यमराज जी शायद आपकी जानकारी पूरी नही है..क्या आप जानते हैं कि सुदामा ने मुझे अपना सर्वस्व अपर्ण कर दिया था तो मैने तो सुदामा के केवल उसी उपकार का प्रतिफल उसे दिया है, यमराज बोले कि भगवान् ऐसी कौन सी सम्पत्ति सुदामा ने आपको अर्पण कर दी उसके पास तो कुछ भी नही..भगवान् बोले कि सुदामा ने अपनी कुल पूंजी के रूप में बड़े ही प्रेम से मुझे चावल अर्पण किये थे जो मैंने और देवी लक्ष्मी ने बड़े प्रेम से खाये थे, और जो मुझे प्रेम से कुछ खिलाता है उसे सम्पूर्ण विश्व को भोजन कराने जितना पुण्य प्राप्त होता है, बस उसी का प्रतिफल सुदामा को मैंने दिया है।

ऐसे दयालु हैं हमारे प्रभु श्री द्वारिकाधीश भगवान्.. जिन्होंने न केवल सुदामा जी पर कृपा की, बल्कि द्रौपदी की बटलोई से बचे हुए साग के पत्ते को भी बड़े चाव से खाकर दुर्वासा ऋषि और उनके शिष्यों सहित सम्पूर्ण विश्व को तृप्त कर दिया था और पांडवो को श्राप से बचाया था।

संपादक कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से....